अगर हम अपना इतिहास खोलें तो जहां महिलाओं का अपमान, तिस्कार हुआ है वहां विनाश ही हुआ है। हम सब जानते हैं कि ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता’’ अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है परन्तु आजकल के चुनावी माहौल को देखकर यही लग रहा कि ये बातें कहने के लिए ही हैं, करने के लिए नहीं। ऐसी क्या मारामारी है कि हर इन्सान यह भी भूल जाता है कि उसके घर में भी बेटी, मां-बहन हैं। ऐसी जीत या राजनीति के क्या मायने जो किसी स्त्री को अपमानित करके हासिल की जाए। मैंने बहुत से अभियान चलाये ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘Selfi with Daughter’ स्लोगन बनाया आदि परन्तु हर जगह महिलाओं का दर्द देखा, समझा। कुछेक ही महिलाएं हैं जो मर्यादाओं के चलते सम्मानित जीवन व्यतीत करती हैं बाकी तो मुझे लगता है उन्हें अभी भी पुरुषों की छोटी सोच और गन्दी मानसिकता का शिकार होना पड़ता है। मेरा यह भी मानना है कि महिलाओं को ईश्वर की ओर से बहुत से गुण सहनशीलता, त्याग, ममता, समझौता करने की शक्ति दी जिससे वह आगे बढ़ती है परन्तु अभी भी पुरुषों को यह स्वीकार नहीं होता कि कैसे एक महिला उनसे आगे बढ़ जाए, जो अपनी असुरक्षा की भावना को छुपाने के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं, जो उनकी मनोस्थिति और संकीर्ण मानसिकता को दर्शाती है।
पहले तो देश में कोई भी पार्टी ऐसी नहीं जिसने महिलाओं को 33 प्रतिशत या उसको कुछ प्राथमिकता दी हो, अगर कुछ पार्टियों ने दी भी है तो महज सीट जीतने के लिए, किसी की श्रेष्ठता देखकर नहीं। सही मायने में महिलाओं को आगे ही नहीं आने दिया जाता इसीलिए आज की गन्दी राजनीति में पुरुषों को महिलाओं के प्रति अभद्र टिप्पणी करने का साहस होता है। मेरा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है परन्तु सबसे ज्यादा बदजुबानी भी मेरे ही देश के नेताओं में है। पिछले दिनों तो करनाल में पुलिस ने महिलाओं पर लाठियां भी बरसा दीं, मुझे महिलाओं और अन्य लोगों और पत्रकारों ने वीडियो भेजी और कहा कि कुछ करो। जिन्हें ये नहीं पता कि किसके खिलाफ क्या बोलना है। सपा के आजम खान, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बहन मायावती, भाजपा की मंत्री मेनका गांधी, उमा भारती के अलावा गुरु के नाम से मशहूर नवजोत सिंह सिद्धू कब क्या कह जाएं मालूम ही नहीं। पहली बार चुनाव आयोग ने संज्ञान लेते हुए इन्हें थोड़ी सी सजा दी है।
मुझे तो लगता है अब जो भी सरकार बने उसे बड़बोले नेताओं काे अच्छा आचरण सिखाने के िलए देश में एक संस्कार, आचरण मंत्रालय स्थापित करना चाहिए। संत कबीर, तुलसीदास, रहीम ने नारी के सम्मान और प्रेमपूर्वक तथा मधुर भाषा प्रयोग में लाने की बातें कही हैं लेकिन आज भारत देश संस्कारों का भले ही कहा जाता हो लेकिन अभद्र बोलवचन उसकी संस्कृति पर दाग लगा रहे हैं। जब पिछले 5 वर्ष अश्विनी जी सांसद रहे तो मैंने राजनीति को (जो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं) बहुत नजदीक से देखा।
मैंने और अश्विनी जी ने इसे बड़ी ईमानदारी से समाजसेवा और राष्ट्र सेवा की ओर ले जाने की कोशिश की परन्तु ईमानदारी दूसरे राजनीतिज्ञों को रास नहीं आती। राजनीति में ईमानदार होना पाप है, सत्य बोलना पाप है, महिलाओं का सम्मान करना पाप है? हमने चौपाल के माध्यम से स्वाभिमानी महिलाओं को अपने पांवों पर खड़ा करने की कोशिश की, बहुत सी महिलाओं को सम्मान दिलवाया जिन्हें सिर्फ राजनीति में भीड़ इकट्ठा करने के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था। बहुत सी बेटियां Adopt कीं जो अब कुछ बनने के कगार पर हैं। मुझे लगता है मुझे ही आने वाले समय में महिलाओं के लिए एक ऐसा मंच, संगठन या पार्टी तैयार करनी पड़ेगी जो महिलाओं की रक्षा करे, उनकी तरफ कोई आंख उठाकर देखे तो आंख अंधी हो जाएं और जो बदजुबानी करे उसकी जुबां बंद कर दूं।
अंत में यही कहूँगी कि इस दूषित बोलवचन की परम्परा पर नियंत्रण करना होगा। भाजपा हो या कांग्रेस या सपा-बसपा कोई भी हो, अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाले नेता और मंत्रियों के खिलाफ एक्शन तो लिया ही जाना चाहिए। नारी का सम्मान अगर नहीं होगा तो फिर यह देश नरक बन जाएगा। आओ लोकतंत्र को महान और इज्जतदार बनाएं।