1971 में जब बंगलादेश का विश्व के मानचित्र पर उदय हुआ तो यह भी भारत की भांति धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र था परन्तु 15 अगस्त 1975 को जब इसके राष्ट्र निर्माता शेख मुजीबुर्रहमान की परिवार के कुछ अन्य लोगों के साथ नृशंस हत्या की गई तो उसके बाद कई बार सैनिक शासन हुआ जिस दौरान इस देश का राजधर्म इस्लाम घोषित कर दिया गया। बंगलादेश में मुसलमानों की जनसंख्या 85 प्रतिशत से अधिक है मगर इसके बावजूद यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना था। इसकी मुख्य वजह यह थी कि बहुसंख्य मुस्लिम होने के बावजूद इस देश की मूल संस्कृति 'बांग्ला' है । बांग्ला संस्कृति इतनी प्रखर है कि इसमें हिन्दू-मुस्लिम का भेद बंगाली होने बाद आता है। इस संस्कृति में बांग्ला भाव ही सबसे प्रमुख है। इस देश के लोगों के खान- पान से लेकर वेशभूषा में भी आम तौर पर हिन्दू-मुस्लिम भेद नजर नहीं आता है। यह बात जरूर है कि कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी तत्वों की मौजूदगी भी इस देश में है जिन्हें अलग से पहचाना जा सकता है । 1947 में इसके पूर्वी पाकिस्तान बन जाने के कारण कट्टरपंथी तत्वों को भी इस इलाके में पैर जमाने में पाकिस्तानी सरकार ने काफी मदद की थी मगर इसके बावजूद यहां मुस्लिम लीग कभी सफल नहीं हो सकी थी।
1971 से पहले ही शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग को 1970 में हुए चुनावों में इतनी जबर्दस्त सफलता मिली थी कि पूर्वी पाकिस्तान से मुस्लिम लीग को केवल दो सीटें ही राष्ट्रीय असैम्बली में मिली थी। इस देश में आज लगभग 9 प्रतिशत हिन्दू रहते हैं जो सभी अवामी लीग के हित चिन्तक हैं। बंगलादेश के उदय के बाद हिन्दू समाज यहां पूरी निर्भीकता व स्वतन्त्रता के साथ रह रहा था। सरकारी नौकरियों तक में इनका प्रतिनिधित्व रहता है। इनके पूजा स्थल मन्दिरों को भी पूरी सुरक्षा प्रदान की जाती है और तीज-त्यौहारों पर मुस्लिम समाज के लोग भी उनकी खुशी में शामिल होते हैं। मगर विगत जुलाई महीने से इस देश में छात्रों का जो आन्दोलन शुरू हुआ उसमें कुछ कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी के लोग भी घुस गये। इसके साथ ही बंगलादेश की प्रमुख विपक्षी बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी भी जमात की हिमायती मानी जाती है। इसके सदस्यों ने भी छात्र आन्दोलन की दिशा न मोड़ने का काम किया। एेसे सभी तत्वों ने मिलकर विगत 5 अगस्त को अवामी लीग की प्रमुख व प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजेद के देश छोड़ने के बाद हिन्दुओं को निशाना बनाना शुरू किया व उनके मन्दिरों में तोड़फोड़ भी शुरू की।
हिन्दुओं पर हमला करने वाले लोग छात्र आन्दोलन में घुसे जमात-ए-इस्लामी व बीएनपी के ही बताये जा रहे हैं क्योंकि आन्दोलकारी छात्रों ने बंगलादेश की सड़कों पर अब ये नारे लिखे हैं कि 'बंगलादेश सभी धर्मों के लोगों के लिए है'। कट्टरपंथियों को बंगलादेश विरोधी भी कहा जा सकता है क्योंकि इन्होंने अपने देश के उस 'शहीद स्मारक' का भी विध्वंस कर दिया जो 1971 के बंगलादेश मुक्ति संग्राम की प्रतीक थी। कट्टरपंथी बंगलादेश मुक्ति संग्राम के चिन्हों तक को मिटा देना चाहते हैं और हिन्दुओं को प्रतािड़त करना चाहते हैं। शाही स्मारक में उन यादों को मूर्तियों व चित्रों के माध्यम से संजोकर रखा गया था जिनसे आने वाली पीढि़यां अपने देश के लिए किये गये संघर्ष से परिचित हो सकें और अपने पुरखों पर गर्व कर सकें। इसमें वह तस्वीर भी शामिल है जब 16 दिसम्बर, 1971 को पाकिस्तानी फौज के कमांडर मेजर जनरल नियाजी ने भारतीय फौजी कमांडर लेफि. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष अपने 90 हजार से अधिक सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया था। कट्टरपंथी जमात के लोग भारत को भी अपना दुश्मन मानते हैं और पाकिस्तान की पैरवी करते हैं लेकिन बंगलादेश में नवगठित अन्तिम सरकार के गृहमन्त्री सखावत हुसैन ने अपने देश के हिन्दुओं से उन पर हुए हमलों की माफी तो जरूर मांगी है मगर इसकी जिम्मेदारी शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग पर डाली है जबकि तथ्य इसके विपरीत हैं। अवामी लीग की छात्र शाखा पूरे आन्दोलन के ही विरोध में थी तो फिर इसके लोग दंगाई कैसे हो सकते हैं जबकि हुआ इसका उल्टा है।
आन्दोलन में घुसे जमात व कट्टरपंथी तत्वों ने शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा को न केवल धराशायी किया बल्कि यह सब करने से पहले मूर्ति पर चढ़कर पेशाब भी किया। एेसा घृणित कार्य केवल कट्टरपंथी तत्व ही कर सकते हैं। सखावत हुसैन ने माफी जरूर मांगी है मगर इसका तब तक कोई मतलब नहीं जब तक कि प्रत्येक बंगलादेशी हिन्दू स्वयं को पूरी तरह निडर व स्वतन्त्र महसूस न करे। हर बंगलादेशी में हिन्दू-मुसलमान में फर्क करना पूरी तरह बेमानी है क्योंकि इस देश के हिन्दू-मुसलमान दोनों की संस्कृति बांग्ला है। प्राचीन हिन्दू मन्दिरों को बंगलादेश अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानता है और दुर्गा पूजा के त्यौहार को भी राष्ट्रीय पर्व का दर्जा देता है। दुर्गा पूजा के समय लगाये गये पांडलों को सरकारी सुरक्षा प्राप्त होती है। अपने ऊपर हो रहे हमलों के विरोध में कल इस देश के हिन्दू सम्प्रदाय के लोगों ने अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस से भी भेंट करके अपना दुख व्यक्त किया था। इसी के बाद सखावत हुसैन ने उनसे माफी देने की अपील की है। बंगलादेश की किसी भी सरकार का अपने देश के अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा देने का दायित्व बनता है फिर चाहे वह अंतरिम सरकार ही क्यों न हो। जब बंगलादेश का संविधान कहता है कि इसके प्रत्येक धर्म के नागरिक एक समान हैं और उनका धर्म देखकर उनके साथ भेदभाव नहीं किया जायेगा तो फिर मोहम्मद यूनुस का ही सबसे पहले दायित्व बनता है कि वे उन पर हमला करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें।