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भारत के संतुष्ट मुसलमान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का यह कहना कि ‘दुनिया में सबसे ज्यादा सन्तुष्ट भारत के मुसलमान हैं’ वास्तव में भारत की उस सच्चाई का ही दर्पण है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का यह कहना कि ‘दुनिया में सबसे ज्यादा सन्तुष्ट भारत के मुसलमान हैं’  वास्तव में भारत की उस सच्चाई का ही दर्पण है जो इसकी हजारों साल पुरानी संस्कृति का मूलाधार है। यह मूलाधार ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ से अभिप्रेरित है। यह निर्रथक नहीं है कि भारत के संविधान में इसी प्राचीन सभ्यता के प्रतीकों को अंकित किया गया और दुनिया के सामने स्पष्ट किया गया कि भारत की मिट्टी में सह अस्तित्व’ का भाव बौद्ध धर्म के उदय से पहले से ही रमा हुआ है जिसके तार जाकर जैन संस्कृति से मिलते हैं परन्तु भगवान बुद्ध के अवतरण के बाद यह राजधर्म में निहित हो गया। भारत में हिन्दू-मुसलमान का प्रश्न भी मूलतः राज्याधिकारों से जाकर तब जुड़ा इस देश के एश्वर्य  व वैभव से लालायित होकर इस पर विदेशी आक्रमण होने शुरू हुए और तब शासकों ने अपने धर्म को अपनी विजय का चिन्ह बनाने का प्रयास किया। भारत के मध्य काल का इतिहास हमें यही बताता है कि उस दौर के इस अलिखित नियम के चलते ही साम्राज्य बनते बिगड़ते रहे। परन्तु इससे भारत के लोगों की निष्ठा अपनी मातृभूमि के लिए प्रभावित नहीं हुई।
मैं मोहन भागवत जी की बात से शत-प्रतिशत सहमत हूं। भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव के उदाहरण आज भी मिलते हैं।  रामलीला मंचन के दौरान मुस्लिम बंधू राम बारात का स्वागत करते हैं। रामलीला मंचन से लेकर विजयदशमी तक सारा सामान बनाने वाले भी मुस्लिम भाई ही होते हैं। मेरे पिता अश्विनी कुमार जी मोहन भागवत जी का काफी सम्मान करते थे।  मेरे पिता जी को नागपुर में संघ मुख्यालय में बतौर अतिथि भी आमंत्रित किया गया था। मेरे पिता अश्विनी कुमार राष्ट्रवादी विचारों के प्रबल समर्थक रहे।  
 श्री भागवत ने महाराणा प्रताप व शहंशाह अकबर के बीच हुए युद्ध का हवाला देते हुए कहा है कि महाराणा की फौज में बहुत से मुस्लिम सिपाही थे। यह हकीकत है बल्कि इससे भी ऊपर महाराणा प्रताप की फौज का सेनापति एक मुस्लिम योद्धा हाकिम सिंह सूर ही था। जबकि मुसलमान बादशाह अकबर की फौज का सेनापति हिन्दू योद्धा राजा मान सिंह था और युद्ध राजपुताने के रण क्षेत्र हल्दी घाटी के मैदान में लड़ा गया था। दरअसल फौजी के लिए उस दौर में भी उसका धर्म मायने नहीं रखता था और ये फौजी अपने-अपने क्षेत्र के नागरिक ही होते थे। अतः जब भारत की आजादी की लड़ाई शुरू हुई तो अंग्रेजों के गुलाम भारत में 1915 के करीब अफगानिस्तान के काबुल में स्व. राजा महेन्द्र प्रताप सिंह की पहली ‘आरजी सरकार’ कायम हुई जिसके सभी मन्त्री मुस्लिम थे। यह पुख्ता इतिहास है जिसे कोई बदल नहीं सकता। यह इस बात का भी प्रमाण है कि अंग्रेेजों की गुलामी से छूटने के लिए उस समय का वैश्विक मुस्लिम समुदाय भारत के लोगों की मदद बिना हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव