लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

आरक्षण : अपने ही फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सुधारा

आरक्षण का मूल अर्थ प्रतिनिधित्व है। आरक्षण कभी भी पेट भरने का साधन नहीं हो सकता बल्कि आरक्षण द्वारा ऐसे समाज को प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया जाना चाहिए जो समाज के अन्दर दबे-कुचले रहे हैं।

आरक्षण का मूल अर्थ प्रतिनिधित्व है। आरक्षण कभी भी पेट भरने का साधन नहीं हो सकता बल्कि आरक्षण द्वारा ऐसे समाज को प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया जाना चाहिए जो समाज के अन्दर दबे-कुचले रहे हैं। वैसे जब आरक्षण लागू किया गया था तो इसे दस वर्षों के लिए पास किया गया था और उस समय इसे लागू करने का उद्देश्य बस इतना था कि जिस समाज के लोग उपेक्षित हैं उन्हें भी प्रतिनिधित्व करने का मौका मिले। बाद में आरक्षण की मूल धारणा को भुला दिया गया। आज वह समय आ गया है कि भारतीय राजनीतिक दल इस पर बहस तो करना चाहते हैं कि किसी तरह से उनका वोट बैंक बना रहे। आरक्षण कुछ हद तक जातिगत आधार पर जुड़ा हुआ है। वर्ष 1932 में एक सम्मेलन हुआ था जिसका नाम गोलमेज सम्मेलन रखा गया था। इसमें इस बात पर सहमति बनी थी कि आरक्षण होना चाहिए ताे किस आधार पर। इस सम्मेलन में तय किया गया था कि समाज के वे लोग जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं उनकी एक सूची तैयार की जाए। इसी सूची के आधार पर कुछ प्रावधान रखा जाए ताकि इन्हें समाज की मुख्य धारा में लाया जा सके। इसी प्रावधान को भारत के संविधान में रखा गया था। बाद में इस सूची का नाम अनुसूचित जनजाति रखा गया। कुछ समय बाद इस सूची में एक और नई सूची को जोड़ा गया जिसको अत्यंत पिछड़ा वर्ग कहा गया।
आरक्षण लगातार जारी है, हर जाति आरक्षण के प्याले को छू लेना चाहती है। आरक्षण का लाभ ताकतवर जातियों को ही ​मिला। यह भी सत्य है कि अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग की कुछ जातियों को बरसों से चले आ रहे आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। जिन वर्गों को आरक्षण का फायदा मिला उन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी इसी आरक्षण का लाभ उठाया। जो वंचित रहे वह आज तक वंचित रहे।
देश की शीर्ष अदालत ने जो आरक्षण में सुधार की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाया है, वह सराहना के योग्य है। अनुसूिचत जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग के अन्दर उपवर्ग बना कर विशेष आरक्षण दिया जाना समय के साथ जरूरी होता जा रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को अपने ही 16 वर्ष पुराने फैसले पर विचार करना है क्योंकि  सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने वर्ष 2004 में यह फैसला सुनाया था कि राज्यों को किसी आरक्षित वर्ग के भीतर उपवर्ग बनाकर आरक्षण देने का अधिकार नहीं है, इसलिए अब जब इस फैसले में कोई बदलाव करना है तो सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ को विचार के बाद नया फैसला करना होगा। ऐसी सम्भावना है कि सुप्रीम कोर्ट की 7 न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस पर विचार करेगी कि क्या सूची के भीतर अत्यंत पिछड़ी जातियों को प्राथमिकता देने के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आरक्षण सूची में उपवर्गीकरण हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने कहा है कि उपजातियों का वर्गीकरण करके उन्हें नौकरी और शिक्षा में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
ताकतवर और प्रभावशाली जातियों को ही आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता। बाल्मीकि आदि जातियों को अनंतकाल तक गरीबी में नहीं रखा जा सकता। 78 पृष्ठ की जजमेंट में साफ तौर पर कहा कि दलित और ओबीसी अपने आप में एक समान (होमोजीनियम) जाति नहीं है। ईवी चिन्नया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2005 इन्हें एक समान जाति माना था। पीठ ने कहा है ​कि 16 वर्ष पुराने फैसले में सुधार की जरूरत है ताकि आरक्षण का लाभ समाज के निचले तबके के लोगों को मिल सके। इसके लिए राज्य सरकार जातियों के वर्गीकरण में सक्षम है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला पंजाब सरकार बनाम देवेन्द्र सिंह मामले में दिया। पंजाब सरकार ने एससी में दो जातियों बाल्मीकि और मजहबी सिख को एससी कोटे के लिए तयशुदा प्रतिशत में से 50 फीसदी​ रिजर्व कर दिया था। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने दलित आरक्षण में 50 फीसदी उपजातियों को निर्धारित करने के सरकार की अनुसूचि को निरस्त कर दिया था। इस फैसले के बाद राज्य विधानसभाएं अनुसूचित जाति श्रेणियों के भीतर उपजातियों को विशेष आरक्षण देने के लिए कानून बना सकती हैं। भारत में अनेक जातियां और उपजातियां हैं, जिन्हें अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। कुछ जातियां आरक्षण का लाभ लेने में आगे हैं और अब वे आरक्षण का लाभ उठाते हुए बेहतर स्थिति में पहुंची हैं।
पिछड़े समाज का एक बड़ा हिस्सा जो प्राथमिक शिक्षा से वंचित है। इन वंचित जातियों को आगे लाने के लिए अनेक राज्य सक्रिय हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ऐसे राज्यों को महादलितों तक पहुंचने में मदद मिलेगी। ऐसा कहते हुए जनजातियों को भी आरक्षण का लाभ जारी रहेगा जो अपेक्षाकृत लाभ में रही हैं। सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला समाज में संतुलित विकास करेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

two × 5 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।