मैं अतीत की बात कर रहा हूं तो आपको ले चलना चाहता हूं उस अतीत की ओर जो भारत और रूस की मैत्री का सुनहरा अतीत है। एक ऐसा अतीत, जिसकी डोर हम सफलतापूर्वक बढ़ा नहीं सके। अगर हम ऐसा कर पाते तो भारत-रूस मैत्री की फिजां कुछ और ही होती। बात 20 दिसम्बर 1955 की है। यह भारत के लिए ऐतिहासिक अवसर था। ऐतिहासिक इसलिए कह रहा हूं कि उस दिन पूर्व सोवियत संघ के राष्ट्रपति बुल्गानिन और प्रधानमंत्री ख्रुश्चेव दोनों ही भारत आए थे। दोनों ने ही उस दिन यादगार भाषण दिए। तब भारत को आजाद हुए मात्र 8 वर्ष हुए थे। उन्होंने अपने भाषण में कहा था :
”आज आपके महान राष्ट द्वारा हमारा जो स्वागत किया जा रहा है उसे हम इस रूप में नहीं लेते कि यह एक देश द्वारा दूसरे देशों के राष्टध्यक्षों के प्रति दिखाई गई एक औपचारिकता मात्र है। हम सचमुच इसे इस रूप में नहीं लेते। हम भारत और सोवियत संघ की मैत्री को एक ऐसे अटूट बन्धन के रूप में लेते हैं जो बन्धन शाश्वत है और सदा के लिए है। यह महज औपचारिक स्वागत या रस्म अदायगी नहीं।धीरे-धीरे दिल्ली और मास्को की दूरियां कम होती जा रही हैं और हम ऐसा महसूस करते हैं कि हमारी मित्रता और एक-दूसरे के प्रति समझ दिनोंदिन प्रगाढ़ होती जा रही है। हम यह मानते हैं कि जहां तक सरकारों और राजनीतिक दृष्टिकोण का प्रश्न है, हमारे सोचने के ढंग और हमारी कार्यशैली अलग-अलग हो सकती हैं, परन्तु इससे बढ़कर हम दोनों ही राष्ट मानवीय संवेदनाओं को ही सर्वोपरि मानते हैं।हम एक-दूसरे के पड़ोसी देश हैं और एक अच्छे पड़ोसी के क्या मायने होते हैं, हम दोनों देश अच्छी तरह समझते हैं। हमारी मित्रता ऐसी होनी चाहिए और इसका विकास इस भांति होना चाहिए कि दोनों देशों के नागरिक इसका फायदा उठा सकें और सुख तथा दु:ख में हम दोनों देश एक-दूसरे के काम आ सकें। हम दोनों देश न केवल पारस्परिक सहयोग और मित्रता के अर्थ ही समझते हैं, अपितु पूरे और खुले दिल से यह महसूस करते हैं कि हमारी मित्रता का सबसे व्यापक लक्ष्य है-विश्व शांति! भारत और रूस के पास एक महान विरासत है जिस प्रकार से हमने आजादी हासिल की है, दोनों ही देश ‘विश्व शांति’ का महत्व इस परिप्रेक्ष्य में समझते हैं।”
उसके बाद तो सोवियत संघ भारत का विश्वसनीय दोस्त बन गया। 1971 में भारत-पाक के दौरान जब अमेरिका ने अरब सागर की तरफ अपने सबसे बड़े नौवें बेड़े को रवाना कर दिया तो यह रूस ही था जिसने अमेरिका के जंगी बेड़े इंडीपेंडेंट को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अपने युद्धपोत को भेजा था। रूस ने भारत में औद्योगिक संरचना की बुनियाद को स्थापित किया। एक-एक करके उसने स्टील कारखाने स्थापित किए। जब भारत ने कहा कि हम सेटेलाइट बनाएंगे तो अमेरिका ने हमारा मजाक उड़ाया था और कहा था कि ”जरूरी है आप धान उगाओ क्योंकि हिन्दुस्तानी भूखे हैं।” उसने ऐसा कहकर सार्वभौमिक देश पर फूहड़ मजाक किया था। तब भी रूस ने न सिर्फ भारत को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी दी बल्कि अकेले भारतीय राकेश शर्मा को अंतरिक्ष भ्रमण का मौका दिया। स्वर्गीय इन्दिरा गांधी ने 1971 युद्ध के बाद रूस से 20 वर्षीय सामरिक संधि की थी। इस संधि में उल्लेख था कि अगर कोई देश भारत पर आक्रमण करता है तो रूस भारत की मदद करेगा। इस संधि की वजह से भारत को ऐसा सुरक्षा कवच मिला जिससे हम अपनी आर्थिक प्रगति भी निर्बाध रूप से करते रहे और पूरी दुनिया भी हमारी तरफ नजरें उठाकर देखने की हिम्मत नहीं कर सकी। इस संधि को दो बार आगे बढ़ा चुके हैं।
अब कहा जा रहा है कि भारत-रूस सम्बन्धों में वो बात नहीं जो पहले थी। यह बात सही है कि सोवियत संघ का विघटन रूस के लिए जितना दर्दनाक साबित हुआ, उससे कम भारत के लिए भी नहीं हुआ। इस विघटन के बाद रूस कमजोर पड़ा और भारत की ऊर्जा अमेरिका की तरफ प्रवाहित हुई तो अमेरिका ने भी भारत से कूटनीतिक सम्बन्ध ही रखे। भारत-अमेरिका के सम्बन्ध तो भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार के बाद जाकर सहज हुए हैं। रूस ने भी इस करार का सबसे पहले स्वागत किया था। भारत को याद रखना होगा कि जब हमारे परमाणु रिएक्टर परमाणु ईंधन की कमी के चलते बन्द होने के कगार पर थे और अमेरिका परमाणु ईंधन देने से इन्कार कर रहा था तो रूस ने ही आगे बढ़कर हमें 60 टन यूरेनियम भेज दिया था। कई मामलों में रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की भारत से नाराजगी दिखी, इसका कारण भारत का अमेरिका की ओर ज्यादा झुकाव ही रहा। भारत ने भी रूस से रिश्ते ठण्डे ही रखे। मनमोहन ङ्क्षसह शासनकाल में भी दोनों देशों के रिश्ते ठण्डे ही रहे लेकिन रूस ने हमेशा भारत से दोस्ती निभाई।
गृहमंत्री राजनाथ ङ्क्षसह रूस दौरे पर हैं। भारत-रूस ने सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में द्विपक्षीय सहयोग में मजबूती प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और दो रणनीतिक साझेदारी के अहम समझौते किए। गृहमंत्री राजनाथ ङ्क्षसह और रूस के गृहमंत्री ब्लादीमिर कोलोकोल्तसेव ने इन पर हस्ताक्षर किए। आतंकवाद, चरमपंथ और कट्टïरपंथ से लडऩे में सहयोग मजबूत करने के लिए इस द्विपक्षीय सम्बन्ध का एक अहम पहलू सुरक्षा में सहयोग करना है। भारत-रूस समझौता अक्तूबर 1993 के दोनों देशों के बीच हुए समझौते की जगह लेगा। दशकों से वक्त की कसौटी पर खरे उतरे भारत-रूस सम्बन्ध को और मजबूत बनाने की जरूरत है। भारत सरकार को ही अमेरिका और रूस के रिश्तों में संतुलन बनाकर रखना होगा क्योंकि रूस जैसा विश्वस्त दोस्त अमेरिका नहीं हो सकता।