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‘रतनलाल’ तुम ‘पत्थर’ निकले !

देश-दुनिया के सभी टीवी न्यूज चैनल यह कान खोल कर सुनें कि 1669 ई. अर्थात अब से लगभग साढे़ तीन सौ साल पहले मुगल बादशाह औरंगजेब ने हिन्दुओं की पवित्र तीर्थ नगरी काशी में स्थित ‘बाबा विश्वनाथ के मन्दिर’ पर आक्रमण करके उसे अपवित्र करने का बाकायदा शाही फरमान जारी किया था

देश-दुनिया के सभी टीवी न्यूज चैनल यह कान खोल कर सुनें कि 1669 ई. अर्थात अब से लगभग साढे़ तीन सौ साल पहले मुगल बादशाह औरंगजेब ने हिन्दुओं की पवित्र तीर्थ नगरी काशी में स्थित ‘बाबा विश्वनाथ के मन्दिर’ पर आक्रमण करके उसे अपवित्र करने का बाकायदा शाही फरमान जारी किया था जिसके परिणाम स्वरूप मुगल फौजों ने काशी धाम में स्थित ज्ञानवापी कूप के निकट स्थित बाबा भोलेनाथ की प्रतिमा को अपने कब्जे में लेते हुए इसे ‘वुजूखाने’ में तब्दील करते हुए ज्ञानवापी कूप के जल से ही वुजू करने की हिमाकत शुरू की और इसके शास्त्रीय हिन्दू स्थापत्यकला में निर्मित प्रमुख परिसर को अपने नियन्त्रण में लेकर इसके ऊपर मस्जिद की मीनारें तामीर करा दीं। इस परिसर में जितनी भी देवी-देवताओं की मूर्तियां थी सभी को खंडित करके मलबे में बदल दिया और भगवान शंकर के इस भवन के निचले तल से प्रारम्भ होने वाली लिंग स्थली को तहखाने में बदल दिया और इसके भवन तोड़ते हुए हिन्दू चिन्हों को इसमें भर दिया।
अतः सबसे पहले यह साफ होना चाहिए कि विश्वनाथ धाम का विध्वंस कोई कल्पना नहीं बल्कि ऐतिहासिक सच है जिसका उल्लेख सभी प्रमुख ऐतिहासिक दस्तावेजों में मिलता है और स्वयं कम्युनिस्ट इतिहासकार भी इसकी पुष्टि करते हैं। अतः ज्ञानवापी में मिला शिवलिंग जिसे कुछ मुस्लिम मुल्ला-मौलाना या उलेमा फव्वारा बताने की धूर्तता कर रहे हैं, वह एक सिरे से सिवाय झूठ के कुछ नहीं है। जब इतिहासकार स्वयं इस तथ्य की पुष्टि कर रहे हैं तो मुस्लिम मुल्ला ब्रिगेड किस तरह हिन्दुओं को देवाधिदेव ‘महादेव’ के लिंग की तुलना फव्वारे या अन्य किसी वस्तु से करने की जुर्रत कर सकते हैं।
दूसरा ऐतिहासिक सच यह है कि महादेव के गण नन्दी का मुख उस शिवलिंग की तरफ रहने का सच भी इतिहास में दर्ज है जो ज्ञानवापी क्षेत्र में स्थित हैं। मगर यह कम हैरानी की बात नहीं है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कालेज का एक प्रोफेसर रतनलाल जो इतिहास ही पढ़ाता है , वह इस वास्तविकता से अपरिचित है और ज्ञानवापी के शिवलिंग की अनर्गल तुलना करने की घृष्टता करता है। जाहिर है कि ऐतिहासिक तथ्यों से पूरी तरह परिचित रहने वाले किसी इतिहास के अध्यापक से एेसी ओछी हरकत की अपेक्षा नहीं की जा सकती। भारत के संविधान के अनुसार किसी नास्तिक व्यक्ति को भी वे ही अधिकार प्राप्त हैं जो किसी भी मजहब को मानने वाले व्यक्ति को मिले होते हैं। ईश्वर में विश्वास करना या न करना किसी भी नागरिक का निजी अधिकार होता है मगर किसी धर्म विशेष के मानने