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सऊदी सरकार का तुगलकी फरमान

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एक तरफ दुनिया भारत को बड़ी आर्थिक शक्ति मान रही है तो दूसरी तरफ विदेशों में बैठे भारतीयों के जीवन पर मुश्किलों का पहाड़ टूट रहा है। पहले अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वीजा नियमों को बदलने की बात की जिससे बड़ी संख्या में भारतीयों पर असर पड़ा। इसके बाद आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की सरकारों ने ऐसे कदम उठाये जिसका सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ा। कतर संकट का असर भी वहां भारतीयों की नौकरियों पर पड़ेगा। कतर की करीब 28 लाख की मौजूदा आबादी में 12 लाख भारतीय हैं। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में कतरी रियाल का एक बड़ा हिस्सा होता है। हमारे आम, चावल, मसाला, स्किल्ड मैन पावर, वित्तीय सुविधाओं आदि का कतर एक बड़ा आयातक देश है। भारत को कतर से प्राकृतिक गैस प्रभावित होती है। सऊदी अरब, बहरीन, यमन, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात ने कतर से राजनयिक सम्बन्ध तोड़ लिये हैं। कतर में खाने-पीने की वस्तुओं का अभाव होने लगा है। हालात ज्यादा बिगड़े तो भारतीयों की हालत भी खराब होगी और वह स्वदेश लौटने को आतुर होंगे।

अत: सऊदी अरब की सरकार एक जुलाई से देश में रहने वाले प्रवासियों पर आश्रितों पर कर यानी डिपेंडेंट टैक्स लगायेगी। इसके तहत सऊदी अरब में अपने परिवार के साथ रहने वाले देशों के लोगों के प्रति आश्रित 100 रियाल (करीब 1700 रुपये) बतौर टैक्स चुकाने पड़ेंगे। सऊदी में 41 लाख के करीब भारतीय रहते हैं। सऊदी अरब में प्रवासियों में भारतीयों की संख्या ज्यादा मानी जाती है। भारी भरकम टैक्स से भारतीयों की बचत पर प्रभाव पड़ेगा। भारतीय विदेशों में रोजी-रोटी और पैसा कमाने के लिये ही जाते हैं। यदि पैसा बचेगा नहीं तो फिर उन्हें क्या फायदा। या तो वे परिवारों को भारत भेजेंगे या फिर खुद लौट आयेंगे। उम्मीद जताई जा रही थी कि सऊदी सरकार भारतीयों के लिये विशेष छूट लेकर आयेगी लेकिन ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। अमेरिका के रास्ते पर अब उसका सबसे बड़ा सहयोगी देश सऊदी अरब चलने लगा है। डोनाल्ड टंरप ने संरक्षणवाद के जिस वैश्वीकरण की शुरुआत की थी उसका खामियाजा भारत जैसे विकासशील देशों को भुगतना पड़ रहा है। ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मेक अमेरिका ग्रेट अगेन का नारा दिया था। एचढ्ढबीढ्ढ वीजा पर ट्रंप के फैसले में भारत के आईटी इंडस्ट्री की हालत पहले ही खराब है। अब सऊदी अरब के फैमिली टैक्स लगाने के फैसले से भारतीयों को तगड़ा झटका लगा है।

दरअसल सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था की हालत इन दिनों काफी कमजोर है। पिछले तीन वर्षों से पैट्रोल की कीमतें घटने के कारण सऊदी सरकार वित्तीय संकट में फंस गई है। सरकार ने आमदनी बढ़ाने के लिये टैक्स लगाया है। सऊदी अरब में काम करने वाली कंपनियां फिलहाल अप्रवासी कर्मचारियों को शुल्क कवर करने के लिये हर महीने 200 सऊदी रियाल खर्च करती है। यह शुल्क उन कंपनियों पर लगता है जहां घरेलू कर्मचारियों की संख्या विदेशियों के मुकाबले कहीं ज्यादा है। टैक्स के हिसाब से अगर किसी के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं तो उसे 3600 रियाल (62 हजार रुपये) एकमुश्त जमा कराने होंगे। ऐसे में वहां रहने वाले भारतीयों के पास अपने परिवार के सदस्यों को वापिस भेजने के अलावा कोई चारा नहीं। सऊदी सरकार का कहना है कि 2020 तक यह टैक्स बढ़ता रहेगा। कई भारतीय तो अपने परिवारों को पहले ही वापिस भेज चुके हैं।

सऊदी अरब एक ऐसा देश है जहां कोई इन्कम टैक्स नहीं लगता। पूरा देश सिर्फ पैट्रोलियम से होने वाली आय से चलता है। आमदनी का एक मात्र स्रोत पैट्रोल ही है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने खाड़ी देशों पर टैक्स लगाने का सुझाव दिया था। उसने कहा था कि पैट्रोल की गिरती कीमतों के कारण सरकार पर जो असर पड़ रहा है उसे कम करने के लिये अप्रवासी भारतीयों पर टैक्स लगाने की जरूरत है। वहां देश के लोग कोई आयकर नहीं देते। सऊदी अरब भारतीयों के लिये आकर्षक गंतव्य रहा है। वहां सभी कामगारों के लिय एक समान नियम है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में भारत और सऊदी अरब के रिश्ते सुधरे हैं। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री वहां दो दिवसीय दौरे पर गये थे। इसके अलावा सऊदी सरकार प्रधानमंत्री मोदी को सर्वोच्च सम्मान भी दे चुकी है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारतीयों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩे पर केन्द्र सरकार सऊदी सरकार से यह मुद्दा उठायेगी। देखना होगा कि भारतीय हितों की रक्षा कैसे की जा सकती है और भारतीय सऊदी सरकार के तुगलकी फरमान से कैसे बच सकते हैं।

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