लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

उग्रवादी की मौत पर बवाल!

मेघालय भारत के पूर्वोत्तर में स्थित एक पहाड़ी राज्य है। यहां की तीन प्रधान जनजातियां खासी, गारो और जयंतिया समुदाय के अपने पारम्परिक राजनीतिक संस्थान हैं जो सैकड़ों वर्षों से चले आ रहे हैं।

मेघालय भारत के पूर्वोत्तर में स्थित एक पहाड़ी राज्य है। यहां की तीन प्रधान जनजातियां खासी, गारो और जयंतिया समुदाय  के अपने पारम्परिक राजनीतिक संस्थान हैं जो सैकड़ों वर्षों से चले आ रहे हैं। ये राजनीतिक संस्थान गांव स्तर पर, कबीले स्तर पर और राज्य स्तर पर काफी विकसित और कार्यरत हैं। प्रत्येक जनजाति की अपनी संस्कृति, पहनावा और अपनी भाषा है। यह जनजातियां अपनी संस्कृति और अपनी पहचान को बनाये रखने के मामले में बहुत संवेदनशील हैं, साथ ही वे मानवाधिकारों को लेकर काफी जागरूक भी हैं। कई बार अपवाद स्वरूप कानून व्यवस्था बनाये रखने वाली एजैंसियां कुछ ऐसा कर बैठती हैं, जिससे लोगों की भावनायें आहत हो जाती हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में फर्जी मुठभेड़ें काफी चर्चित रही हैं। मेघालय में समर्पण करने वाले उग्रवादी की पुलिस मुठभेड़ में मौत होने के बाद आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाओं के बीच शिलांग में कर्फ्यू लगा दिया गया है। चार जिलों में मोबाइल इंटरनेट सेवायें बंद करनी पड़ी हैं। हालात इस कदर बिगड़ गए कि अज्ञात बदमाशों ने मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के निजी आवास के परिसर में पैट्रोल बम फेंक दिए।
इसी बीच मेघालय के गृहमंत्री लखमेन रिंबुई ने इस्तीफा दे दिया है और साथ ही अन्य समर्पण करने वाले प्रतिबंधित हाईनीवट्रेप नेशनल लिबरेशन काउंसिल के स्वयंभू महासचिव चेरिस्टफील्ड थांगखियू को गोली मारने के मामले की न्यायिक जांच करने का भी आग्रह किया है। पुलिस का कहना है कि थांगखियू 2018 में आत्मसमर्पण के बाद आईईडी हमलों का मास्टरमाइंड रहा। पुलिस के पास उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। जब एचएनएलसी के पूर्व उग्रवादी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने छापामारी की तो उसने पुलिस पर चाकू से हमला ​िकया, जिससे जवाबी कार्रवाई में वह मारा गया। इसके बाद हिंसा भड़क उठी। पुलिस की कहानी किसी के गले नहीं उतर रही। अब सवाल यही है कि क्या पुलिस ने कानून के सिद्धान्तों का उल्लंघन किया है? स्वयं इस्तीफा देने वाले गृहमंत्री ने इस घटना पर आश्चर्य व्यक्त किया है। अगर पुलिस के पास उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत थे तो उसे गिरफ्तार कर मुकद्दमा चलाया जाना और सजा देने का अधिकार अदालत के पास है। अगर पुलिस खुद ही फैसले लेने लगे तो इससे अराजकता फैलने का खतरा बना रहता है।
पिछले कुछ वर्षों से पुलिस द्वारा किए गए कई एनकाउंटरों पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए थे तो सुप्रीम कोर्ट ने मुठभेड़ों के संबंध में कुछ दिशा-निर्देश जारी किये थे। मूल मुद्दा यह है कि भारत का कानून आत्मरक्षा के अधिकार के अन्तर्गत आम आदमी को जितने अधिकार देता है पुलिस को भी वही अधिकार प्राप्त हैं। पुलिस हर बार एक ही कहानी दोहराती है कि किसी अपराधी को गिरफ्तार करने गए तो हमला होने पर आत्मरक्षा के लिए उसे भी गोली चलानी पड़ी या अपराधी भाग रहा था तो उसे गोली चलानी पड़ी। यह कहना भी ठीक नहीं होगा कि पुलिस को आत्मरक्षा के लिए आम आदमी की तुलना में ज्यादा अधिकार होना चाहिए। पुलिस के पास तो पहले से ही गिरफ्तार करने, हथियार रखने, जांच आदि करने के कई अधिकार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मुठभेड़ों की निष्पक्ष जांच के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे लेकिन यह जारी दिशा निर्देश भी आम आदमी को अधिक सुरक्षित नहीं बना पाए।
हाईनीवट्रेप नेशनल लिबरेशन काउंसिल एक आतंकवादी संगठन है जिसका उद्देश्य मेघालय को कथित बाहरी लोगों के वर्चस्व से मुक्त कराना है। इस संगठन में खासी जयंतिया आदिवासी लोगों का वर्चस्व है। 2019 को केन्द्र में मोदी सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह ग्रुप पूर्वोत्तर के अन्य विद्रोही समूहों के साथ मिलकर धन जुटाने के लिए नागरिकों को धमकाता है और अपने कैडर को ट्रेनिंग देने के लिए बंगलादेश में इसने अपने कैम्प स्थापित कर रखे थे। पिछले दिनों शिलांग में आईईडी विस्फोट हुआ था जिसमें दो लोग घायल हुए थे। अब सवाल यह भी है कि एक उग्रवादी की मौत पर बवाल क्यों मचा? पुलिस की मुठभेड़ की शैली में हत्या से जनता में आक्रोश है। पुलिस ने आईईडी विस्फोट के सिलसिले में जिन लड़कों को गिरफ्तार किया था, उनमें से अधिकतर जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ता हैं या फिर विद्रोही संगठन के प्रति सहानुभूति रखते हैं। इनमें से कुछ नशे के आदी हैं। हिंसा का कारण पुलिस द्वारा मामले से निपटने का गलत तरीका रहा। नागरिकों ने पुलिस एक्शन को लेकर गंभीर आरोप लगाये हैं। पुलिस और पीडि़त परिवार दोनों से जरूरी तथ्य की पुष्टि के लिए मेघालय मानवाधिकार आयोग को स्वतंत्र जांच करनी चाहिये। पूर्वोत्तर के राज्य बहुत संवेदनशील हैं। पुलिस को बहुत संजीदगी से काम करने की जरूरत है। कोई भी चिंगारी आग के तौर पर भड़क सकती है। लगभग सभी राज्यों में सीमा विवाद है। पुलिस द्वारा मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ हिंसा भड़क सकती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

14 + twelve =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।