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रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता!

क्या उसके पास जो हथियार हैं, व​ह कितने स्वदेशी हैं और कितने विदेशी। इस बात का आकलन करना भी जरूरी है कि वह रक्षा क्षेत्र में कितना आत्मनिर्भर है।

कोई भी देश कितना ही बड़ा क्यों न हो, उसकी सामरिक शक्ति का आकलन सिर्फ इस बात से किया जाता है कि उसके पास जो हथियार हैं उनसे वह कितनी दूर की घातक क्षमता रखता है। क्या उसके पास जो हथियार हैं, व​ह कितने स्वदेशी हैं और कितने विदेशी। इस बात का आकलन करना भी जरूरी है कि वह रक्षा क्षेत्र में कितना आत्मनिर्भर है। इसमें कोई संदेह नहीं कि दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रक्षा बजट होने के बावजूद भारत अपनी 60 फीसदी हथियार प्रणालियों को विदेशी बाजार से खरीदता है। पिछले बजट के मुद्रास्फीति और राजस्व से संबंन्धित भाग की जरूरतें पूरी करने के लिये रक्षा बजट में बढ़ोतरी की गई थी लेकिन आयात पर होने वाले पंजीगत खर्च में कमी का रुझान साफ दिखाई देता है। 
हथियारों के निर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया योजना शुरू की थी लेकिन इसमें भी कोई ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी। सेना और वायुसेना डीआरडीओ और डपीपीएमयू/ ओएफबी निर्भर है। 2016 में सेना ने एक अच्छी पहल की और एक नोडल एजैंसी के रूप में आर्मी डिजाइन ब्यूरो की स्थापना की। इसकी स्थापना के एक वर्ष के भीतर ही निजी क्षेत्र ने हथेली के आकार के ड्रोन, 50 किलो वजन उठाने में सक्षम ड्रोन और कम वजन की बुलेट प्रूफ जैकेट के विकास से संबंन्धित सेना की समस्याओं के लिये समाधान प्रस्तुत किये। जरूरत है कि निजी क्षेत्र की सामरिक भागीदारी की प्रक्रिया को तेज करने की। 
आज भी ​हम सेना की छोटी और बड़ी जरूरतें पूरी करने के लिये रूस से रक्षा सामग्री की आयात करते हैं। हम रूस से एस-400 रक्षा प्रणाली खरीद रहे हैं। अमेरिका से बड़ी डील होने वाली है। अब तो भारत और इस्राइल ​के रिश्ते बहुत प्रगाढ़ हैं। दोनों देशों के रिश्तों में ऐतिहासिक मोड़ कारगिल युद्ध के दौरान आया, जब इस्राइल ने संकट की स्थिति में फंसं भारत की मदद की थी। Israelको मिसाइल विरोधी मिसाइलों की बहुत जरूरत थी तब संकट की घड़ी में इस्राइल ने भारत को वराक मिसाइल की तत्काल आपूूर्ति की ​थी। आज भारत की थलसेना, वायुसेना और नौसेना भी बराक मिसाइलों से लैस है। इसी बीच देश में रक्षा उपकरण बनाने वाले रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने लगातार उपलब्धियां हासिल की हैं। डीआरडीओ ने लगातार भारत की सामरिक शक्ति में बढ़ोतरी की है। 
डीआरडीओ ने स्विटजरलैंड के साथ मिल कर 1962 में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल पर काम शुरू किया था। 1983 में भारत सरकार ने एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम लांच किया था। भारत ने स्वदेशी, पृथ्वी, त्रिशुल, आकाश और नाग…. मिसाइलों का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। फिर डीआरडीओ ने दिव्यचक्षु नाम का रेडार विकसित किया। इसकी मदद से 20 से 30 सेंटीमीटर मोदी दीवार के पार भी तस्वीर ली जा सकती है। भारत ने रूस के साथ मिलकर ब्रहमोस मिसाइल का निर्माण किया। यह रेडार को भी चकमा दे सकती है। यह एक सुपरसोनिक मिसाइल है, इसे पनडुब्बी से, पानी के जहाज से विमान से या जमीन से छोड़ा जा सकता है। इसी वर्ष 27 मार्च को डीआरडीओ ने अंतरिक्ष में सेटेलाइट को मार गिराया और एंटी सेटेलाइट क्षमता का प्रदर्शन किया। 
डीआरडीओ में 30 हजार कर्मचारी काम करते हैं, 5 हजार से ज्यादा वैज्ञानिक 52 प्रयोगशालाओं में अनुसंधान में लगे हुए हैं। भारत काे अपने वैज्ञानिकों पर गर्व है। भारत ने इस्राइल के स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल खरीदने का 50 करोड़ डालर का सौदा रद्द कर दिया है। इस फैसले ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया लेकिन ऐसा इसलिये किया गया क्योंकि डीआरडीओ ने सरकार को आश्वासन दिया है कि वह दो वर्ष के भीतर कम कीमत में वैकल्पिक मिसाइल तैयार कर लेगा। डीआरडीओ ने एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल निर्माण के दूसरे चरण का परीक्षण भी कर लिया है। 
सरकार ने सौदा इसलिये रद्द कर दिया क्योंकि जो मिसाइल स्वयं भारत कम खर्च करके बना सकता है, उसे विदेश से खरीदने का कोई औचित्य नहीं है। इसमें सरकार की मेक इन इंडिया योजना को फायदा मिला है। सरकार अब हथियार आयात करने में समय बर्बाद करने की बजाय घरेलू स्तर पर ही एंटी टैंक मिसाइल तैयार ​करने को तरजीह दे रही है। चीन और पाकिस्तान की ओर से हिन्द महासागर से लगातार बढ़ते खतरे को देख कर भारतीय नौसेना ने 6 परमाणुशक्ति चालित पनडुब्बियों को बनाने का काम शुरू हो गया है। इन पर एक लाख करोड़ का खर्च आयेगा। इन पनडुब्बियों को नोसेना के डिजाइन निदेशालय में डिजाइन किया जायेगा। अगर हम हथियारों के निर्माण में आत्मनिर्भर हो जायेंगे तो इससे राष्ट्र का गौरव बढ़ेगा और भारतीय सेना का आत्मबल मजबूत होगा।

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