सिख दुनिया के किसी भी कोने में क्यों ना हो उसके लिए गुरु ग्रन्थ साहिब का सम्मान सर्वोपरि होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु ग्रन्थ साहिब सिखों के जीवित गुरु हैं। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने इस संसार को छोड़ने से पहले सिखों को शब्द गुरु के हवाले करते हुए गुरु ग्रन्थ साहिब को ही अपना गुरु मानने का आदेश दिया था तब से सिख गुरु ग्रन्थ साहिब को गुरु मानते आ रहे हैं। सिखों ने जुल्म के खिलाफ अनेक युद्ध लड़े और विजय भी प्राप्त की क्योंकि उन्हें शक्ति गुरु ग्रन्थ साहिब से ही मिलती है। समय-समय पर गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी करके सिख समुदाय की ताकत कम करने और दिलों को ठेस पहुंचाने की कोशिशें की जाती रही हैं मगर आज तक इतिहास में कहीं भी किसी ने गुरु ग्रन्थ साहिब के पावन स्वरुप वाले स्थान की चैकिंग करने की जुर्रत नहीं की। बीते दिनों हरियाणा के नारायणगढ़ में मुख्यमंत्री के आगमन से पूर्व सुरक्षा के नाम पर पुलिसकर्मियों के द्वारा इस घटना को अन्जाम दिया गया जिससे संसार भर के सिखों में रोष उत्पन्न हो गया। किसानी संघर्ष के चलते हरियाणा सरकार पहले से ही सिखों के रोष को झेलती आ रही थी कि इस घटना ने तो मानो आग में घी डालने का कार्य कर दिया। हालांकि देखा जाए तो इसमें गलती सुरक्षाकर्मियों की कम और वहां मौजूद धार्मिक सेवाएं निभाने वाले सेवादार, संगत भी इसमें जिम्मेवारी से पीछे नहीं हट सकते क्योंकि जिन सुरक्षाकर्मियों ने इस घटना को अन्जाम दिया हो सकता है कि वह सिख मर्यादा के प्रति अन्जान हों। इसलिए सिखों को चाहिए था कि उन्हें रोका जाता अगर फिर भी वह नहीं मानते तो हम अकेले सुरक्षाकर्मियों को जिम्मेवार ठहरा सकते थे, मगर इससे भी अधिक अफसोसजनक बात कि कौम के जत्थेदार साहिबान ने एक दिमागी तौर पर बीमार व्यक्ति के द्वारा गुरु ग्रन्थ साहिब की घटना पर मौत के घाट उतार दिये जाने के बावजूद किसी भी गुरुद्वारा साहिब में उसका भोग न डालने के साथ-साथ परिवार वालों से किसी भी तरह का नाता न रखने तक की बात कह डाली मगर हरियाणा में सुरक्षा के नाम पर हुई बेअदबी पर चुप्पी क्यों साधी हुई है? यह भी विचारने वाली बात है।
गुरुद्वारा डोंगमार पर राजनीति गर्माई : इतिहासिक गुरुद्वारा डोंगमार पर सुप्रीम कोर्ट के आए आदेश के बाद सिख राजनीति पूरी तरह से गर्मा गई है। एक-दूसरे पर जमकर आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। इतिहास गवाह है कि 1516 ई. में गुरु नानक देव जी पूर्व की यात्रा करते हुए जब नेपाल, भूटान के रास्ते चीन को जा रहे थे तो इस स्थान पर विश्राम के लिए रुके थे जहां लोगों ने गुरु जी से फरियाद लगाई थी कि यहां डोंगमार झील जो कि समुन्द्रतल से करीब 18000 फीट की ऊंचाई पर हिमनदी चोटी के बीचो-बीच बहती है। ऊंचाई पर होने के कारण यहां साल में 6 से 8 महीने बर्फ रहने के कारण झील पूरी तरह से जम जाती है लोगों के पास पीने के लिए भी पानी नहीं रहता तो इस पर गुरु नानक देव जी ने अपनी छड़ी झील में एक स्थान पर रखकर वरदान दिया था तब से झील का वह हिस्सा पूरा साल पानी से भरा रहता है। बाद में यहां पर गुरुद्वारा साहिब भी सुशोभित किया गया जिसकी सेवा संभाल सेना के जवानों के द्वारा की जाती रही है। अधिक ठण्ड पड़ने के समय गुरु साहिब के पावन स्वरुप को नीचे चुंगथांग गुरुद्वारा साहिब में ले जाया जाता है मगर कुछ साल पूर्व स्थानीय लोगों के द्वारा जो बौध धर्म अपनाए हुए हैं इस स्थान को अपने अनुयायी का बताया जाने लगा जिसके चलते विवाद खड़ा हो गया और सरकार के द्वारा दोनों पक्षों में विवाद की स्थिति को देखते हुए गुरु साहिब के स्वरूप को चुंगथांग गुरुद्वारा साहिब में भेज दिया गया। इसके बाद यहां से गुरुद्वारा और गुरु नानक साहिब के आगमन के सबूत मिटाने के भी पूर्ण रूप से प्रयास किए गये।
