भारत में घोटालों का इतिहास बहुत पुराना है। एक के बाद एक घोटाले होते गए। कुछ को सजा मिली, कुछ साफ बरी हो गए, कुछ ने तो बहुत मौज उड़ाई।
जिन्होंने लूटा सरेआम मुल्क को अपने,
उन लफंदरों की तलाशी कोई नहीं लेता,
गरीब लहरों पर पहरे बिठाए जाते हैं,
समंदरों की तलाशी कोई नहीं लेता।
ऐसा नहीं है कि समंदरों पर अंगुलियां नहीं उठीं। पुराना दौर था, न तो आज जैसी सिस्टम में पारदर्शिता थी, न ही ई-बैंकिंग थी। बस खातों का खेल था। बहुत कुछ ऐसा होता रहा जिसकी जानकारी आम लोगों तक कभी नहीं पहुंची। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत स्कैमलैंड बन चुका है। जब भी घोटाला सामने आता,जांच आयोग बिठा दिया जाता है। अगर आज तक कितने जांच आयोग बैठे, उन पर कितना खर्च हुआ, कितनों को सजा मिली, कितनों को इन्साफ मिला, इस पर लिखा जाए तो महाग्रंथ की रचना हो सकती है।
हम हमेशा कल्पना लोक में जीते हैं, घोटाला होते ही सोचते हैं कि बस अब और कोई घोटाला सुनने को नहीं मिलेगा।हमारी कल्पना बार-बार खंडित होती है। सिस्टम में बदलाव के चलते अब समंदरों की तलाशी ली जाने लगी है। अब फ्रॉड पकड़े जा रहे हैं। अब पंजाब नेशनल बैंक में देश का बड़ा बैंकिंग घोटाला सामने आया। मुम्बई की एक शाखा में 11,400 करोड़ से अधिक का अनधिकृत फर्जी लेन-देन हुआ। 2015 में बैंक ऑफ बड़ौदा में भी दिल्ली के दो कारोबारियों द्वारा 6 हजार करोड़ की धोखाधड़ी का मामला सामने आया था।
घोटाला सामने आने के बाद 10 पीएनबी अधिकारियों को निलम्बित कर दिया गया है। कुछ खाताधारकों को लाभ पहुंचाने के लिए लेन-देन किया गया। इस लेन-देन के आधार पर ग्राहकों को दूसरे बैंकों ने विदेशों में कर्ज दिए। इस घोटाले का असर दूसरे बैंकों पर भी पड़ सकता है। घोटाला ऐसे समय में उजागर हुआ जब भारत का बैंकिंग सैक्टर संकट के दौर से गुजर रहा है। इस घोटाले में भी प्रख्यात ज्वैलरी डिजाइनर और हीरा कारोबारी नीरव मोदी और 4 बड़ी आभूषण कम्पनियां जांच के घेरे में हैं।
नीरव मोदी फोर्ब्स की भारतीय अमीरों की सूची में शामिल रहे हैं। नीरव मोदी द्वारा इसी माह की शुरुआत में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बैंक को 281 करोड़ का चूना लगाने का मामला सामने आया था। बैंक कर्मचारियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ही नीरव के पक्ष में लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग जारी कर दिया था। अभी इस मामले की गुत्थी सुलझी भी नहीं थी कि दूसरा फर्जीवाड़ा सामने आ गया। लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग यानी साख पत्र से नीरव मोदी ने विदेशों में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के विभिन्न बैंकों से रुपया भुनाया। इसे सन् 2011 से काम कर रहे उपमहाप्रबन्धक के स्तर के अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर अंजाम दिया गया। अपनी विलासिता रूपी जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध विजय माल्या तो भारतीय बैंकों से ऋण लेकर घी पीने के बाद विदेश में मजे में है और नीरव मोदी तो एफआईआर दर्ज होने से एक माह पहले ही देश छोड़कर जा चुका है।
निश्चित रूप से उसे जानकारी मिल गई होगी। अब मलते रहो हाथ। कोई भी घोटाला तब होता है जब सिस्टम में खामी हो। बैंक कर्मचारियों ने फण्ड हासिल करने और रकम को पीएनबी से बाहर भेजने के लिए ‘स्विफ्ट’ का इस्तेमाल किया और रोजाना की बैंकिंग ट्रांजेक्शन को प्रोसैस करने वाले कोर बैंकिंग सिस्टम को चकमा दे दिया। ‘स्विफ्ट’ ग्लोबल फाइनैंशियल मैनेजिंग सर्विस है जिसका इस्तेमाल प्रत्येक घण्टे लाखों डॉलर भेजने के लिए किया जाता है। घोटाला करने वाले कर गए, शेयर बाजार में उथल-पुथल तो होनी ही थी।
बैंक के शेयर गिर गए। नुक्सान निवेशकों को हुआ। वहीं सभी सरकारी बैंकों के निवेशकों को 15 हजार करोड़ का नुक्सान हुआ। निश्चित रूप से इसका प्रभाव बैंक के लेन-देन पर ऊपर से लेकर निचली कतार तक पड़ेगा। अभी तक स्थिति साफ नहीं है कि यह लेन-देन वापस होंगे या इससे होने वाले नुक्सान को बैंक झेलेगा या फिर जांच एजैंसियां इसमें गई रकम को रिकवर कर लेंगी। बैंक में ये लेन-देन आपात स्थिति में होते हैं लेकिन बैंक पर आने वाली इन लेन-देनों की देयता इनकी कानूनी स्थिति और सच्चाई पर निर्भर है।
बैंकों में फ्रॉड और घोटालों की लम्बी शृंखला है। नोटबंदी को अगर किसी ने पलीता लगाया तो बैंकों ने। नोटबंदी के बाद पहले ही 12 घण्टों में बैंकों में जो कुछ हुआ, वह किसी से छिपा नहीं। आम आदमी रात में आकर लाइनों में खड़ा रहा लेकिन नए नोट लेने वाले नोट ले गए। जनता बेचारी दम तोड़ती रही। कोऑपरेटिव बैंकों ने तो सारी हदें पार कर दीं। बहुराष्ट्रीय बैंकों ने जमकर खेल खेला। एक बैंक ने तो गरीबों, आदिवासियों से क्रेडिट कार्ड जारी करने के बहाने कागजों पर अंगूठे लगवाने के साथ-साथ टर्मलोन के फार्म दस्तावेजों में भी हस्ताक्षर या अंगूठा लगाकर उनके नाम पर करोड़ों हड़प लिए थे। पीएनबी में हुआ घोटाला तो पिछले वर्ष बैंक को हुए शुद्ध मुनाफे से 8 गुणा ज्यादा है। बैंकिंग सैक्टर को नुक्सान पहुंचाने वाले भी भीतर ही बैठे हैं। इन काली भेड़ों काे पहचान कर उन्हें दण्डित करना जरूरी है।