के करना चाहता था क्योंकि आरजी सरकार एक अफगानिस्तान के मुस्लिम शासक की छाया में ही गठित हुई थी, परन्तु 1917 में खिलाफत आन्दोलन के पस्त हो जाने और प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की विजय हो जाने के बाद परिस्थितियां पूरी तरह बदल गईं। इससे यही सिद्ध होता है कि मातृभूमि को आजाद करने के लिए और भारत में स्वराज स्थापित करने के बारे में हिन्दू-मुसलमानों में कोई मतभेद नहीं था। वर्तमान सन्दर्भों में भारतीय मुसलमानों की भारत में स्थिति किसी भी हिन्दू नागरिक के बराबर है जिसका अधिकार हमारे संविधान में दिया गया है।
 यह धर्म निरपेक्षता हमें अपनी प्राचीन संस्कृति से विरासत में मिली है क्योंकि यह संस्कृति मानती है कि सभी धर्म मानवता का सन्देश देते हैं इसीलिए स्वतन्त्रता के बाद इस देश के लोगों ने एेसे संविधान को अंगीकार किया जिसमें मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद समाप्त करने की न केवल शपथ ली गई बल्कि एेलान किया गया कि किसी भी नागरिक का धर्म उसका निजी मामला होगा।  यही वजह है कि जब हम भारत की बात करते हैं तो प्रत्येक हिन्दू-मुसलमान की भारतीयता मुखर होकर ‘राष्ट्रीय धुन’ बन जाती है। अतः भारतीय मुसलमानों के सन्तुष्ट होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि उनकी पहचान हिन्दोस्तान से की जाती है। यही वजह है कि जब भारत के मुसलमान हज करने के लिए मक्का-मदीना जाते हैं तो उन्हें ‘हिन्दी’ कहा जाता है। यह भाव ही भारतीय मुसलमानों में भारतीय होने का गौरव भरता है। यही वजह है कि जब बादशाह अकबर से ईरान के शहंशाह ने शिया-सुन्नी विवाद के होने पर यह पुछवाया था कि वह बतायें कि वह कौन से मुसलमान हैं तो अकबर ने उत्तर लिखा था कि ‘मैं हिन्दोस्तानी मुसलमान हूं’  परन्तु दुखद यह रहा कि स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान अंग्रेजों ने भारत में ही एक एेसा गद्दार पैदा कर दिया जिसने मुसलमानों के लिए अलग देश बनाने की मांग अलग नस्ल के आधार पर कर दी।
 जाहिर है कि वह मुहम्मद अली जिन्ना ही था। जिसकी वजह से जाते-जाते अंग्रेज भारत की संयुक्त ताकत को तोड़ कर पाकिस्तान बनवा कर चले गये।  इसके बावजूद करोड़ों मुसलमानों ने भारत में ही रहना गंवारा किया क्योंकि यह उनकी मातृभूमि थी और उनके पुरखों की जमीन थी। बेशक वर्तमान समय में हमें अल्पसंख्यकों के साथ कथित अन्याय होने की आवाजें सुनने को मिलती रहती है मगर आम मुसलमान भारत की सरजमीं की खूबसूरत रवायतों में इस कदर मशगूल रहा है कि हिन्दुओं से ज्यादा दीवाली का इन्तजार उसे रहता है क्योंकि इस त्यौहार से उसके गहरे  आर्थिक सम्बन्ध जुड़े हुए हैं। शासन-प्रशासन से लेकर राजनीति तक में उसकी भागीदारी और हिस्सेदारी इस तरह नियत की गई है कि हर क्षेत्र में उसकी योग्यता की कद्र हो। यह भारत की एेसी विशेषता है जो भारतीय मुस्लिम को पूरी दुनिया में विशिष्टता प्रदान करती है और वह गर्व से कह सकता है कि वह हिन्दोस्तानी मुसलमान है। श्री भागवत का आशय संभवतः यही था जिसे उन्होंने अपने शब्दों में व्यक्त किया।

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