ओलम्पिक बेटियों को सैल्यूट

ओलम्पिक बेटियों को सैल्यूट
Published on

जहां दुनियाभर के खिलाड़ी ओलम्पिक में अपने आपको श्रेष्ठ दिखाने के लिए कंपीटीशन में उतरे हों वहां आप विजेता बनने के आखिरी पड़ाव पर पहुंच जाएं तो यह किसी भी देश के लिए एक गौरव की बात हो सकती है। देश की बेटियों ने, देश के बेटों ने हमेशा भारत की शान बढ़ाई है लेकिन आज की दुनिया में कंपीटीशन का स्ट्रेस जीवन के हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। जो कुछ हमारी बेटी विनेश फोगाट के साथ हुआ तो मैं यही कहूंगी कि खिलाडि़यों को बहुत ही दुर्लभ केस में ट्रेजडी भी झेलनी पड़ती है। महिला पहलवान फोगाट जब अपने पचास किलो वजन के फाइनल में पहुंच गयी तो गोल्ड मुकाबले से 10 घंटे पहले उसे डिसक्वालीफाई कर दिया गया। यह ओलम्पिक में भारतीय कुश्ती क्वीन के जीवन की एक सबसे बड़ी ट्रेजडी है। यदि वह फाइनल में हार भी जाती तो भी उसे रजत पदक मिल जाता और वह देश के नाम एक और इतिहास लिख देती। नियम भी कितने दर्दनाक होते हैं यह अहसास देश को उस समय हुआ जब बताया गया कि फोगाट का वजन 100 ग्राम ज्यादा है। अब हमारे देश की बेटी ने तीन दिन पहले ही एक्स पर अपनी मां को एक भावुक संदेश देकर कहा कि मां, कुश्ती जीत गयी लेकिन मैं हार गयी और इसके साथ ही मैं खेल को अलविदा कह रही हूं। इस शेरनी ने माफी मांगते हुए कहा कि मेरी हिम्मत अब टूट चुकी है। ज्यादा ताकत भी नहीं रही। दो बार की विश्व चैंपियनशिप में कांस्य जीत चुकी फोगाट ने कहा कि मैंने इस मामले में अपील भी की थी लेकिन बात नहीं मानी गयी। कुल मिलाकर किसी भी खेल में महारत हासिल करने के लिए वर्षों बीत जाते हैं। लड़की होने के नाते आपको बहुत कुछ झेलना पड़ता है।
हरियाणा के जिला हिसार से जुड़ी विनेश फोगाट ने लड़कों वाले इस खेल में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और पूरी दुनिया से लोहा लिया लेकिन हमारा यह मानना है कि उसे नियमों ने हराया है, देश ने ​िसर आंखों पर बैठाया है। वह ओलम्पिक चैंपियन को हराकर ही फाइनल में पहुंची थी। इसी कड़ी में जो बीत गया सो बीत गया कहकर फोगाट को आगे बढ़ना चाहिए। फोगाट का यह अपना फैसला है लेकिन मेरा यह मानना है कि भविष्य में वह कुश्ती की प्रेरणास्रोत बनी रहेगी और देश के नये खिलाडि़यों, नई-नई लड़कियों को ट्रेनिंग देकर उनका मार्गदर्शन करेगी। फिर भी इस बात की जांच होनी चाहिए कि भारतीय अधिकारियों की टीम जब उसके साथ थी जो उसके लिए रणनीति बनाते थे और डाइट तय करते थे, यह पता किये जाने की जरूरत है कि आखिरकार उसके महज 100 ग्राम बढ़े हुए वजन को लेकर क्या योजना थी।
इस कड़ी में हमारी दूसरी बेटी मनु भाकर ने भी शूटिंग में एक नहीं दो-दो कांस्य पदक जीतकर जिस तरह देश की शान बढ़ाई है वह काबिलेतारिफ है। संयोग से यह बेटी भी हरियाणा के झज्जर से जुड़ी है। जहां लड़कियों को घूंघट में रखा जाता था वहां की लड़कियां सिद्ध कर रही हैं, मां-बाप सिद्ध कर रहे हैं कि हरियाणा की छोरियां क्या छोरों से कम हैं। इसी कड़ी में मैं मीराबाई चानु जो भारोत्तोलिका है, का मुकाबला देख रही थी, उसने कुल 199 किलो वजन उठाया और एक अंक से वह कांस्य पदक से चूक गयी लेकिन देश का नाम उसने भी रोशन किया है। अपना दमखम भारोत्तोलन जैसे खेल में दिखाना यह एक बहुत बड़ी बात है। भारत दुनिया के नक्शे पर खेल जगत में एक नई शक्ति बनकर उभर रहा है। हरियाणा का लाल नीरज चोपड़ा भारत माता का सपूत बनकर उभरा है। पिछले ओलम्पिक में उसने गोल्ड जीता था। भाला फेंक में आज भी उसका कोई सानी नहीं है और वह इस बार भी लगातार दूसरा पदक लाकर इतिहास बना चुका है। वह चोट की वजह से चूक गया, पर देश के नाम रजत पदक जीत ही लिया। करनाल का एक वह लड़का जो 11 साल की उम्र में अपना भारी वजन घटाने के लिए महज 10 साल पहले स्टेडियम जाता था और उसको भाला फेंकना अच्छा लगने लगा तो उस पर भाला दूर तक फेेंकने का जूनून सवार हो गया, इसे ही ललक और खेल के लिए दिवानगी कहते हैं जो हर भारतीय खिलाड़ी में मौजूद है। कुल मिलाकर अब खेल और खेल जगत में बढ़ते कंपीटीशन के चलते नियमों की कठोरता को भी समझ लेना चाहिए। एक-एक अंक से हार-जीत तय होती है और यहीं से गोल्ड, सिल्वर और ब्रांज का फैसला होता है लेकिन खेल भावना जीतनी चाहिए। नियमों का सम्मान भी करना चाहिए। नियम कठोर ही होते हैं लेकिन आप अपनी ताकत के दम पर सब कुछ कर सकते हैं। बेटी फोगाट को इस निराशा के काले दौर को भुलाना होगा और याद रखना होगा कि वह देश की शान है। हमें तुम पर नाज है। तुम्हारे फाइनल में पहुंचने के लिए विनेश फोगाट तुम्हें हमारा शत्-शत् नमन है। तुम पराजित नहीं विजेता हो।

Related Stories

No stories found.
logo
Punjab Kesari
www.punjabkesari.com