2017 में सिलीगुड़ी गुरुद्वारा साहिब की कमेटी के द्वारा हाईकोर्ट में केस दायर किया गया और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी इसमें पार्टी बनकर केस लड़ती रही और हाईकोर्ट से हार के बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में दायर किया गया मगर अफसोस कि सही पैरवी न होने के चलते सिख समुदाय को नामोशी का सामना करना पड़ रहा है। अब सभी राजनीतिक दल एक-दूसरे पर इसका ठीकरा फोड़ते दिख रहे हैं। जहां अकाली दल के नेता मनजीत सिंह जीके और हरविन्दर सिंह सरना इसके लिए दिल्ली गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी पर आरोप लगा रहे हैं तो वहीं दिल्ली कमेटी के महासचिव जगदीप सिंह काहलो ने साफ किया है कि इसमें दिल्ली कमेटी किसी भी तरह से जिम्मेवार नहीं है क्योंकि न तो वह पार्टी थी और न ही केस की पैरवी कर रहे थे। उनके द्वारा इसके लिए सीधे तौर पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को जिम्मेवार ठहराया जा रहा है जिन्होंने इतने संवेदनशील मामले के बावजूद कोई काबिल वकील खड़ा करने की सोच ही नहीं रखी। दूसरी ओर गुरुद्वारा चंुगथांग की सेवा संभाल कर रहे बाबा यादविन्दर सिंह, कारसेवा दिल्ली वालों के द्वारा भी साफ किया गया है कि दिल्ली कमेटी का इसमें कोई रोल ही नहीं है वह तो सिक्किम के सिखों की अपील पर केवल बौधियों पर दबाव बनाने के लिए हर तारीख पर पहुंचते रहे हैं। अब इसमें कसूरवार कोई भी हो मगर एक बात तय है कि सिख नेताओं की आपसी खींचतान के चलते सिखों का एक और इतिहासिक स्थल सिखों के हाथ से जाता दिख रहा है। अभी भी समय है पार्टीवाद से ऊपर उठकर सभी को इस विषय को गंभीरता से लेते हुए आगे की रणनीति पर मिलकर विचार करना चाहिए।
गुरुद्वारा मजनूं का टिल्ला का रास्ता खुलना चाहिए : दिल्ली के गुरुद्वारा मजनूं का टिल्ला के सामने वाला रास्ता बन्द होने के चलते गुरुद्वारा साहिब आने वाले श्रद्धालुओं को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। केवल रास्ता ही बन्द नहीं किया गया बल्कि एक दीवार ही खड़ी कर दी गई है जिससे गाड़ियां तो दूर पैदल भी नहीं निकला जा सकता। अब इसके पीछे किसकी सोच काम कर रही है यह तो पता नहीं पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि एक सोची-समझी साजिश के तहत ऐसा किया गया है। समाज सेवी गुरमीत सिंह सूरा का कहना है कि प्रशासन के द्वारा ट्रैफिक जाम का हवाला दिया जा रहा है मगर मजनूं का टिल्ला के सिग्नल से पीछे दोनों ओर लम्बा जाम रहता है फिर इसी सिग्नल पर रास्ता क्यों बन्द किया गया। इससे पहले सिख श्रद्धालुओं को गुरुद्वारा शीश गंज साहिब में भी सुबह 9 बजे से लेकर रात्रि 9 बजे के बीच जाने पर 20 हजार के चालान भेजे जा रहे थे, काफी संघर्ष के बाद संगत के द्वारा ही उसका अस्थाई हल निकाला गया है। सिख समुदाय दोनों स्थानों के रास्ते स्थाई तौर पर खुलवाने की मांग सभी उम्मीदवारों से करता दिख रहा है और सभी इस पर आश्वासन भी देते दिख रहे हैं। अब यह तो समय ही बताएगा कि कौन अपने वायदों पर खतरा उतरता है और सिख समाज के गुरुद्वारों के रास्तों में आने वाली अड़चनों को दूर कर पाता है।
विदेश में जाकर पंजाबी का प्रचार : आमतौर पर देखने में आता है कि लोगों का पंजाबी भाषा के प्रति प्यार दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। ज्यादातर पंजाबी घरानों में बड़े बुजुर्गों को छोड़ दें तो युवा वर्ग अक्सर हिन्दी में ही बात करता दिखाई देता है। इसके लिए सरकारों को दोष देने से पहले पंजाबियों को अपने स्वयं के अन्दर पंजाबी भाषा के प्रति जुनून पैदा करना होगा। बचपन से ही बच्चों को पंजाबी भाषा बोलना ही नहीं लिखना-पढ़ना भी सिखाना होगा। बचपन में तो लोग बच्चों को इसकी आदत डालते नहीं फिर बड़े होकर बच्चों को दोष देते हैं कि पंजाबी क्यों नहीं सीखते। मगर अभी भी पंजाबी हैल्पलाइन संस्था के इकदीप सिंह गिल जैसे लोग हैं जो पंजाबी भाषा का प्रचार देश ही नहीं बल्कि कनाडा की धरती पर भी जाकर कर रहे हैं। कनाडा के मिसिसॉगा में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए गए छात्र इकदीप सिंह गिल ने कैनेडियन यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित 'कॉनवोकेशन प्रोग्राम' में डिग्री लेने से पहले सभी को पंजाबी भाषा में सम्बोधन किया। वह युवाओं को यथा संभव पंजाबी भाषा बोलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें अपनी मातृभाषा पंजाबी पर गर्व करने के लिए कहते हैं। इकदीप सिंह गोरों (अंग्रेजों) को पंजाबी भाषा से जोड़ने का प्रयास करते हैं। उन्होंने कहा कि पंजाबी भाषा का ज्ञान उन्हें अपने दादा, नाना और पिता से विरासत में मिला है।