भारतवर्ष के लिए सबसे पहले हिन्दुस्तान शब्द का प्रयोग श्री गुरुनानक देव जी ने करीब-करीब 5 सदियों पूर्व किया था, जब अपनी आंखों से उन्होंने बाबर के आक्रमण को देखा और गहन संवेदना के क्षणों में यह वाणी रची:
”खुरासान खमसाना कीया, हिन्दुस्तान डराया
आप दोष न दयीं करता जमकर मुगल चढ़ाया
ऐती मार पयी कुरलाणे, तैं कि दर्द न आया”
उपरोक्त वाणी श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है। गुरुजी कहते हैं ‘हे परमात्मा तुमने खुरासान (समरकंद, उज्बेकिस्तान) को तो अपनी कृपा से बचा लिया, परंतु हिन्दुस्तान आतंकित हो गया। इतना जुल्म बाबर ने किया कि सारी मानवता कांप उठी, परंतु हे अर्शों के दाता, तुम्हें दया नहीं आई।”
हिन्दुस्तान के हिन्दुओं ने हमेशा ही जुल्म सहे अगर हिन्दू आतंकवादी होता तो क्या मजाल थी विदेशी मुस्लिम आक्रांता उस पर जुल्म ढहा सकते। अगर हिन्दू उग्र होता तो देश का बंटवारा नहीं होने देता। हिन्दुस्तान की अस्मिता पर लगातार चोट की जाती रही, फिर अंगे्रजों ने भारत को गुलाम बना लिया। लम्बे संघर्ष के बाद आजादी मिली लेकिन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने इस देश में हिन्दुत्व को अस्पृश्य बनाने की साजिशें रचीं। राजनीतिज्ञों के ओछेपन, कलुष और राजनीतिक कुटिलता के कारण हिन्दुओं को बदनाम किया गया। भारत लगातार पाक प्रायोजित आतंकवाद को झेल रहा है। निर्दोषों का खून लगातार बह रहा है। भारतीय सेना औैर अर्धसैनिक बलों के जवान शहादतें दे रहे हैं लेकिन अफसोस! तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों को अब भी शर्म नहीं आई।
18 फरवरी, 2007 को पानीपत में समझौता एक्सप्रैस ब्लास्ट में जो खुलासा हुआ है, वह काफी चौंका देने वाला है। हादसा दस वर्ष पुराना है, इसमें 68 लोग मारे गए थे लेकिन अब तक आखिरी फैसला नहीं आया है। इस केस में जांच अधिकारी रहे इंस्पैक्टर गुरदीप सिंह , जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने कुछ दिन पहले अदालत में अपना बयान दर्ज करवाया है। बयान के अनुसार- यह सही है कि समझौता ब्लास्ट में पाकिस्तानी अजमत अली को गिरफ्तार किया गया था। वह बिना पासपोर्ट के, बिना वैध दस्तावेजों के भारत आया था, वह दिल्ली, मुंबई समेत कई शहरों में घूमा था, उसने इलाहाबाद जाने की बात भी कही जो सच निकली लेकिन अपने सीनियर अधिकारियों, सुपरिंटेंडेंट आफ पुलिस और डीआईजी के निर्देश के मुताबिक उन्होंने अजमत अली को कोर्ट से बरी कराया। स्पष्ट है कि पाकिस्तानी को ऊपर के आदेशों से छोड़ा गया। सबसे बड़ी बात है कि ब्लास्ट के बाद दो प्रत्यक्षदर्शियों ने बम रखने वाले का जो हुलिया बताया था, वह भी अजमत अली से मिलता-जुलता था। 14 दिन का रिमांड खत्म होने पर उम्मीद की जा रही थी कि पुलिस उसका दोबारा रिमांड मांगेगी लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया बल्कि उसे रिहा करवा दिया।
मनमोहन शासन के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने बयान दिया था कि समझौता ब्लास्ट के पीछे लश्कर-ए-तैयबा का हाथ है लेकिन जांच बैठने के कुछ दिन बाद ही इस केस में भगवा आतंकवाद का नाम आ गया। पुलिस अधिकारियों की बैठक में तय किया गया कि इस मामले को एनआईए के हवाले किया जाये। तब यह बात भी हुई कि जांच में हिन्दू टेरर ऐंगल से भी जांच होनी चाहिए। आखिर सवाल उठता है कि जांच में हिन्दू टेरर का ऐंगल देने की बात किसने कही। तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कांग्रेस अधिवेशन में भगवा आतंकवाद की बात करते सबको चौंका दिया था। बाद में पी. चिदम्बरम और दिग्विजय ङ्क्षसह ने भगवा आतंकवाद के जुमले का जमकर इस्तेमाल किया। पाकिस्तानियों को छोड़ दिया गया और स्वामी असीमानंद को आरोपी बनाकर इस केस को पूरी तरह पलट दिया गया। आखिर इसके पीछे किसका दिमाग था- क्या पी. चिदम्बरम, दिग्विजय ङ्क्षसह या शिंदे में से कोई इस षड्यंत्र में शामिल था? इस सच का बाहर आना जरूरी है। कांग्रेस ने भगवा या हिन्दू आतंकवाद का मिथक मुस्लिम वोट बैंक हासिल करने के लिए खड़ा किया था। कांग्रेस ने इस मिथक पर इतिहास की धारा उलटी करने की शर्मनाक कोशिश की थी।
प्रखर हिन्दुत्व के उद्घोषक लोकमान्य तिलक, योगी अरविन्द घोष, वीर सावरकर सहित अधिकांश क्रांतिकारी और सनातन धर्म में रचे-बसे महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी रामायण और श्रीमद् भागवत गीता को स्वाधीनता के लिए प्रेरणास्रोत मानते थे।
भगवा सनातन धर्माधिष्ठान पर आधारित हिन्दू जीवन शैली का प्रतीक है। उच्च जीवन मूल्यों के लिए समर्पण, निर्बलों की रक्षा और सेवा ही हिन्दू का कर्म और धर्म माना जाता है। आतंक का कोई मजहब नहीं होता, कोई रंग नहीं होता लेकिन कांग्रेस ने भगवा आतंकवाद का मिथक गढ़कर राष्ट्रवादी हिन्दुओं को भयभीत करने और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया लेकिन देश की जनता ने कांग्रेस को विपक्ष का दर्जा हासिल करने के लिए भी सीटें नहीं दीं। काश! कांग्रेस ने वोट बैंक की राजनीति नहीं की होती, तो पूर्वोत्तर के राज्यों का जनसांख्यिकी का स्वरूप नहीं बदलता, जिहादी इस्लाम और नक्सली हिंसा का दायरा बढ़ता चला गया। काश! उसने सत्ता के लिए प्रलाप न किया होता। क्या कभी किसी हिन्दू ने आज तक यह कहा है कि आगरा का ताजमहल या दिल्ली का लालकिला भारत की शान नहीं हैं। बेशक इसे मुगल बादशाहों ने ही बनवाया था। भारत के हिन्दू कभी कट्टरपंथी नहीं रहे और इसका उपदेश उनके धर्म ने ही दिया है। हिन्दुत्व को बदनाम करने की कोशिश करने वालों का भांडा फूटना ही चाहिए और वृहद अर्थों के आलोक में भारत की जनता का आकलन किया जाए।