पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम-2017 में जब नये प्रावधान कर पशु बाजार में जानवरों को काटने के लिये बेचने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था तो काफी होहल्ला मचा था। सरकार के इस कदम के बाद मांस निर्यात व्यापार पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। पिछले वर्ष मई में जारी अधिसूचना के चलते किसी भी शख्स को पशु बाजार में मवेशी को लाने की इजाजत नहीं दी गई थी, जब तक कि वहां पहंुचने पर वह पशु के मालिक द्वारा हस्ताक्षरित लिखित घोषणा पत्र न दे दे जिसमें मवेशी के मालिक का नाम और पता हो और फोटो पहचान पत्र की प्रति भी लगी हो।
किसी भी मवेशी काे तब तक बाजार में नहीं बेचा जा सकता था, जब तक उसके साथ लिखित में घोषणा पत्र न दिया जाये। साथ ही इसमें यह उल्लेख करना जरूरी था कि पशु को मांस के कारोबार और हत्या के मकसद से नहीं बेचा जा रहा। इन तमाम प्रतिबन्धों के चलते किसान और मांस व्यापारी सबसे अधिक प्रभावित हुए। सरकार को जबरदस्त आलोचना का शिकार होना पड़ा। किसानों ने कृषि उपयोग में आने वाले पशुओं के लिये बाजारों में व्यापार को सीमित करने के लिये इस कदम का विरोध किया था। किसान आमतौर पर पशुधन बाजारों में अपने अनावश्यक जानवरों को ले जाते हैं, जहां व्यापारी मवेशी खरीदते हैं।
पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम को लेकर केन्द्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से करारा झटका लगा था जब उसने केन्द्र सरकार की अधिसूचना पर मद्रास हाईकोर्ट की ओर से लगाई गई रोक को पूरे देश में लागू करने का फैसला सुनाया था। अधिसूचना जारी होने के बाद देश में गाय, बैल, भैंस, बछड़े और ऊंट को कत्लखानों के लिए खरीदने और बेचने पर पूरी तरह रोक लगा दी गई थी। इससे किसानों, पशुपालकों और मांस व्यापारियों का ‘आर्थिक चक्र’ प्रभावित हुआ। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, केरल सरकार और कुछ आम राज्यों ने इस अधिसूचना का कड़ा विरोध किया था। देश में हर वर्ष एक लाख करोड़ का मांस कारोबार होता है। वर्ष 2016-17 में 26,303 करोड़ का निर्यात हुआ। उत्तर प्रदेश मांस निर्यात के मामले में सबसे ऊपर और उसके बाद आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना का नम्बर आता है।
ज्यादातर राज्यों में साप्ताहिक पशु बाजार लगते हैं और उनमें से कई राज्य पड़ोसी राज्य से लगी सीमा पर पशु मेले आयोजित करते हैं ताकि व्यापार फैलाया जा सके। राज्यों ने यह भी कहा कि इससे चमड़े का व्यापार प्रभावित होगा। नये नियमों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बहुत खराब असर हुआ। पशु बिक्री का बाजार तो लगभग ढह ही गया। गैर उपयोगी पशु छुट्टा घूमने लगे। गाैवंश वध रोकने के लिये सख्ती की जानी चाहिए क्योंकि जनभावनाएं गाय से जुड़ी हैं लेकिन यह भी सच है कि कई राज्यों में गाैमांस का भक्षण होता है।
सरकारें कभी भी लोगों की खान-पान की आदतें नहीं बदल सकती और न ही ऐसा संभव है। एक तरफ मोदी सरकार हर क्षेत्र में व्यापार को सरल यानी ईज आफ डूइंग बिजनेस की बात करती है, किसानों की आय दोगुना करने की बात करती है तो दूसरी तरफ तथाकथित गाैरक्षक लगातार देश में हंगामा मचाते रहते है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि किसानों की आय बढ़े तो कैसे बढ़े। पशु ही किसानों की सम्पत्ति होती है। जब किसी किसान के लिये पशु उपयोगी नहीं रहते तो वह उन्हें बेचेगा ही। किसानों पर ऋण का बोझ पहले ही काफी ज्यादा है। पशु क्रूरता निवारण कानून से तो डेयरी, चमड़ा और खाद्य उद्योगाें पर अस्तित्व का संकट मंडराने लगा था।
लाखों लोगों को रोजगार देने वाला सैक्टर तबाह हो जाने के आसार नजर आने लगे थे। भारत के चमड़ा उद्योग में मवेशी की खाल बड़ा आधार है। भारत में जूता-चप्पल उद्योग को 95 फीसदी हिस्सा मवेशी के चमड़े से आता है। दवा, खेल और निर्माण उद्योगों में चमड़ा अवशेषों का उपयोग भी काफी ज्यादा है। डेयरी उद्योग, बूचड़खाने, चमड़ा उद्योग एक-दूसरे के पूरक हैं। अगर मवेशियों की संख्या बढ़ जायेगी तो समस्याएं बढ़ेंगी ही। अशक्त पशुओं की देखरेख कौन करेगा? ज्यादा घास और चरागाहों की जरूरत होगी, कृषि जमीनों और घास भरे मैदानों पर दवाब बढ़ेगा, उससे क्षरण होगा। मृत जानवरों को दफनाने से जुड़े स्वास्थ्य नुक्सान भी नजरंदाज नहीं किये जा सकते। इससे पर्यावरण प्रभावित हो सकता है। अब जबकि गैर-कृषि सैक्टर के लिये व्यापार आसान बनाया जा रहा है तो फिर कृषि क्षेत्र और पशु बाजार में भी व्यापार करना सरल होना ही चाहिये। सरकारें सामाजिक सरोकार की उपेक्षा नहीं कर सकतीं। क्या कोई बाजार एक झटके से बंद किया जा सकता है?
अधिसचूना जारी किये जाते ही सरकार को इस बात का अहसास हो चुका था कि यह तर्कसंगत नहीं है। अब सरकार ने अपने कदम वापिस लेने का फैसला किया है। अब कानून के नये संस्करण में ‘वध’ शब्द को हटाने की तैयारी कर ली है। कानून मंत्रालय द्वारा अधिसूचना जारी करने से पहले पर्यावरण मंत्रालय, वन आैर जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा इसका परीक्षण किया जा रहा है। नये संस्करण में पशु बाजार में बीमार और युवा जानवरों की खरीद-फरोख्त की जा सकती है। कुछ पशुओं को नान स्लाटर सूची से बाहर किया जा सकता है। सरकार को कृषि सैक्टर के प्रति अपना रवैया बदलना होगा। कृषि क्षेत्र में भी ईज आफ डूइंग बिजनेस बनाना होगा। कृषि के अलावा पशु बाजार, चमड़ा उद्योग पर भी ज्यादा ध्यान देना होगा। सरकार के रोल बैक से लाखों लोगों को राहत ही मिलेगी।
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