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लाॅकडाउन से राहत का सवाल?

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के साथ राज्यों के मुख्यमन्त्रियों की हुई चौथी वीडियो बैठक में देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रखने का मुद्दा विचित्र वायरस ‘कोरोना’ के साथ चलते युद्ध के बीच जिस तरह मुखर रहा है उसे देखते हुए यह समझा जा सकता है कि 3 मई के बाद राष्ट्रीय स्तर पर ‘लाॅकडाउन’ की शर्तों में बदलाव आना निश्चित है।

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के साथ राज्यों के मुख्यमन्त्रियों की हुई चौथी वीडियो बैठक में देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रखने का मुद्दा विचित्र वायरस ‘कोरोना’ के साथ चलते युद्ध के बीच जिस तरह मुखर रहा है उसे देखते हुए यह समझा जा सकता है कि 3 मई के बाद राष्ट्रीय स्तर पर ‘लाॅकडाउन’ की शर्तों में बदलाव आना निश्चित है।
राज्यों के संघ भारत ने कोरोना को परास्त करने के लिए जो भी प्रयास किये हैं उनका जमीन पर क्रियान्वयन राज्य सरकारों ने ही किया है भारत की यह विशिष्टता संविधानगत है कि केन्द्र की नीतियों को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की ही होती है। इसके बावजूद राज्यों को अपनी भौगोलिक व सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप आवश्यक कारगर कदम उठाने की छूट संविधान में दी गई है।
यह  प्रावधान भारत की विविधता को ध्यान में रख कर ही किया गया है परन्तु कोरोना वायरस ने जिस तरह पूरे देश में सभी सीमाओं को लांघते हुए अपने पैर पसारे, उसे देखते हुए ही केन्द्र की मोदी सरकार ने इसे राष्ट्रीय आपदा के तहत महामारी घोषित करके लाॅकडाउन की घोषणा की लेकिन आर्थिक मोर्चे पर इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है।
चूंकि पूरी दुनिया के समक्ष मानव इतिहास में ऐसा पहला अवसर आया है जब किसी महामारी ने वैश्विक आर्थिक क्रम को तोड़ कर रख दिया हो, इससे पूर्व विश्व युद्धों के बाद ऐसी परिस्थितियां जरूर बनी हैं मगर उनका असर विजयी पक्ष के हक में रहता आया है कोरोना इसलिए विचित्र वायरस समझा जायेगा कि इसने सबसे ज्यादा चोट अमीर या विकसित कहे जाने वाले देशों पर ही की है जिनका सिरमौर अमेरिका कहा जाता है। अतः कोरोना से मुक्ति पर इसके बाद के प्रभाव भी पारंपरिक नहीं हो सकते।
यही वह दायरा है जिसमें भारत जैसे देश की कोरोना को परास्त करने की शक्ति व सामर्थ्य का आंकलन वैश्विक अर्थ क्रम को घुमाने के औजार के रूप में देखा जायेगा। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम लाॅकडाउन की सुस्ती को आर्थिक इंजिन की घड़घड़ाहट से तोड़े डालें। मगर यह कार्य इतनी एहतियात से करना होगा कि कोरोना को किसी नागरिक से हाथ मिलाने की हिम्मत न हो।
इसी वजह से प्रधानमन्त्री ने ‘दो गज की दूरी बहुत जरूरी’ मन्त्र दिया है  कोरोना को जिस तरह अभी तक लगातार काबू में रखने के प्रयास लगभग सफल रहे हैं उनमें जरा सी भी चूक या लापरवाही भारी पड़ सकती है। अतः जरूरी है कि राज्य सरकारें इस मोर्चे पर और ज्यादा सजग रह कर काम करें और आर्थिक गतिविधियों को अंजाम दें, हालांकि इस मोर्चे पर गृह मन्त्रालय काफी रियायतें पहले दे चुका है मगर उनका जमीन पर असर इसलिए नहीं हो पा रहा है कि प्रशासन किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहता मगर कृषि क्षेत्र ने लाॅकडाउन के मध्य ही अपनी उत्पादकता पर आंच नहीं आने दी है और अन्न उत्पादन में वृद्धि दर्ज की है।
