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आरक्षण: वंचितों को लाभ मिले

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यद्यपि आरक्षण भारत में गम्भीर विवाद का विषय है। आरक्षण को लेकर देश कई ङ्क्षहसक आन्दोलन देख चुका है। सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को अग्रणी वर्गों के बराबर लाने के उद्देश्य से संविधान में केवल 10 वर्षों के लिए की गई आरक्षण व्यवस्था संविधान की भावना के अनुरूप क्रियान्वित नहीं हो पाती। समय-समय पर आरक्षण की अवधि बढ़ाने, इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने और कालान्तर में आरक्षण व्यवस्था में किए गए संशोधनों के फलस्वरूप आज हालात यह बन गए हैं कि आरक्षण को लेकर आरक्षित वर्गों में आने वाले जाति समूह आपस में लड़ रहे हैं तथा आरक्षण से वंचित रहीं जातियां भी आरक्षण प्राप्ति के लिए आन्दोलन चलाकर शक्ति प्रदर्शन कर रही हैं। यह भी चर्चा है कि आरक्षण का लाभ आरक्षित वर्गों की कुछ जातियों/परिवारों को ही मिला। फलस्वरूप आरक्षित वर्गों में आर्थिक असमानता के साथ-साथ सामाजिक असमानता भी घटने की बजाय बढ़ी है। यह भी सच है कि सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक विषमताओं से भरे हुए देश में विभिन्न जातियों के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर पर कोई एक मापदण्ड नहीं होने के कारण आरक्षण का कोई एक आधार तर्क संगत नहीं हो सकता।

तीन दशक पूर्व 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सिफारिश पर गठित हुए मण्डल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1990 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. ङ्क्षसह द्वारा लागू किए गए 27 फीसदी आरक्षण का लाभ ओबीसी को पूरी तरह नहीं मिल पा रहा है। मोदी सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग आयोग के स्थान पर बनाए गए नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेज की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि मण्डल कमीशन के लागू होने के बाद भी ओबीसी वर्ग से आने वाले लोगों की केन्द्र सरकार की नौकरियों में भागीदारी आरक्षित संख्या की आधी भी नहीं है। जो कमीशन की सिफारिशों से एक तरह का अन्याय है। वर्तमान आरक्षण व्यवस्था का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिल सके, इसके लिए केन्द्र सरकार ने तैयारी करनी शुरू कर दी है। आंकड़े बताते हैं कि आरक्षण का फायदा कुछ विशेष जातियों को मिला जबकि कई ऐसी जातियां हैं जिन्हें आरक्षण के लाभ से दूर रखा गया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेज को ऐसी व्यवस्था की रूपरेखा तैयार करने को कहा है जिसमें आरक्षण व्यवस्था में मौजूद विसंगतियों को दूर कर वंचित जातियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सके। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने संविधान के अनुच्छेद के तहत अन्य पिछड़े वर्गों के उपवर्गीकरण के मुद्दे पर विचार के लिए एक आयोग गठित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। साथ ही ओबीसी के लिए क्रीमीलेयर की आय सीमा में दो लाख रुपए का इजाफा करके इसे 8 लाख रुपए प्रतिवर्ष कर दिया गया है। आयोग ओबीसी की व्यापक श्रेणी समेत जातियों और समुदायों के बीच आरक्षण के लाभ के असमान वितरण के बिन्दुओं पर विचार करेगा जो ओबीसी को संघ सूची में शामिल करने के संदर्भ में होगा। आयोग को ऐसे अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में उपवर्गीकरण के लिए वैज्ञानिक तरीकों वाला तंत्र, प्रक्रिया, मानदण्ड और मानक का खाका तैयार करने के साथ ही संघ सूची में दर्ज ओबीसी के समतुल्य सम्बन्धित जातियों, समुदायों, उपजातियों की पहचान करने की पहल करती है एवं उन्हें सम्बन्धित उपश्रेणियों में वर्गीकृत करना है। देश के 9 राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पुडï्डुचेरी, कर्नाटक, हरियाणा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में पहले ही अन्य पिछड़ा वर्ग का उपवर्गीकरण किया जा चुका है।

विपक्ष भले ही मोदी सरकार के फैसले पर सवाल उठाए लेकिन आरक्षण की विसंगतियां दूर होनी ही चाहिए। बिहार में नीतीश कुमार ने भी महादलित श्रेणी बनाई थी। इसी तरह महादलितों को देशभर में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए जो अब तक इससे वंचित रहे हैं। इसे मोदी सरकार की सोशल इंजीनियङ्क्षरग ही माना जाना चाहिए। सरकार की इस पहल को सामाजिक समानता की जरूरत की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो भाजपा की अन्य पिछड़ी जातियों में पैठ बढ़ेगी इसलिए इसे प्रधानमंत्री का मास्टर स्ट्रोक भी माना जा रहा है। विपक्षी दलों को आलोचना का हक है लेकिन मोदी सरकार ने वह कर दिखाया है जो अब तक सोचा ही नहीं गया था।

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