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बच्चों के लिए बने सुरक्षा कवच

भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने तबाही मचा दी है। इस बार कोविड-19 की चपेट में बच्चे भी आ रहे हैं। वहीं तीसरी लहर के खतरे ने लोगों को और भी डरा दिया है। यद्यपि यह तय नहीं है कि तीसरी लहर कब आएगी और यह भी नहीं पता कि यह कितनी खतरनाक होगी। अलग-अलग अनुमान सामने आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि तीसरी लहर बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगी। सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि बच्चों के लिए कोरोना की कोई वैक्सीन भारत में नहीं बनी और इसके अलावा कई ऐसी दवाएं हैं जो बच्चों को नहीं दी जा सकतीं। इस स्थिति में बच्चों को लेकर बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है।  अंधकार में कुछ किरणें भी दिखाई दे रही हैं। अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने फाइजर बायोटेक की कोरोना वायरस वैक्सीन को 12 वर्ष या उससे ऊपर के बच्चों को भी लगाने की इजाजत दे दी है। अभिभावकों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं कि यह वैक्सीन बच्चों पर कितनी कारगर है और यह बड़ों से कितनी अलग है। भारत के लिए यह चिंता की बात इसलिए भी है क्योंकि यहां 12 साल से कम उम्र के बच्चों की बड़ी आबादी है। देश में 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों की संख्या कम से कम 16.5 कराेड़ है। अगर तीसरी लहर में उनमें से केवल 20 फीसद के संक्रमित होने और संक्रमितों में से केवल 5 फीसदी को क्रिटिकल केयर की जरूरत पड़ेगी, ऐसा मानें तो हमें 1.65 लाख पीडियाट्रिक आईसीयू बेड्स की जरूरत पड़ेगी। आज की स्थिति यह है कि अस्पताल मरीजों से भरे पड़े हैं, लोगों को बेड नहीं मिल रहे। बच्चे ही किसी भी देश का भविष्य होते हैं और उन्हें बचाने के लिए हमें बच्चों के पेरेंट्स को जल्द से जल्द दोनों डोज के साथ वैक्सीनेट करना होगा। हमें अगले कुछ महीनों में कम से कम 30 करोड़ युवा पेरेंट्स को वैक्सीन लगानी होगी। 
फिलहाल देश में वैक्सीन की कमी साफ दिखाई दे रही है। कई राज्यों में वैक्सीन खत्म होने के चलते सेंटर बंद करने पड़े हैं। दरअसल वैक्सीन का उत्पादन सीमित है, इसलिए सप्लाई बाधित हो रही है। इस वक्त जब देश में संक्रमितों की संख्या साढ़े तीन लाख से चार लाख के मध्य दर्ज हो रही है तो टीकाकरण में तेजी लोने की मांग भी बढ़ रही है। कोवैक्सीन उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत बायोटेक ने कुछ कम्पनियों से अनुबंध किया है। इनमें से एक कम्पनी बुलंदशहर की बिबकोल है जो हर माह कोवैक्सीन के दस लाख डोज तैयार करेगी। इसके अलावा भारत बायोटेक पुणे में प्लांट लगा रही है। महामारी के प्रकोप पर काबू पाने के लिए कोई एक कम्पनी ही जरूरत को पूरा नहीं कर सकती। अलग-अलग कम्पनियां जब तक वैक्सीन के उत्पादन के क्षेत्र में नहीं उतरेंगी देश की मांग को पूरा कर पाना आसान नहीं है। 
केन्द्र आैर राज्य सरकारों को दुनिया भर से जहां भी वैक्सीन उपलब्ध हो उन्हें हासिल करने के प्रयास करने चाहिए। अगर अभिभावकों का टीकाकरण हो जाएगा तभी वह बच्चों की देखभाल आसानी से कर पाएंगे। बच्चों को कोविड आईसीयू में उनकी मां या पिता बिना नहीं छोड़ा जा सकता। व्यस्कों को तो आईसीयू में नर्सेज और डार्क्ट्स सम्भाल लेते हैं लेकिन नवजातों और छोटी उम्र के बच्चों को बिन अभिभावक छोड़ा नहीं जा सकता। स्थिति को देखते हुए भारत में विशेषज्ञ कमेटी ने दो साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन के ट्रायल को मंजूरी दी है। कमेटी ने भारत बायोटेक के टीके कोवैक्सीन को क्लीनिकल ट्रायल की सिफारिश की थी। सिफारिशों को मानते हुए ड्रग्स कंट्रोल जनरल आॅफ इंडिया ने इसके ट्रायल की स्वीकृति दे दी है। यह ट्रायल कई शहरों में किया जाएगा। उम्मीद है कि हमारे वैज्ञानिक बच्चों के लिए वैक्सीन ईजाद कर लेंगे। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को भी अभी से ही बच्चों के लिए बेड की व्यवस्था शुरू कर देनी चाहिए।
अभिभावकों को भी चाहिए कि वह अपने बच्चों के लिए अभी से ही सुरक्षा कवच बनाने का काम शुरू कर दें। उन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाए गए कुछ तरीके अपनाने होंगे। 6 से 11 साल के बच्चों को मास्क पहनाना चाहिए, दो साल से छोटे बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग के बारे में समझाएं और उन्हें बार-बार हाथ धोने की आदत डालें। बच्चों के फेफड़ों को मजबूती देने के लिए उन्हें गुब्बारे फुलाने के लिए दें। उनकी इम्युनिटी बढ़ाने के ​लिए काम करें। उन्हें डराएं नहीं, उन्हें सावधानी के बारे में समझाएं। जब तक बच्चों के लिए कोई वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक अभिभावकों को उनका सुरक्षा कवच बनाना होगा।

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