वालों के विश्वास का मजाक उड़ाना या उनका अपमान करना उसका अधिकार नहीं होता परन्तु भारत में हिन्दू संस्कृति की विविधता व उदारता और सहिष्णुता के चलते उनके धार्मिक मान बिन्दुओं व प्रतीक स्थलों का मजाक बनाना स्वयं को धर्मनिरपेक्ष या प्रगतिशील  कहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपना अधिकार मानता है। हिन्दू संस्कृति विचार विभिन्नता की पूरी छूट देती है तभी तो ‘अनेकान्तवाद’ का दर्शन भी इसमें सम्मानित माना जाता है परन्तु किसी भी मत या पंथ के प्रति विद्वेश या वैमनस्य अथवा नफरत पैदा करने की इजाजत भी नहीं देती है। ज्ञानवापी के सच को सनातनी हिन्दू यदि अपना ‘सांस्कृतिक अधिकार’ मान रहे हैं तो समाज के शेष सभी धर्मावलम्बियों के सामने भी  इसके एेतिहासिक सत्य को स्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है। विशेष कर मुस्लिम समाज को, जिसके कब्जे में औरंगजेब के समय से ही ज्ञानवापी क्षेत्र है। इसे मस्जिद कहना भी सत्य के विरुद्ध झूठ के साथ खड़ा होना माना जायेगा।
अतः रतनलाल को गिरफ्तार करके दिल्ली पुलिस ने एेसी नजीर कायम की है जिससे सबक लेते हुए हिन्दुओं के देवाधिदेव महादेव के लिंग की तुलना अश्लीलता की सीमा तोड़ते हुए कुछ लोग सोशल मीडिया पर मनमाफिक तरीके से कर रहे हैं। असल में ये लोग ही नफरत के सौदागर हैं क्योंकि एेसा करके वे एक धर्म विशेष या हिन्दुओं को नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। इसका अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि इस स्वतन्त्रता के अन्तर्गत किसी भी धर्म के नागरिक को मूर्ति पूजा का विरोधी होने के संयमित विचार व्यक्त करने का अधिकार तो है परन्तु मूर्ति की अवमानना या अपमान करने का अधिकार नहीं है। ऐसा करते ही वह व्यक्ति स्वयं ही साढे़ तीन सौ साल पीछे जाकर मरदूद औरंगजेब बन जाता है। अतः इस पर कोई विवाद नहीं है कि काशी धाम औरंगजेब ने तुड़वाया और ज्ञानवापी क्षेत्र को मस्जिद में तब्दील कराया। वह इस्लामी जेहादी मुस्लिम शासक था अतः उसने मूर्ति पूजक हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए ज्ञानवापी क्षेत्र को ‘पलीत’ किया और वहां हिन्दुओं की छाती में शूल गाड़ने की गरज से नमाज शुरू कराई।
इतिहास सिद्ध इस सत्य की इस रोशनी में इस स्थान को पुनः महादेव के ज्ञानवापी क्षेत्र में (इसका वर्णन हिन्दुओं को कई धर्म शास्त्रों में मिलता है जैसे स्कन्द पुराण आदि) बदलने में 1991 का नरसिम्हा राव सरकार द्वारा बनाया गया पूजा स्थल कानून आड़े आता है। इसीलिए मुस्लिम पक्ष इसका अदालत से लेकर सड़क तक शोर मचा रहा है मगर भारत के संविधान का पूरा आधार मानवीयता और सत्य (हकीकत) पर टिका हुआ है और भारत ने स्वतन्त्रता के बाद यह आमुख घोष स्वीकार किया था कि ‘सत्यमेव जयते’। अतः सत्य की विजय के उपबन्ध से कोई भी लोकतान्त्रिक सरकार बाहर कैसे हो सकती है ?

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