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‘तांडव’ पर बवाल

फिल्मों और टीवी धारावाहिकों को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं। पहले भी ऐसा होता आया है। निर्माता निर्देशक माफी मांग लेते हैं या फिर फिल्मों और टीवी धारावाहिकों की शुरूआत में डिस्कलेअर लगा दिया जाता है।

फिल्मों और टीवी धारावाहिकों को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं। पहले भी ऐसा होता आया है। निर्माता निर्देशक माफी मांग लेते हैं या फिर फिल्मों और टीवी धारावाहिकों की शुरूआत में डिस्कलेअर लगा दिया जाता है। मामला शांत हो जाता है। ऐसे विवाद कभी-कभी स्वर्तफुर्त होते हैं तो कभी-कभी पब्लिसिटी हासिल करने के लिए भी इन्हें स्टंट की तरह इस्तेमाल किया जाता है। वेब सीरिज तांडव को लेकर सियासत गर्माई हुई है। तांडव में हिन्दू देवताओं का अपमान कर हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने के खिलाफ कई जगह सीरिज के निर्माता निर्देशकों और अभिनेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई गई है। उनकी गिरफ्तारी की मांग जोर पकड़ने लगी। 
सीरिज के पहले 15 मिनट में ही अभिनेता जीशान अयूब की एंट्री होती है, पात्रों के बीच चल रहे एक कार्यक्रम से, जिसमें वो नाटक के दौरान हाथ में डमरू और त्रिशूल लिए भगवान शिव का रूप धारण किए हुए हैं। नाटक के दौरान आजादी-आजादी के नारे लगते हैं और जीशान अयूब के मुंह से आपत्तिजनक शब्द निकलते हैं। एक तरह से इस सीन को जेएनयू के साथ जोड़कर दिखाया गया है। वेब सीरिज के इसी सीन और जीशान अयूब के भगवान शंकर के रूप में बोले गए संवाद को लेकर ही सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है। तांडव पर प्रतिबंध लगाये जाने की मांग उठ रही है। सवाल यह भी है कि फिल्मों  और टीवी धारावाहिकों में देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आघात क्यों पहुंचाया जाता है। निर्माता-निर्देशक किसी दूसरे धर्म को अपमानित करने का दुस्साहस क्यों नहीं करते? हंगामे के बीच निर्देशक अली अब्बास जफर ने एक लेटर ट्वीट कर कहा है ​कि वे किसी की भावना को चोट नहीं पहुंचाना चाहते, अगर ऐसा हुआ है तो वो माफी मांगते हैं। निर्माताओं की ओर से यह कहा गया है कि दर्शकों की प्रतिक्रिया को गौर से मानिटर किया जा रहा है। लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने संबंधी शिकायतों को गम्भीरता से लिया गया है। किसी जाति, समुदाय या धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने या बेइज्जत करने की मंशा नहीं रखी गई थी। यह एक फिक्शन है। ​किसी भी जीवित व्यक्ति या घटना के संबंध में पूरी तरह संयोग है। निर्माता-निर्देशक ने माफी मांग कर और घिसे-पिटे शब्दों का इस्तेमाल कर आक्रोश को ठंडा करने का प्रयास किया है। कानून अपना काम करता रहेगा। इस विवाद का दूसरा पहलु यह भी है कि अगर हंगामा नहीं मचता तो ‘तांडव’ के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया साधारण ही रहती। अब हर कोई तांडव देखने को लालायित है। विवादास्पद दृश्य हटाने की मांग की जा रही है ताकि देश में कहीं शांति, सौहार्द और अापसी भाईचारे का वातावरण खराब न हो। तांडव के विवादास्पद होने के बाद सीरिज की लोकप्रियता काफी बढ़ गई। ​​निर्माता-निर्देशक कुछ भी कहें सीरिज का कथानक वास्तविक घटनाओं पर आधारित है। तांडव में दिल्ली में किसान आंदोलन दिखाई दिया। जेएनयू की जगह वीएनयू है, जिसमें ‘आजादी’ के नारे सुनाई देंगे। कालेज कैम्पस के भीतर छात्र गुटों के बीच मारपीट भी देखने को मिलेगी। तांडव में राजनीति का तांडव भी देखने को मिलेगा। कहीं-कहीं महसूस होता है कि फिल्म में टुकड़े-टुकड़े गैंग को ग्लोरीफाई करने की कोशिश की गई। वंशवादी राजनीति पर चोट भी की गई है।
वर्तमान दौर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग हर सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर किया जा रहा है। वह देश में समाधान कम, समस्या ज्यादा पैदा करता हुआ दिखाई दे रहा है। वास्तव में सोशल मीडिया  प्लेटफार्मों और ओटीटी प्लेटफार्मों से समाज का बड़ा हिस्सा जुड़ा हुआ है। इस तरह इस प्रचार तंत्र पर समाज की भावनाएं बिना किसी नियंत्रण के परोसी जा रही हैं। यह सच है कि जो कुछ परोसा जा रहा है, उससे कई स्थानों पर समाज में घातक स्थितियां भी निर्मित हुई हैं। दंगे भी हुए हैं और देश के विरोध में वातावरण बनता हुआ भी दिखाई ​दिया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अपनी जिम्मेदारियां भी हैं। इस बात को ध्यान में रखना होगा कि फिल्में हों या वेब सीरिज में कही गई बातों से किसी का अहित न हो। समाज में विद्वेष घोलने वाली कोई बात ही नहीं होनी चाहिए। अधकचरे ज्ञान और सामाजिक जिम्मेदारियों के बीच जो विचार प्रस्तुत किए जा रहे हैं वह सभी विद्वेष पर आधारित एक कल्पना को ही उजागर करते हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भी तांडव को लेकर स्पष्ट कर दिया है कि ओटीटी प्लेटफार्म पर दिखाए जाने वाले कंटेट को सेल्फ रेगुलेशन कोड बनाएं। अगर ओटीटी प्लेटफार्म ऐसा नहीं करते तो फिर सरकार कोड बनाने पर विचार करेगी। लेखन की स्वतंत्रता के नाम पर कानून व्यवस्था बिगड़ने नहीं दी जाएगी। कोरोना के चलत ज्यादातर फिल्में ओटीटी पर रिलीज हो रही हैं। अगर ये फिल्में पर्दे पर आतीं तो उन्हें गाइड लाइन्स का पालन करना होता। ओटीटी प्लेटफार्मों पर दिखाए जाने वाले सीरिज अश्लीलता की हदें पार कर रहे हैं। कुछ तो ऐसे हैं  केवल सैक्स को ग्लोमरराइज करते हैं। ओटीटी प्लेटफार्मों पर जो कंटेट प्रसारित हो रहा है उस पर​ निगरानी के लिए तंत्र स्थापित करने की जरूरत है अन्यथा​ निर्माता-निर्देशक एक नहीं दस-दस तांडव बना देंगे। समाज में वैमनस्यता पैदा करने वाली शक्तियां पहले से ही सक्रिय हैं।  अगर हम जिम्मेदार नहीं बने तो फिर ‘तांडव’ होना तय है।
­­आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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