कृषि राज्यों का विषय है और इस सन्दर्भ में राज्य सरकारें यदि इसी क्षेत्र से जुड़े सभी निकायों को समन्वित करके किसानों में क्रय शक्ति का संचार करती हैं तो समूची ग्रामीण अर्थव्यवस्था में स्फूर्ति आ जायेगी जिसका असर दूसरे प्रमुख क्षेत्रों पर होना लाजिमी होगा बशर्ते यह कार्य पूरी सावधानी के साथ दो गज की दूरी रख कर किया जाये।
बेशक कोरोना का वायरस से ऊपर से नीचे की तरफ चाला है (विदेशों से आने वाले अमीर नागरिकों व विदेशी पर्यटकों की मार्फत) मगर इसे पटकने का काम नीचे से ही शुरू करना होगा, यही रणनीति भारत के मजदूरों व गरीब रोजमर्रा का काम करने वाले लोगों में ऊर्जा का संचार करेगी और उनके हाथ में दो पैसे रखेगी मगर यह कार्य इतना आसान भी नहीं है क्योंकि इसकी शर्त लोक व्यवहार की नई नियमावली होगी मगर अपनी जान सुरक्षित रखने के लिए प्रत्येक ग्रामीण को इसे अपनाना ही होगा और अपना धन्धा चलाना होगा।
जाहिर है यह व्यवस्था तब तक के लिए ही जरूरी होगी जब कि कोरोना वायरस को जड़ से मिटाने का कोई टीका या दवा नहीं निकल जाती। अतः जरूरी है कि 3 मई के बाद लाॅकडाउन की शर्तों में इस तरह परिवर्तन करना लाजिमी होगा जिससे जमीन पर जहान की खेती लहलहाती सी दिखे और बीमारी की जड़ को तोड़ कर जिन्दगी जागती सी दिखाई दे। बेशक सरकार को ऐसी रियायतें और भी देनी पड़ सकती हैं जिनसे कामगारों की नौकरियां बहाल रह सकें।
कार्पोरेट क्षेत्र को बाजार मूलक अर्थव्यवस्था ने 1991 से लेकर अब तक हमेशा कुछ दिया ही दिया है। यह पहला मौका ऐसा आया है जब यह क्षेत्र अपना कर्ज कुछ देकर उतार सकता है। इस मामले में टाटा जैसे उद्योग समूह ने हमेशा की तरह बड़ा दिल दिखा कर एक नजीर पहले ही पेश कर दी है परन्तु खुली बाजार मूलक अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशक बहुत बड़े खिलाड़ी हैं अतः उनका भी कुछ दायित्व इस देश के प्रति बनता है।
कम से कम इतना कार्य तो उन्हें करना ही चाहिए कि किसी भी ‘बारोजगार’ भारतीय को ‘बेरोजगार’ न बनाया जाये लेकिन इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि कोरोना वायरस चुपके से देश के नये जिलों में जाने में कामयाब न हो जाये। केवल गत रविवार को ही पूरे भारत में कोरोना के 1945 नये मामले आये और अगले 24 घंटों में 1463 और मामले आये तथा 60 और लोगों की मृत्यु हो गई। उससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि लाॅकडाउन की पहली शर्त जिस्मानी दूरी बनाये रखने के पालन में कोताही हो रही है।
कोरोना इसीलिए विचित्र वायरस है कि यह आदमी के शरीर में घुस कर 14 दिनों बाद या कभी-कभी उससे भी ज्यादा समय के बाद बाहर आता है और मरीज बना डालता है। इसलिए कोई भी हृष्टपुष्ट मनुष्य तक इसके खिलाफ हेकड़ी नहीं दिखा सकता क्योंकि यह छिप कर अदृश्य रहते हुए जरा सी लापरवाही करने पर ही अपना दांव खेल जाता है। बिना शक लाॅकडाउन आदमी में खिसियाहट पैदा कर रहा है मगर इसका तोड़ निकालने में स्वयं आम आदमी को ही सिपाही बनना होगा तभी कुछ राहत मिल सकती है।
—आदित्य नारायण चोपड़ा

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