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धर्म परिवर्तन और हम

कोई भी देश तभी सभ्य, विकसित व मजबूत राष्ट्र बन पाता है जब इसके नागरिक आपस में प्रेम-भाव रख कर एक-दूसरे से सहयोग करके समूचे समाज के विकास के लिए काम करते हैं। समाज स्वाभाविक रूप से विविधताओं से भरा होता है

कोई भी देश तभी सभ्य, विकसित व मजबूत राष्ट्र बन पाता है जब इसके नागरिक आपस में प्रेम-भाव रख कर एक-दूसरे से सहयोग करके समूचे समाज के विकास के लिए काम करते हैं। समाज स्वाभाविक रूप से विविधताओं से भरा होता है अतः इसकी एकता का मूल मन्त्र एक-दूसरे के प्रति सम्मान भाव पर टिका रहता है। लोकतन्त्र में राजनीति का लक्ष्य इसी भाईचारे को प्रगाढ़ कर देश के विकास का होता है। राजनीति  चूंकि सत्ता तक पहुंचने का माध्यम होती है और सत्ता लोगों के व देश के विकास के उद्देश्य से हासिल की जाती है अतः नागरिकों के बीच नफरत फैलाने का काम जो लोग व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से करते हैं वे देश को तोड़ने की कार्रवाई में संलग्न समझे जाते हैं। भारतीय संविधान में इस बाबत विस्तृत व्याख्या इस प्रकार की गई है कि भारतीय दंड विधान की धारा 153 के तहत सामाजिक विद्वेश फैलाने अर्थात दो समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा करने वाले कृत्य को राष्ट्र विरोधी कार्रवाई के समरूप रखते हुए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। परन्तु हम देख रहे हैं कि जैसे-जैसे छह राज्यों के विधानसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं वैसे- वैसे ही समुदायगत नफरत फैलाने की गतिविधियां जोर पकड़ रही हैं । इसे हम स्वतन्त्र भारत की राजनीतिक त्रासदी के अलावा और कुछ नहीं कह सकते क्योंकि ऐसा करने से वोटों का ध्रुवीकरण जिस सम्प्रदायगत आधार पर होता है उससे देश भीतर से कमजोर होकर नफरत की आग में सुलगने लगता है। 
यह नफरत किसी देश को किस प्रकार खोखला बनाती है इसका उदाहरण वह नाजायज मुल्क पाकिस्तान है जो भारत के साथ ही आजाद हुआ था मगर आज उसके हाथ में वक्त ने ‘भीख का कटोरा’ पकड़ा दिया है।  कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई हैं। उसका अभिप्राय इस सीमावर्ती राज्य की शान्ति भंग करने के साथ ही पूरे देश में सामाजिक सौहार्द को चोट पहुंचाने के सिवाय कुछ भी नहीं है। एेसी घटनाएं हमें सचेत कर रही हैं कि भारत को कमजोर करने वाली कुछ एेसी ताकतें भेष बदल कर हमारे समाज को कमजोर करके देश के विकास को अवरुद्ध करना चाहती हैं। एक तरफ जब पूरा भारत कोरोना जैसी भंयकर बीमारी से जूझ रहा है और बार-बार इसके संक्रमण से निकल कर पुनः इसके जंजाल में फंसता जा रहा है तो नागरिकों को आपस में ही लड़ाने की इन हरकतों को हम राष्ट्रविरोधी कार्रवाई से इतर रख कर नहीं देख सकते।
 जम्मू-कश्मीर राज्य में तो 1861 से गोहत्या पर प्रतिबन्ध है और इस राज्य में कभी गोहत्या का मुद्दा कोई विषय ही नहीं रहा। परन्तु हाल के वर्षों में कुछ अजीबोगरीब किस्से सुनने को जरूर मिल रहे हैं। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में धर्मान्तरण की घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। यदि किसी भी व्यक्ति का जोर जबर्दस्ती या लालच से धर्मान्तरण किया जाता है तो वह कानूनन अपराध है और उसके लिए सजा मुकर्रर है। मगर जिस प्रकार राजधानी दिल्ली के आसपास के इलाकों में सक्रिय एक विशेष धर्म के लोग इस कार्य में संलिप्त पाये गये हैं उससे यही ध्वनि निकलती है कि वे भारत के कानून को खिलौना समझते हैं। आरोप लगाया जा रहा है कि लगभग एक हजार लोगों का धर्म परिवर्तन खौफ या लालच देकर किया गया। अगर यह सच है तो निश्चित रूप से घनघोर निन्दनीय आपराधिक कृत्य है। भारत हिन्दू-मुसलमान सभी का घर रहा है और विशेषकर हिन्दू धर्म में कभी भी किसी धर्म को दोयम स्थान पर रखने का प्रयास नहीं किया। अतः कुछ इस्लामी जेहादी यदि दूसरे धर्मों से धर्म परिवर्तन कराने की हिमाकत करते हैं तो वे भारतीय कहलाने के लायक नहीं हैं। 
मगर इसके साथ हमें यह भी देखना होगा कि अगर यह कार्य पिछले कुछ सालों से बदस्तूर जारी था तो देश की खुफिया पुलिस समेत विभिन्न एजेंसियां क्या कर रही थीं और एेसे मामले तभी सामने क्यों आ रहे हैं जब उत्तर प्रदेश के चुनावों में छह महीने का समय ही शेष बचा है। अभी कोरोना काल में ही हमने देखा कि किस प्रकार उन्नाव, कानपुर, गाजीपुर आदि क्षेत्रों में गंगा में कोरोना से मृत लोगों की हजारों लाशें तैर रही थीं। किस तरह राज्य के श्मशान घाटों पर शवों के अन्तिम संस्कार के लिए लकड़ियों की काला बाजारी हो रही थी। किस तरह अस्पतालों में आक्सीजन की कमी की वजह से हजारों लोग दम तोड़ रहे थे। किस तरह राज्य का ग्रामीण चिकित्सा तन्त्र तबेलों और अस्तबलों की शक्ल में नमूदार हो रहा था। धर्मान्तरण से क्या किसी व्यक्ति की स्थिति बदल सकती है। मगर धर्म के कुछ ठेकेदार लालच देकर यह कार्य कराने में सफल हो जाते हैं। 
 स्वतन्त्र भारत में 1968 के करीब तमिलनाडु में सामूहिक धर्म परिवर्तन की घटनाएं बहुत तेज हो गई थीं। तब आरोप लगा था कि इस धर्म परिवर्तन का कारण ‘पेट्रो डालर  है। सऊदी अरब से धर्म परिवर्तन कराने के लिए आर्थिक मदद दी जाती है। परन्तु एेसे मुद्दों पर टिप्पणी करते समय हमें संयम से काम लेना चाहिए और न्यायालय में अपराध सिद्ध हो जाने के बाद ही जुबान खोलनी चाहिए क्योंकि ‘बयान बहादुरी’ समाज में सिर्फ नफरत ही फैलाती है। 

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