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पाकिस्तान की हकीकत !

पाकिस्तान आज पूरी दुनिया में ‘बेनंग-ओ-नाम’ मुल्क इस वजह से बना है क्योंकि इसके सियासतदानों ने इस मुल्क की तामीर के वक्त इसका कोई मुस्तकबिल तय नहीं किया। इसके सियासत दां सिर्फ हुकूमत में रहने के लिए ‘भारत’ के खिलाफ नफरत का जहर उगलते रहे और इस्लामी मुल्क बनने के लिए अपने असली मुल्क ‘हिन्दोस्तान’ के हिन्दुओं के खिलाफ अपनी अलग कौमियत की धाक जमाते रहे। जरा सोचिये जब आजाद होने पर 1955-56 तक भारत में नई-नई बड़ी संस्थाएं बन रही थीं और शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य व कृषि से लेकर विज्ञान व साहित्य और न्याय तक के क्षेत्रों में नये संस्थान पं. नेहरू स्थापित कर रहे थे तो पाकिस्तान में  वहां के राजनीतिज्ञों में हुकूमत पर काबिज होने के लिए जंग मची हुई थी। नेताओं के कत्ल हो रहे थे और पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में वहां की एसेम्बली के स्पीकर राशिद अली का सिर सदन के भीतर ही माइकों से लहूलुहान किया जा रहा था। उस वक्त तक पाकिस्तान का कोई संविधान भी नहीं था। 

इधर हिन्द में पं नेहरू बड़े-बड़े  उद्योगों का जाल खड़ा कर रहे थे और उधर पाकिस्तान में फौजी मार्शल लाॅ लगाने की तैयारी चल रही थी। जिन मुसलमानों के लिए जिन्ना ने भारत में खून की नदियां बहाकर और दस लाख लोगों का कत्ल करके उनकी लाशों पर जिस पाकिस्तान को मुसलमानों के लिए तामीर किया था उसी मुल्क में 1953 में ही मुसलमान ही मुसलमानों का कत्ल कर रहे थे और ‘अहमदिया’ मुसलमानों को बता रहे थे कि वे ‘मुसलमान’ हैं ही नहीं। ये कत्लोगारत इतनी बढ़ी कि पाकिस्तान में पहली बार फौज को सड़कों पर उतर कर इन दंगों को काबू करना पड़ा और फिर 1958 में इसी फौज ने पूरा पाकिस्तान काबू में करके जनरल अयूब को अपना सरपरस्त बना लिया मगर जनरल अयूब खुद एक तरक्की पसन्द नजरिया रखने वाला फौजी था जिसकी वजह से उसने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए पुख्ता इंतजाम किये और आम अवाम को जहालत से बाहर निकालने के लिए भी कई काम किए। मगर सबसे बड़ा काम यह किया कि उसने अपने मुल्क में कारोबार व उद्योगों की इफरात मुहाल की और तिजारत को बढ़ावा दिया।

बेशक यह सारा काम उसने विदेशों की मदद से ही किया मगर 1963-64 तक पाकिस्तान की सकल विकास वृद्धि दर 5.4 प्रतिशत हो गई थी जो उस वक्त भारत की वृद्धि दर से बहुत ज्यादा थी। मगर जनरल अयूब ने 1965 में अपने पैरों पर कुल्हाड़ी खुद मार ली और कश्मीर के नाम पर भारत से जंग शुरू कर दी जिसमें पाकिस्तान मुंह के बल एेसा गिरा कि आज तक उठने के लिए तौबा-तौबा करता नजर आ रहा है। इसके बाद से ही पाकिस्तान की उलटी गिनती शुरू हो गई और आज इसकी हालत एेसी हो गई है कि इसके हाथ में भीख का कटोरा है और कोई इसे भीख देने से बेहतर दुत्कारना ज्यादा मुनासिब समझता है। 

1965 के बाद 1971 में पाकिस्तान फिर भारत से जंग के मैदान में उलझा और अपने साबुत वजूद से ही बेदखल हो बैठा। पूर्वी पाकिस्तान को भारत ने बांग्लादेश बना दिया। आज इसके वजीरे आजम शहबाज शरीफ जो सिर पकड़ कर बैठे हुए हैं और अपने से पहले के हुक्मरान इमरान खान के कारनामों का काला चिट्ठा अवाम के सामने रखते हुए खुद ही परेशान हो रहे हैं उसकी वजह एक ही है कि पाकिस्तान की बुनियाद ही बेइमानी और धोखाधड़ी पर पड़ी हुई है। क्या पूरी दुनिया में कभी किसी ने सुना है कि किसी साबिक वजीरे आजम को एक साथ आठ कानूनी मामलों में अदालतों से जमानत मिली हो। मगर इमरान खान तो इसे भी दो चौक्के ही समझ रहा है और शान से अवाम को बताने की जुर्रत कर रहा है कि उसके भड़काये हुए लोगों ने जिस तरह फौजी संस्थानों पर हमले किये उनका सबब  पाकिस्तान की हिफाजत करना ही था। पाकिस्तान में फिलहाल हालात एेसे हैं कि फौज नागरिक प्रशासन से लड़ रही है, अदालतें सियासतदानों से लड़ रही है और खुद बड़ी अदालतें भी एक दूसरे से लड़ रही हैं। 

एक अदालत इमरान खान को जेल भेजती है तो दूसरी उसे जमानत देने का हुक्म सुना देती है और अवाम 120 रुपए किलो आटा खरीद रही है और 500 रुपए लीटर दूध ला रही है। पाकिस्तान में रुपये की कीमत 300 रुपए बराबर एक डालर हो चुकी है। वहां की सरकार कह रही है कि घड़ी चोर इमरान मुल्क छोड़ कर भाग न जाये इसलिए सभी एयर लाइनों को उसे टिकट देने के लिए मना कर दिया गया है। भारत ने पहले दिन से ही कहा अलग हो गये हो तो अलग होने का सलीका भी सीखो मगर पाकिस्तान ने कभी अक्ल से काम नहीं लिया जिसकी वजह से यह कभी जम्हूरियत का मुहाफिज नहीं बन सका। मगर क्या किया जाये है तो पाकिस्तान भारत का पड़ोसी ही है इसलिए थोड़ी फिक्र अपनी खातिर ही सही करनी पड़ती है,

‘‘जाना पड़ा रकीब के दर पर हजार बार 

ए काश जानता न तेरी रहदगुजर को मैं।’’