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सेना का सम्मान करो…

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अगर सेना के जवान आतंकवादियों के खात्मे के लिए कश्मीर घाटी में लोकल लोगों के पत्थरों का सामना करते हैं और पत्थरबाज उन्हें उनका काम करने से रोकते हैं तो इसे क्या कहेंगे? क्या पत्थरबाजों के गुनाह माफ कर दिए जाएंगे? क्या आतंकवादियों के खिलाफ एक्शन लेने वाले सैनिकों के खिलाफ आप एफआईआर दर्ज करेंगे? क्या प्रशासन यह देखेगा कि किसने पत्थर पहली बार मारा? दुर्भाग्य से हमारे यहां यही हो रहा है। फायरिंग करने पर अगर सेना के खिलाफ आप एफआईआर करेंगे तो कल को सेना में कौन भर्ती होने की कोशिश करेगा? आतंकवादियों को पनाह देने वाले और सेना पर पत्थर फैंकने वालों के खिलाफ कागजों पर राष्ट्रद्रोह का केस दर्ज किया जाता है परंतु भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से जम्मू-कश्मीर में सरकार चलाने वाली महबूबा सरकार इस केस को खत्म करके पत्थरबाजों के गुनाह माफ कर देती है। आखिरकार इस व्यवस्था का जवाब कौन देगा? यह परंपरा जम्मू-कश्मीर में जिस तरह से शुरू हुई है इसे रोकने के लिए लोग मोदी सरकार से अपील करते हुए सोशल साइट्स पर अपनी भावनाएं शेयर कर रहे हैं।

सब जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर के शोपियां में हिंसक भीड़ पर गोलीबारी के मामले में सेना के मेजर आदित्य कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी गई है जो कि बिल्कुल ही गलत और गैर-कानूनी है। अब उनके पिता ने इस एफआईआर को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई है। हम इसका दिल से स्वागत करते हैं। इसी कड़ी में कुछ सैनिकों के बच्चों ने भी पत्थरबाजों के मामले पर सेना के खिलाफ एफआईआर को लेकर ह्यूमन राइट कमीशन को गुहार लगाई है तथा आयोग ने इस पर सरकार से रिपोर्ट तलब की है। सेना के काफिले पर अगर कोई हमला करता है, पूरी भीड़ हिंसक होकर पत्थर फैंकती है, गोलियां चलाती है, हालात बेकाबू हो जाते हैं, सेना की चेतावनी की परवाह नहीं होती तो भी आप एक मेजर को चुनकर उसके खिलाफ एफआईआर करा देते हो तो इसे वापस लेना होगा। खुद मनमर्जी करने वाली महबूबा सरकार के कार्य-कलाप पर अंकुश लगाना होगा। लोग साफ कह रहे हैं कि घाटी में माहौल खराब करने का काम खुद प्रशासन की शह पर हो रहा है। सुरक्षा का ढांचा खुद शासन ने खराब कर रखा है। महबूबा, जो जम्मू-कश्मीर की सीएम हैं, के बारे में हर कोई जानता है। एक मुख्यमंत्री की बेटी के अपहरण के नाटक के बाद आतंकवादियों की रिहाई हो जाती है, सारा इतिहास महबूबा के बारे में जानते हुए भी अगर यह सरकार उनसे समझौता करते हुए, उन्हें सीएम बना देती है तो यह देश का दुर्भाग्य ही है। एक और चौंकाने वाली बात यह है कि आजकल मैडम महबूबा के सुर बदले हुए हैं।

वह पाकिस्तान से वार्तालाप का सिलसिला शुरू करने के लिए मोदी सरकार को सलाह देने का काम सार्वजनिक मंचों पर कर रही हैं। लोग सोशल साइट्स पर एक-दूसरे से शेयर करते हुए पूछ रहे हैं कि ऐसी क्या मजबूरी है कि सरकार महबूबा सरकार को समर्थन दे रही है। आखिरकार आतंकियों का सिर कलम कर देने के वादे और पत्थरबाजों से निपटने के तरीकों पर भाषणबाजी अब सब कुछ समझ से बाहर है। घाटी के लोगों के दिलों में अमन-चैन की भावना स्थापित करने वाली सेना के जवानों पर हर शुक्रवार को ईद की नमाज अदा होने के बाद पत्थर फैंकने की परंपरा बदस्तूर जारी है और ऊपर से मैडम महबूबा ने पत्थर फैंकने वाले गुनाहगारों के खिलाफ केस वापसी की जो परंपरा शुरू की है, उसकी कीमत सेना चुका रही है। इस बात का अहसास सरकार को भी हो जाना चाहिए वरना इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। यूं तो राष्टय और अंतर्राष्टय स्तर पर आतंकवाद के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सही काम कर रहे हैं और उनकी नीतियों को सराहा भी जा रहा है लेकिन अगर महबूबा सरकार एक ही झटके में हमारी सेना के खिलाफ एक्शन के लिए प्रशासन को तानाशाह की तरह चला रही है तो यह बर्दाश्त नहीं होगा।

सोशल साइट्स ऐसी शेयरिंग से भरी पड़ी हैं। नेता लोग समाज का आइना होते हैं। आपकी वर्किंग लोगों के दिलो-दिमाग में छा जानी चाहिए लेकिन महबूबा की वर्किंग का हिसाब-किताब उल्टा ही हो रहा है। हालांकि लोग कहते हैं कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, एनएसए अजीत डोभाल जैसी सशक्त टीम के चलते सरकार पाकिस्तान से अच्छे से निपट रही है लेकिन अब लोगों की पहली मांग यही है कि सेना पर पत्थरबाजों के साथ-साथ महबूबा की तानाशाही से भी निपटना चाहिए। जरा गिनती कीजिए कि कितने सैनिक दो महीनों में शहीद हुए हैं। यह सब काम उस दिन से तेज हुआ है, जिस दिन से पत्थरबाजों के खिलाफ केस वापस लिए जाने शुरू हुए हैं। सेना का डर महबूबा प्रशासन जिस तरीके से फैला रहा है वह गलत है। डर तो खुद प्रशासन के लोग फैला रहे हैं और सेना की एक गलत तस्वीर पेश कर रहे हैं। आतंक को फैलाने वाले लोगों को अपने यहां शरण देने वालों को कोई कुछ नहीं कहता। दिल्ली में एक चोर-उचक्के के खिलाफ एफआईआर तक वापिस नहीं होती, लेकिन घाटी में सेना पर गोली चलाने वाले के केस वापस हो रहे हैं। महबूबा जी आप जो कुछ करवा रही हैं इससे सेना के मनोबल पर असर पड़ता है। अगर आपसे समर्थन वापस लेने की बात आप तक पहुंच जाए या ऐसी कोई योजना बनने लगे तो आपके मनोबल पर कैसा असर पड़ेगा, जरा यह भी सोच लीजिए। वक्त आ गया है कि नापाक आतंकियों पर नकेल कसते हुए अब महबूबा के नापाक इरादों को भी नेस्तनाबूद करना होगा, इसका इंतजार देशवासियों को है।

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