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रिजर्व बैंक के गवर्नर का ‘वजन’

केन्द्र की मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकांत दास को और आगे तीन वर्ष के लिए कार्यकाल देने का फैसला करके स्पष्ट कर दिया है कि वह देश की अर्थव्यवस्था में वर्तमान में चल रहे प्रवाह को जारी रखना चाहती है

केन्द्र की मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकांत दास को और आगे तीन वर्ष के लिए कार्यकाल देने का फैसला करके स्पष्ट कर दिया है कि वह देश की अर्थव्यवस्था में वर्तमान में चल रहे प्रवाह को जारी रखना चाहती है जिससे आने वाले समय में इसमें किसी प्रकार का प्रशासनिक गतिरोध पैदा न हो सके। पिछले तीन साल से श्री दास आर्थिक चिन्ताओं के निराकरण में जो निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं उसे भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि नोटबन्दी के बाद जिस तरह तत्कालीन गवर्नर श्री उर्जित पटेल ने अपना इस्तीफा दिया था उससे नीतिगत स्तर पर देश की अर्थव्यवस्था के सामने एक संकट तो खड़ा हो ही गया था। श्री दास की गवर्नर के पद पर नियुक्ति ऐसे ही समय में की गई थी और उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों को जिस संयम व धैर्य से संभाला उससे उनकी अर्थव्यवस्था की विशेषज्ञता और सहनशीलता का परिचय मिला।
 पिछले तीन साल से उनके निर्देशन में रिजर्व बैंक ने जिस तरह देश की अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति के स्तर पर समयानुकूल संशोधन करते हुए सकल मोर्चे पर पूंजी की सुलभता कराई उससे नोटबन्दी के बाद से लेकर कोरोना काल तक संकटपूर्ण समय में औद्यो​िगक व व्यापारिक जगत को पर्याप्त पूंजी सुलभता प्राप्त हुई। इसका असर समग्रता में अर्थव्यवस्था पर इस प्रकार पड़ा कि वृद्धि दर में नकारात्मक प्रभाव समाप्त होने की दिशा में बढ़ा। हालांकि इस मोर्चे पर रिजर्व बैंक और वित्त मन्त्रालय की भारी आलोचना भी हुई और कई विशेषज्ञों ने खास तौर पर कोरोना काल के दौरान वित्तीय उपाय करने की वकालत की न कि मौद्रिक उपाय करने की। जाहिर है कि अर्थव्यवस्था अभी तक मन्दी के झटके झेलते हुए चल रही है मगर इसने एक सकारात्मक दिशा पकड़ ली है जिससे यह उम्मीद जगती है कि अगले दो वर्ष में यह पिछला नुकसान पूरा करते हुए ऊपर की तरफ जायेगी। मगर फिलहाल सबसे अधिक चिन्ता की बात यह है कि महंगाई की रफ्तार बढ़ रही है जिसका शिकार आम आदमी हो रहा है। खाद्य वस्तुओं के दामों में जिस तरह वृद्धि हो रही है उसका सम्बन्ध इन वस्तुओं की मांग से नहीं जुड़ पा रहा है। मांग में अपेक्षानुरूप वृद्धि न होने के बावजूद उपभोक्ता वस्तुओं के दामों में बढ़ौतरी होना निश्चित रूप से चिन्ता का विषय है। इसका सम्बन्ध जमाखोरी से जाकर भी जुड़ता है जो रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र से बाहर का विषय है। 
महंगाई को पेट्रोल व डीजल के बढ़ते दैनिक दामों से जोड़ कर भी देखा जा रहा है। इसमें तर्क है क्योंकि वस्तुओं के परिवहन की कीमत में वृद्धि होने का असर अन्ततः उपभोक्ताओं के सिर पर ही आकर पड़ता है। इस दिशा में वित्त मन्त्रालय को समन्वित प्रयास करने की जरूरत है। रिजर्व बैंक इस क्षेत्र में ब्याज की दरों में घट-बढ़ करके ही समायोजन कर सकता है जिसका असर महंगाई पर सीमित ही रहता है। अगले तीन साल तक यदि श्री दास रिजर्व बैंक के गवर्नर और रहते हैं तो वह आने वाली आर्थिक समस्याओं से बेहतरी से निपट सकते हैं क्योंकि कोरोना काल का समय अब लगभग समाप्त होने को है और उन्होंने इस दौरान अर्थव्यवस्था में उठान लाने के जो उपाय किये उनका अच्छा परिणाम अब सामने आ रहा है। बैंकिंग उद्योग व व्यवसाय में रिजर्व बैंक द्वारा किये गये फैसलों का परिणाम हमें देखने को इस तरह मिल रहा है कि इनके कारोबार में अपेक्षित वृद्धि दर्ज हो रही है हालांकि कुछ सरकारी बैंकों के निजीकरण का मसला अपनी जगह मौजूद है। इसके बावजूद देश के सरकारी बैंकों में देश की आम जनता का विश्वास बराबर जमा हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के दौर में बैंकों की भूमिका पूरी तरह बदल चुकी है और ये आम जनता के निजी आर्थिक उत्थान से लेकर औद्योगिक व व्यापारिक विकास के इंजन बन चुके हैं। विकास के इन इंजनों को गतिमान रखते हुए सुविज्ञ दिशा देने का काम रिजर्व बैंक का है। वह यह काम देश की सकल अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में इस प्रकार करता है कि लोगों का सर्वांगीण विकास रोजगार से लेकर व्यापारिक अभिवृद्धि में हो। 
बेशक कोरोना काल ने करोड़ों रोजगार छीने हैं और व्यापार को मन्दा किया है मगर इसकी उल्टी दिशा में जाती आर्थिक दर को रिजर्व बैंक ने श्री दास के नेतृत्व में थामने का काम भी सफलतापूर्वक किया है। बेशक यह सफलता बहुत दबे स्वरूप में मिली है मगर अर्थव्यवस्था सही दिशा में तो जानी शुरू हुई है और इसका श्रेय श्री दास को दिया जा सकता है। अब जबकि केन्द्र का कोई मुख्य आर्थिक सलाहकार भी नहीं है, सारा दारोमदार श्री दास पर ही आकर टिकता है। वह एेसे दूसरे गवर्नर होंगे जो लगातार छह वर्ष तक इस पद पर रहेंगे। उनसे पहले श्री बिमल जालान को यह गौरव प्राप्त हुआ था। श्री जालान बाद में राज्यसभा में भी रहे और अपने छह वर्ष की इस सदन की सदस्यता के दौरान उन्होंने आर्थिक क्षेत्र के लिए कई महत्वपूर्ण सलाहें भी दीं जिन्हें तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने स्वीकार भी किया था।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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