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सलीम दुर्रानी : आवाज पे छक्का

भारतीय क्रिकेट टीम के दिग्गज बल्लेबाज रहे सलीम दुर्रानी के निधन से उनके प्रशंसकों में शोक की लहर व्याप्त है।

भारतीय क्रिकेट टीम के दिग्गज बल्लेबाज रहे सलीम दुर्रानी के निधन से उनके प्रशंसकों में शोक की लहर व्याप्त है। आज के दौर में आईपीएल और  क्रिकेट के क्लब संस्करणों के दीवाने युवाओं को शायद उनके बारे में बहुत कम जानकारी हो लेकिन उनके समकालीन लोग उनके बारे में जानते हैं। मेरे पिता और पंजाब केसरी के मुख्य संपादक रहे अश्विनी कुमार जी कलम थामने से पहले क्रिकेटर थे। इसलिए मैं क्रिकेट के इतिहास से परिचित हूं। मेरे पिता अक्सर मुझे अपने क्रिकेट के दौर के संस्मरण सुनाया करते थे। भारतीय क्रिकेट का इतिहास काफी दिलचस्प और  हैरानी भरा है। भारतीय क्रिकेटरों ने अपने बढि़या प्रदर्शन से इतिहास रचा है। ऐसे कई क्रिकेटर हुए हैं जिनकी चर्चा आज भी होती है। ऐसे ही क्रिकेटर थे सलीम दुर्रानी। क्रिकेट इतिहास में सलीम दुर्रानी एक शानदार आल राउंडर के तौर पर जाने जाते थे लेकिन उनकी बल्लेेबाजी की खासियत थी कि वह प्रशंसकों की आवाज पर छक्का लगाया करते थे। वह अपने दौर के स्टाइलिश खिलाडि़यों में से एक थे। लंबे और नीली आंखों वाले सलीम दुर्रानी जहां भी जाते थे लोग उन्हें घेर लेते थे। जब भी वह स्टेडियम में खेलते थे तो दर्शक आवाजें लगाते थे “सलीम भाई इधर, सलीम भाई इधर” तो वह उसी स्थान पर छक्का लगा देते थे जहां से मांग आ रही होती थी। इसी खेल शैली ने उनको लोकप्रियता के शिखर पर पहुचा दिया था। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि कोई अफगान बच्चा भारत में इतना नाम रोशन करेगा।
सलीम दुर्रानी पहले ऐसे भारतीय क्रिकेटर हैं जिन्हें सबसे पहले अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया था। भारतीय क्रिकेट के उभार में उनका बड़ा योगदान रहा है लेकिन मैदान के बाहर वह एक रोमांटिक और दिलफैंक युवा थे तो मैदान के भीतर वह एक गंभीर खिलाड़ी। सलीम दुर्रानी के क्रिकेट आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो बहुत साधारण लगते थे लेकिन जिन लोगों ने उनके साथ क्रिकेट खेली है उनके लिए यह आंकड़े कोई मायने नहीं रखते। भले ही उनका जन्म अफगानिस्तान के काबुल में हुआ लेकिन बाद में उनका परिवार कराची में आ बसा था। दुर्रानी केवल आठ महीने के थे तो उनका परिवार कराची पहुंचा था। 1947 में जब भारत और  पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो सलीम दुर्रानी का परिवार भारत आ गया था। भारत की माटी में खेलते-खेलते वह बड़ा हुआ और उसने क्रिकेट को अपना करियर बनाया। 
दुर्रानी ने भारत की ओर से कुल 29 टैस्ट मैच खेले और इस दौरान 1202 रन बनाए जिनमें 1 शतक और 7 अर्धशतक शामिल रहे, इसके अलावा 75 विकेट लेने में सफल रहे थे। उन्होंने साल 1960 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ मुंबई टेस्ट में डेब्यू किया था। बता दें कि भले ही दुर्रानी का करियर बड़ा नहीं रहा लेकिन उन्होंने अपने खेल से दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। दर्शकों के कहने पर छक्का जमाने के लिए दुर्रानी काफी मशहूर थे। वे 60-70 दशक में आतिशी बल्लेबाजी करने के लिए जाने जाते थे। दुर्रानी फैंस के बीच काफी पॉपुलर थे, इसका नजारा साल 1973 में इंग्लैंड के खिलाफ कानपुर टैस्ट में उनको प्लेइंग इलेवन में शामिल नहीं किया गया जिसके बाद फैंस ने मैच के दौरान साइन बोर्ड पर ‘नो दुर्रानी नो टैस्ट’ लिखकर इसका विरोध किया। सलीम दुर्रानी जो भी कहते थे खुलकर कहते थे। एक बार एक पार्टी  में इंग्लैंड के ऑफ स्पिनर पैट पोकाॅक को कहा था ‘जब तुम बॉलिंग करोगे तो मैं तुम्हारी पहली ही गेंद पर ईस्ट स्टैंड में छक्का लगाऊंगा और हुआ भी यही।’ पोकाक ने मुंबई टैस्ट में अपनी पहली गेंद फेंकी तो दुर्रानी ने अपने वादे के मुताबिक उनकी पहली गेंद पर ईस्ट स्टैंड की तरफ छक्का जड़ दिया। सलीम दुर्रानी को मजाक करना और जोरदार ठहाके लगाना बहुत पसंद था। उनके इसी अंदाज के दीवाने सुनील गावस्कर भी रहे। सुनील गावस्कर ने अपनी आत्म कथा में उनका काफी जिक्र किया है। टैस्ट क्रिकेट से रिटायर होने के बाद उन्होंने मशहूर फिल्म अभिनेत्री परवीन बॉबी के साथ बतौर हीरो चरित्र फिल्म भी की। उन्होंने फिल्म अभिनेत्री तनुजा के साथ फिल्म एक मासूम में भी काम किया था। उन्होंने अपनी जिंदगी में काफी उतार-चढ़ाव भी देखे। उम्र के बढ़ने के साथ-साथ वह कैंसर से जूझने लगे थे। उम्र के अंतिम दौर में उन्हें आर्थिक संकटों का सामना भी करना पड़ा लेकिन उन्होंने इस बात का आभास दूसरों को नहीं होने दिया। उन्हें 2011 में बीसीसीआई की तरफ से लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी नवाज गया था। सलीम दुर्रानी अपने शानदार लुक्स के लिए भी जाने जाते थे। उनके प्रशंसक उनके लुक पर अपना दिल कुर्बान कर देते थे। क्रिकेट के इस लीजैंड ने गुजरात के जामनगर में अंतिम सांस ली लेकिन क्रिकेट के इतिहास में उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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