विज्ञान की दुनिया निरंतर खोज, परिवर्तन, अविष्कारों की ओर लगातार चलती रहती है। दुनिया आज विकास के जिन ऊंचे स्तरों पर हमें नजर आ रही है वह वैज्ञानिकों के महान अविष्कारों की बदौलत है। दुनिया की इस तस्वीर को बदलने में भारतीय वैज्ञानिकों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। भारत के वैज्ञानिकों ने ही विश्व पटल पर भारत के प्रति नजरिये को ही बदल दिया। भौतिक विज्ञान, चिकित्सा, गणित, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान जैसे अलग-अलग क्षेत्रों में भारतीय वैज्ञानिकों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। चन्द्रशेखर वेंकटरमन, जगदीश चन्द्र बसु, हरगोविन्द खुराना, सत्येन्द्र नाथ बोस, सलीम अली, होमी जहांगीर भाभा, डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने दुनिया भर में भारतीय मेधा शक्ति का सिक्का जमाया। प्रसिद्ध शिक्षाविद् और रसायनज्ञ प्रफुल्ल चन्द्र राय ने भारत की पहली फार्मास्यूूटीकल कम्पनी बंगाल रसायन एवं फार्मास्यूटीकल की स्थापना कर इस क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाई। मेडिकल साइंस में भारतीय प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। जरूरत है गहन अनुसंधान और नवोन्मेष की।
देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। पूरी दुनिया उपचार ढूंढ रही है। अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, जर्मनी और भारत में दवाओं के ट्रायल शुरू हो चुके हैं। भारत में भी परीक्षण किए जा रहे हैं। दवा बनाने में किसे सफलता मिलती है यह कहना मुश्किल है। सबसे बड़ी चुनौती तो टैस्टिंग की है। चीन से जो टैस्टिंग किट मंगाई गई थी, उसके नतीजे गलत आने पर उसका इस्तेमाल रोक दिया गया और पूरा माल चीन को वापस किया जा रहा है। वैसे भी चीनी उत्पादों पर भरोसा किया ही नहीं जा सकता। महामारी में भी वह घटिया किट भेजकर मुनाफा कमाना चाहता है। अच्छी बात यह है कि अब दक्षिण कोरिया की कम्पनी के सहयोग से कम दाम में बड़ी संख्या में जांच किट मानेसर में तैयार की जाएगी। कोरोना जैसी महामारियों से लड़ाई स्वदेशी संसाधनों के बूते ही लड़ी जा सकती है। संकट की घड़ी में आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिकों ने कमाल कर दिखाया है। उन्होंने आरटी-पीसीआर किट बनाई है जो सस्ते और सही तरीके से कोरोना की जांच कर सकेगी। इस किट को आईसीएमआर ने भी मंजूरी दे दी है। इस तरह दिल्ली आईआईटी ऐसी किट बनाने वाला पहला संस्थान बन गया है। समूचा राष्ट्र यह किट बनाने वाली वैज्ञानिकों और स्टूडेंट्स की टीम पर गर्व महसूस कर रहा है। इससे पहले मायलैब डिस्कवरी की रिसर्च और डवैलपमैंट विभाग की प्रमुख वायरोलाजिस्ट मीनल दरवावे भोंसले ने टैस्टिंग किट तैयार की थी, जिससे केवल ढाई घंटे में कोरोना की जांच हो सकती थी। दिल्ली आईआईटी द्वारा तैयार की गई किट तो कुछ मिनट ही लेगी। मीनल दरवावे के जज्बे को सलाम करना होगा क्योंकि वह बच्चे को जन्म देने से एक घंटे पहले तक लैब मेें किट तैयार करने में जुटी हुई थी।
जहां तक प्लाज्मा थैरेपी की सफलता का सवाल है, उसके नतीजे भी सही निकल रहे हैं। भारत में केरल पहला राज्य बना है जहां इसका प्रयोग किया जा चुका है, जिसमें वायरस से ठीक हो चुके व्यक्ति के प्लाज्मा से रोगी के शरीर में एंटीबाडीज बनना शुरू हो जाता है। अब दिल्ली में भी इस थैरेपी का प्रयोग किया गया, जिसके परिणाम काफी उत्साहवर्धक रहे हैं। महामारी के अंधकार में भारत में हो रहे शोध से उम्मीदों की किरणें दिखाई देने लगी हैं। अब दुनिया सामूहिक अनुसंधान की वकालत कर रही है और वैक्सीन की तलाश मानवीय परीक्षण तक जा पहुंची है।
वक्त की जरूरत है कि भविष्य में महामारी से लड़ने के लिए भारत चिकित्सा बाजार का विस्तार करे। चिकित्सा क्षेत्र में लगातार अनुसंसाधन का काम जारी रहे और भारतीय प्रतिभाओं को प्रोत्साहन दिया जाए। इस समय कोरोना वायरस की जांच का दायरा बढ़ा कर उसे ढूंढ-ढूंढ कर मारने की जरूरत है। आज हम जिन चिकित्सा पद्धतियों की खाक छान रहे हैं वह सब ऋग्वेद और अथर्ववेद में पहले से ही वर्णित हैं। शरीर प्रतिरोधक क्षमता की बहुत चर्चा रही है, उसके संबंध में तो भारतीय ग्रंथ भरे पड़े हैं। भारत को विश्व गुरू इसीलिए कहा जाता था क्योंकि यहां वेदों के ज्ञान का भंडार है। विडम्बना यही रही कि हमने वेद और आयुर्वेद पढ़ना छोड़ दिया है और हम उनसे होने वाले लाभों से वंचित रह गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और आयुष मंत्रालय लोगों को काढ़ा पीने की सलाह दे रहे हैं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए हमें अपनी पुरानी जीवन शैली ही अपनानी होगी। भारतीय वैज्ञानिकों की हर पहल सराहनीय है और इस बात की उम्मीद है कि वे कोरोना के उपचार के लिए संजीवनी बूटी खोज निकालेंगे। चिकित्सा विज्ञान ही जान और जहान को बचा सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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