शेयर बाजार नियामक (रेगुलेटरी) सेबी की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच से जुड़े विवाद एक के बाद एक बढ़ते जा रहे हैं। एक विवाद खत्म नहीं होता कि दूसरा आ जाता है। विवादों के चलते माधवी पुरी बुच की मुश्किलें अब बढ़ती जा रही हैं। संसद की पब्लिक अकाऊंट्स कमेटी (पीएसी) सेबी चीफ के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करेगी और इसी सिलसिले में कमेटी माधवी पुरी बुच को तलब कर सकती है। इस कदम का उद्देश्य नियामक संस्थान की कारगुजारी की समीक्षा करना है। पीएसी वित्त और कार्पोरेट मामलों के मंत्रालयों के अधिकारियों से पूछताछ करने की योजना बना रही है। पब्लिक अकाऊंट्स कमेटी के 22 सदस्यों में लोकसभा के 15 और राज्यसभा के 7 सांसद शामिल हैं। कमेटी का नेतृत्व कांग्रेस सांसद के.सी. वेणुगोपाल कर रहे हैं। अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडाणी समूह के बारे में करीब 19 महीने पहले खुलासा किया था लेकिन उसके पहले ही अडाणी समूह के शेयरों में आई जबरदस्त तेजी की जांच पर बाजार नियामक सेबी ने जिस तरह का रवैया अपना रखा था वह स्वतंत्र पर्यावेक्षकों के लिए उलझाने वाला था। ऐसे आरोप पहले भी लगाए जाते रहे हैं कि सेबी के एक दूसरे पूर्व अध्यक्ष के कार्यकाल में भी अडाणी समूह को फायदा पहुंचाने के लिए काम किया था।
मौजूदा अध्यक्ष के कार्यकाल में सेबी ने अडानी समूह के शेयरों में हुई असामान्य मूल्य वृद्धि को नजरअंदाज करते हुए हिंडनबर्ग प्रकरण के बाद की अपनी जांच को मुख्यतः शॉर्ट सेलिंग गतिविधियों पर केंद्रित रखा। एक नौसिखिया निवेशक भी समझ सकता है कि शॉर्ट सेलिंग के मौके तभी आते हैं जब शेयर की कीमतें किसी कंपनी के आधारभूत कारकों (फंडामेंटल्स) या भावी संभावनाओं से कहीं ज्यादा हो जाती हैं। 10 अगस्त को हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा जारी किए गए विस्फोटक नए 'व्हिसिल-ब्लोअर' दस्तावेजों ने इस मामले को एक नया मोड़ दे दिया है और इसने सेबी के लिए विश्वसनीयता का बड़ा संकट पैदा कर दिया है। हिंडनबर्ग ने तथ्यों और दस्तावेजों के साथ सेबी अध्यक्ष माधवी पुरी बुच की व्यक्तिगत ईमानदारी और उनके 'खुलासों' पर सवाल खड़े किए हैं।
इन खुलासों पर भी खामोशी बनी रही। सेबी अध्यक्ष ने आरोपों का खंडन ही किया। इसके बाद एक के बाद एक नए आरोप लगते रहे। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि 2017 में जब से माधवी पुरी बुच ने पद सम्भाला है तब से वह सेबी से सैलरी ले रही है आैर आईसीआईसीआई बैंक में ऑफिस ऑफ प्रोफिट भी सम्भाल रही है। हालांकि बैंक ने सफाई देते हुए कहा कि उसने 2013 काे माधवी पुरी बुच की रिटायरमैंट के बाद कोई सैलरी या ईएसओपी नहीं दिया है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में यह भी खुलासा िकया गया था िक अडाणी मनी साइफनिंग घोटाले में इस्तेमाल किए गए आॅफशोर फंड में माधवी बुच और उनके पति की हिस्सेदारी थी। यह भी आरोप लगा है कि सेबी चीफ को दवा कम्पनी वाकहाट से जुड़ी उस सहायक इकाई से किराये की आय प्राप्त हुई जिसकी सेबी द्वारा भेदिया कारोबार समेत कई मामलों में जांच की जा रही थी। अब माधवी पुरी बुच पूरी तरह से घिर चुकी है। इसके साथ ही सेबी की साख भी प्रभावित हुई है। इन मामलों में जितनी भी सफाई दी जाए उससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट दो प्रमुख व्यवस्थागत मुद्दे सामने लाई है जिन पर बहस करना और उन्हें हल करना बहुत जरूरी है। बड़ा आरोप यह था कि ऑफशोर फंडों की मदद से शेयरों के मूल्यों में छेड़छाड़ की गई तथा सार्वजनिक शेयर धारिता के मामलों का उल्लंघन किया गया।
अब तक नियामक ने स्पष्ट नहीं किया है कि ऐसा है या नहीं। दुनिया के सबसे बड़े शेयर बाजारों में से एक के नियामक की ओर से यह एक गंभीर कमी नजर आती है। बहरहाल, उसने विदेशी फंडों के लिए प्रकटीकरण के मानक सख्त कर दिए हैं जिनके तहत एक खास सीमा को पार करने वाले फंडों को आर्थिक लाभार्थियों के नामों तथा फंड के स्वामित्व की जानकारी देनी होगी। अगर नियामक तथ्यों के साथ इन आरोपों को खारिज कर पाता तो बाजार को एक कड़ा संदेश जाता। दूसरा मसला चेयरपर्सन तथा निर्णय प्रक्रिया से जुड़े अन्य अहम लोगों से संबंधित है। सेबी ने कहा है कि प्रकटीकरण को लेकर उसके पास एक ठोस व्यवस्था है। अहम लोगों के लिए प्रकटीकरण मानकों को मजबूत बनाने तथा भविष्य में किसी अटकल को समाप्त करने के लिए नियामक को ऐसे लोगों के वित्तीय हितों को सार्वजनिक करने की आवश्यकता है। हर नियामक से उम्मीद की जाती है कि वह ईमानदार आैर निष्पक्षता से काम करेगा। अगर नियामक तंत्र ही भ्रष्टाचार का शिकार है तो िनवेशकों के िहतों की रक्षा कौन करेगा। भारत का पूंजी बाजार दुनिया के शीर्ष 5 बाजारों में से एक है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के िलए संसाधन जुटाने का एक बड़ा माध्यम है। बाजार में आम लोगों के िनवेश को देखते हुए यह जरूरी है कि सेबी की विश्वसनीयता कायम हो आैर सेबी खुद नियमों आैर मानकों का पालन करते िदखे। सेबी की व्यवस्थागत खामियां दूर होनी चाहिए। इसलिए पहले उसे अपना घर सम्भालना होगा। सेबी की जांच निष्पक्ष रूप से होनी चाहिए ताकि नियामक तंत्र पर लोग भरोसा कर सकें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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