यश, अपयश इंसान की जिन्दगी से जुड़े हुए हैं। व्यक्तित्व चाहे कैसा भी हो आप राजनीतिज्ञ हो या अभिनेता या फिर न्यायाधीश हो या विधिवेत्ता विवाद तो जुड़ेंगे ही। न्यायाधीशों को भी देवताओं की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। वह भी साधारण मनुष्यों की तरह ही होते हैं। दुख-सुख, लाभ-हानि, हर्ष-शोक, सारी संवेदनाएं भी उनमें एक सी ही होती हैं। जब वह न्याय की कुर्सी पर बैठते हैं तो अनायास उनकी वृत्ति बदल जाती है।
अन्याय की बात करनी तो दूर वह ऐसा सोच भी नहीं पाते। अपवाद अपनी जगह हैं, यह मैं मानता हूं। ऐसे में चाहे कितने भी व्यक्तिगत संबंध हों, जजों की कलम नहीं कांपती, यह सत्य है। देश के 46वें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उनकी नियुक्ति तो विवादों के बीच हुई थी लेकिन मौजूदा दौर के कई ऐतिहासिक फैसलों के लिए वह गैर विवादित व्यक्ति के रूप में उभरे और सम्मानजनक ढंग से शीर्ष अदालत से विदाई ली। वह अब ऐसे इतिहास पुरुष हो गए हैं, जिन्हें समूचा भारत हमेशा याद रखेगा।
यद्यपि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने मिलकर झंडा बुलंद किया था, उनमें जस्टिस रंजन गोगोई भी थे। विरोध के बावजूद अगले सीजेआई के लिए उनके नाम की सिफारिश जस्टिस दीपक मिश्रा ने ही की थी। केन्द्र सरकार की स्वीकृति के बाद रंजन गोगोई की सीजेआई के रूप में नियुक्ति तय हो गई थी। जजों की प्रैस कांफ्रैस का मामला अदालत में भी गया था। जिसकी आड़ में उनकी नियुक्ति रद्द करने की मांग भी की गई थी। चार जजों की प्रैस कांफ्रैस के बाद न्यायपालिका में तूफान उठ खड़ा हुआ था।
जस्टिस रंजन गोगोई पर उनकी पूर्व जूनियर असिस्टेंट ने यौन शोषण के आरोप भी लगाए थे। यौन उत्पीड़न के आरोपों पर जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि ‘‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता बहुत गम्भीर खतरे में है और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने की एक बड़ी साजिश है। यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला के पीछे कुछ बड़ी ताकतें हैं, अगर न्यायाधीशों को इस तरह की स्थिति में काम करना पड़ेगा तो अच्छे लोग कभी इस आफिस में नहीं आएंगे।’’
आरोप लगाने वाली महिला का चरित्र ही संदिग्ध पाया गया और उस पर धोखाधड़ी के आरोप भी लगे। इन सब आरोपों की आग के बीच जस्टिस रंजन गोगोई कुन्दन बन कर निकले। चीफ जस्टिस का पदभार सम्भालने के बाद उनकी छवि कठोर और पूरी तरह न्याय की किताब के मुताबिक चलने वाले न्यायाधीशों की थी और सेवानिवृत्त होने तक उन्होंने अपनी छवि के मुताबिक काम किया। शुरूआती दिनों में ही नेशनल रजिस्टर फार सिटीजन (एनआरसी) जैसे मामलों की सुनवाई के दौरान ही उन्होंने अपनी मंशा जता दी थी।
न्याय पर सिर्फ टिके रहना ही नहीं बल्कि निर्धारित समय के भीतर न्याय दिलाना भी उनकी सोच का एक हिस्सा रहा। कई केसों में लोगों को हमेशा संशय रहा कि पता नहीं फैसला आएगा या नहीं लेकिन एक के बाद एक महत्वपूर्ण फैसले देकर उन्होंने लोगों के संशय को खारिज कर दिया। एनसीआर के मामले में अड़चनें कोई कम नहीं थीं लेकिन उन्होंने दो टूक फैसला सुनाया। सरकारी विज्ञापनों में नेताओं की तस्वीर लगाने पर पाबंदी का फैसला भी उनकी पीठ का ही थी। 70 वर्षों से अदालत में चल रहा अयोध्या विवाद पर जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व में दो टूक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसे न केवल अधिकांश पक्षकारों ने स्वीकार किया बल्कि पूरे राष्ट्र ने इस फैसले की सराहना की।
यद्यपि कुछ मुस्लिम पक्ष अब 5 एकड़ भूमि को सरकार से लेने या नहीं लेने के मुद्दे पर अपनी राजनीतिक दुकान चलाना चाहते हैं लेकिन देश इस फैसले के साथ खड़ा है। सीजेआई आफिस को आरटीआई के दायरे में लाने का फैसला भी कम महत्वपूर्ण नहीं क्योंकि उन्होंने सीजेआई आफिस को पब्लिक अथारिटी माना। राफेल डील, राहुल गांधी पर अवमानना मामले पर उनकी अगुवाई में बहुत ही सटीक और संतुलित फैसला सुनाया। अयोध्या फैसले से तो हर कोई इतना संतुष्ट हुआ कि सभी ने राहत की सांस ली। देश के संवेदनशील क्षेत्रों से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई। अयोध्या सामान्य दिनों की तरह शांत रही और पहले की ही तरह लाखों लोग सरयू नदी में कार्तिक पूर्णिमा का स्नान करने आए। रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन 11 न्यायाधीशों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी सम्पत्ति सार्वजनिक की थी।
असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशव चन्द्र गोगोई के बेटे रंजन गोगोई सीजेआई बनने वाले पूर्वोत्तर के पहले व्यक्ति रहे। ऐतिहासिक फैसलों के चलते आज हम सिर उठा कर कह सकते हैं कि गर्व से कहो ये भारत की न्यायपालिका है। इन फैसलों से देशवासियों की न्याय की उम्मीदें काफी बढ़ चुकी हैं। अब इन उम्मीदों को पूरा करने का दायित्व नए सीजेआई जस्टिस बोबड़े पर आ गया है। भारत रंजन गोगोई के कार्यकाल को इतिहास की तरह पढ़ेगा।