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इज्जत वतन की हमसे है…

भारत निश्चित रूप से समय के द्वन्दात्मक दौर से गुजर रहा है। यह देश प्रेम और राष्ट्रवाद के बीच का द्वन्द ऊपर से देखने में लगता है परन्तु वास्तव में यह आत्म गौरव और आत्म प्रशंसा का द्वन्द है

भारत निश्चित रूप से समय के द्वन्दात्मक दौर से गुजर रहा है। यह देश प्रेम और राष्ट्रवाद के बीच का द्वन्द ऊपर से देखने में लगता है परन्तु वास्तव में यह आत्म गौरव और आत्म प्रशंसा का द्वन्द है जिसके तार 2019 के लोकसभा चुनावों के जनादेश से सीधे जाकर जुड़ते हैं। यह जनादेश पराक्रमी गौरवशाली भारत के अभ्युदय के लिए था जिसमें दुश्मन के घर में घुस कर मारने की सामर्थ्य और शक्ति की अभूतपूर्व दक्षता समाहित थी। जाहिर तौर पर यह राष्ट्रीय सुरक्षा के तरंगित भाव से ही संचालित था।  यह प्रश्न भारतीयों के लिए रोजी-रोटी से भी ऊपर का इसलिए रहा है क्योंकि महात्मा गांधी ने स्वतन्त्रता की लड़ाई को महज अंग्रेजों को बाहर निकालने के लिए ही नहीं लड़ा था बल्कि आम भारतीय में ‘स्वाभिमान’ जागृत करने के उद्देश्य से भी लड़ा था। 
गांधी की विरासत से यह देश स्वतन्त्रता के बाद हर समय और कालखंड में अभिप्रेरित रहा है और इस तरह रहा है कि पाकिस्तान के निर्माण को आज तक गैर वाजिब और नाजायज मानता है। अतः पाकिस्तान के मुद्दे पर आम भारतीय का भावुक हो जाना 1947 की ऐतिहासिक मानवीय त्रासदी को धिक्कारना ही होता है। यही वजह है कि आज सामान्य भारतीय लगातार पेट्रोल के दामों में हो रही बेतहाशा वृद्धि की तरफ खास ध्यान नहीं दे रहा है और सतत् बैठती अर्थव्यवस्था के प्रति भी उदासीन होकर तेजी से बढ़ रही बेरोजगारी के खिलाफ आवाज नहीं उठा रहा है और कोरोना के भयावह प्रकोप को झेलता हुआ हर कीमत पर चीन को माकूल जवाब मिलते हुए देखना चाहता है और कर्नल बी. सन्तोष बाबू व उनकी यूनिट के 19 जवानों के कत्ल का बदला सबसे पहले लेना चाहता है।
  चीन के मामले में यह साफ होना चाहिए कि 1962 में उसके द्वारा दिखाई गई क्रूर धोखेबाजी ने आम भारतीय के दिल में उसके ‘रंगा सियार’ होने का भाव भरा जिससे उसके द्वारा आज गलवान घाटी में की गई हरकत स्वतन्त्र भारत की ताजा त्रासदी के रूप में उभरी है। यही वजह है कि भारतीय सेना के 20 वीर सैनिकों की शहादत पूरे हिन्दोस्तान का खून उबाल रही है। फरवरी 2019 में कश्मीर के पुलवामा में पाकिस्तान की जालिमाना कार्रवाई का जिस तरह बदला तब हिन्दोस्तान ने लिया था उसी तरह के बदले की तवक्को आज आम हिन्दोस्तानी चीन से लेने की कर रहा है।  यह प्रश्न आम हिन्दोस्तानी के स्वाभिमान का प्रश्न बन चुका है जिसका उत्तर मौजूदा सरकार को ढूंढना है। भारत के लोग जानते हैं कि 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय फौजों ने लाहौर के निकट ‘इच्छोगिल’ नहर पर जाकर कुल्ला किया था और हाथ-पैर धोकर अपनी थकान उतारी थी। 1967 में सिक्किम की नाथूला सीमा चौकी पर चीनी सेना की धूल उतारते हुए उनसे अपनी सीमा चौकी खाली करा ली थी और चार सौ अधिक चीनी फौजियों को मौत के घाट उतार दिया था। 1971 में पाकिस्तान को बीच से चीर कर बंगलादेश बनवा दिया था।  भारत की आत्म उत्सर्ग को सदैव तैयार रहने वाली सेनाओं के प्रति भारतीयों के मन में शुरू से ही श्रद्धा और आदर रहा है। उनके शौर्य पर भारत का बच्चा-बच्चा जन्म से ही अभिमान भाव से भरा होता है। ऐसी सेना के 20 सैनिकों का चीन द्वारा कत्ल किया जाना भारत को भीतर तक भेद गया है। तथ्य तो यही रहेगा कि चीनी फौज आज भी लद्दाख की गलवान घाटी के पेगोंग-सो झील इलाके में डेरा डाले पड़ी है और 15 जून की कातिल घटना के बावजूद चीनी फौजों ने गलवान घाटी के हमारे ही इलाके में निर्माण कर लिया है। उपग्रह चित्रों से यह साफ हो चुका है। सूचना क्रान्ति के इस दौर में सत्य को घुमा कर नहीं कहा जा सकता लेकिन इस मुद्दे पर सभी भारतीय सबसे पहले भारतीय हैं बाद में उनका राजनीतिक दल आता है। 
बेशक लोकतन्त्र में चुनावों में जनादेश राजनीतिक दल को ही मिलता है मगर यह राष्ट्रहित के दायरे में ही मिलता है। राष्ट्रहित से ऊपर किसी भी पार्टी के लिए कोई हित नहीं हो सकता। अतः आज विपक्ष से लेकर सत्ता पक्ष को केवल राष्ट्रहित की बात ही करनी चाहिए और पूरी परिपक्वता के साथ करनी चाहिए।
 कांग्रेस कार्य समिति यदि अपनी विशेष बैठक बुलाकर कर्नल बी. सन्तोष बाबू व 19 सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करती है तो इसे देश प्रेम से इतर आंकना राजनीति होगी। कांग्रेस की इस भावना का भाजपा को सम्मान करना होगा क्योंकि यह देश हर राजनीतिक दल का है। इसी प्रकार भाजपा भी यदि सैनिकों के सम्मान में कोई कार्यक्रम करती है तो उसका  एहतराम कांग्रेस को करना होगा। चीन के खिलाफ हम टुकड़ों में बंट कर नहीं सोच सकते। एकजुटता के साथ हमें अपनी सरकार को यथोचित कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करना होगा मगर सबसे पहले मानना होगा कि चीन ने भारत की गैरत को ललकारा है। इससे कम भारतीयों को मंजूर नहीं है क्योंकि 2019 के जनादेश का यही निदेशक सिद्धान्त था। भारत की फौज तो वह फौज है जिसकी  कैफियत कवि ‘नीरज’ ने इस तरह पेश की थी- 
ताकत वतन की हमसे है , हिम्मत वतन की हमसे है, 
इज्जत वतन की हमसे है, इंसान के हम रखवाले 
पहरेदार हिमालय के हम , झौंकें हैं तूफान के 
सुन कर गरज हमारी सीने फट जाते चट्टान के…

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