भारतीयों की वैज्ञानिकता अथवा उनके विज्ञान के ज्ञान पर संदेह करने का कोई कारण नहीं बनता है क्योंकि सनातन धर्म में पहला अवतार जल में मत्स्य अवतार कहा गया है और 1850 के करीब जब डार्विन ने अपनी समाज के विकास की परिकल्पना दी तो कहा कि मनुष्य का विकास सबसे पहले जल में पैदा हुए जंतु से ही हुआ। जब सन् 1200 के करीब भारत पर आक्रमण करने वाले मोहम्मद गौरी के साथ उसका विद्वान दरबारी अलबरूनी आया तो उसने कहा कि भारतीयों के विज्ञान का ज्ञान बहुत ऊंचा है, मगर वह इसके साथ अंधविश्वास को जोड़ देते हैं। इतिहास कुछ सबक लेने के लिए होता है, अतः हिंदू समाज को अपने भीतर भी झांक कर देखना चाहिए और अपनी विशेषताओं का ध्यान रखना चाहिए। बेशक उत्तर भारत के कुछ कट्टरपंथी या हिंदूवादी नेता श्री उदय निधि के बयान में राजनीति देख सकते हैं और इसका संबंध अन्य राजनीतिक दलों से भी स्थापित करने की कोशिश कर सकते हैं मगर हकीकत यह है की सनातन धर्म को पुनः स्थापित करने का काम दक्षिण के ही आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में किया था। आदि शंकराचार्य ने बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव से अभिभूत भारत में सनातन पूजा पद्धति को पुनः स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उत्तर या दक्षिण को देखकर राजनीतिज्ञों को अपने विचार एक- दूसरे पर नहीं थोपने चाहिए। हमें खुले दिमाग से और वैज्ञानिक सोच के साथ धार्मिक विषयों की परख करनी चाहिए तभी हम आधुनिक समाज की स्थापना कर सकते हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने यही कार्य किया है।