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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत

कोराेना महामारी के चलते सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रक्षा विनिर्माण में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 49 प्रतिशत से बढ़ा कर 74 प्रतिशत करने, रक्षा आयात खर्च में कमी लाने के लिए आयात किए

कोराेना महामारी के चलते सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रक्षा विनिर्माण में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 49 प्रतिशत से बढ़ा कर 74 प्रतिशत करने, रक्षा आयात खर्च में कमी लाने के लिए आयात किए जाने वाले रक्षा उपकरणों, पुर्जों को देश में ही बनाने के लिए कदम उठाने की घोषणा की। रक्षा उपकरणों के उत्पादन में भारत आत्मनिर्भर बने, इसकी जरूरत लम्बे अर्से से महसूस की जा रही थी। आयुध की आपूर्ति में स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार के लिए सरकार आयुध निर्माण बोर्ड का निगमीकरण (कार्पोरेटाइजेशन) करेगी, जिससे अंततः इन्हें घरेलू शेयर बाजारों में सूचीबद्ध किए जाने की दिशा में आगे बढ़ाया जाएगा। 
भारत विश्व का सबसे बड़ा सैन्य आयातक देश है। इसलिए वह विश्व की हथियार निर्माता कम्पनियों का मूल्यवान उपभोक्ता है। हम रूस, अमेरिका, फ्रांस से अरबों डालर की सैन्य सामग्री के सौदे करते हैं। भारत ने पिछले चार दशकों में रक्षा उपकरणों के डिजाइन और विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। इनमें मिसाइल, परमाणु हथियार, सैटेलाइट आदि शामिल हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की धाक जम चुकी है, किन्तु जहां तक परम्परागत हथियारों का सवाल है, इसमें हमारा प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। भारत ने एक भी ऐसा प्रमुख सैन्य अविष्कार नहीं किया है जिसका डिजाइन और निर्माण विशुद्ध रूप से भारतीय हो। इसमें व्यक्तिगत हथियार, तोप, जहाज और लड़ाकू विमान शामिल हैं। कुछ सिस्टम जरूर भारत ने पेश किए हैं, जिनमें टैंक शामिल हैं। 
भारत में पहले आधुनिक बारूद कारखाने की स्थापना 1787 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पश्चिम बंगाल के इछापुर में की थी। इसके बाद गन कैरिएज इकाई की स्थापना कोलकाता के निकट कोसीपुर में 1801 में की गई थी। 1902 में इछापुर की फैक्टरी को राइफल फैक्ट्री में बदल दिया गया। प्रथम विश्व युद्ध में इन कारखानों के बने हथियारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1962 के चीन युद्ध तक हमारी सेना के पास हथियार और गोला बारूद ही नहीं था। भारत जंग हार गया था। इसके बाद राजनीतिक नेतृत्व को समझ में आया कि देश की सशस्त्र सेनाओं का आधुनिकीकरण करना कितना जरूरी है। इंदिरा गांधी के शासन काल में रक्षा बजट में लगातार बढ़ौतरी की जाती रही लेकिन भारत राइफल से लेकर रिवाल्वर तक आयात करने लगा। असाल्ट राइफलों, तोपों का आयात करने लगा। बोफोर्स घोटाले की ऐसी छाया पड़ी जो कई वर्षों तक ​निर्णय लेने की क्षमता को कुंद करता रही। हल्के लड़ाकू विमान तेजस और डीआरडीओ के द्वारा उत्पादित ध्रुव हैलीकाप्टर ने उम्मीद की किरण जरूर जगाई। भारतीय नौसेना में स्वदेशीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। 1980 के दशक में पहले युद्धपोत गोदावरी से लेकर अब तक भारत अनेक युद्ध पोतों को तैयार कर चुका है लेकिन रक्षा उपकरण आज भी आयात किये जाते हैं।
रक्षा के क्षेत्र में एफडीआई की सीमा बढ़ाने का पूर्व सैन्य विशेषज्ञों ने स्वागत किया है। इससे लॉकहीड मार्टिन बोइंग और एयर बस जैसी बड़ी कम्पनियां भारत में कारखाना लगाने के ​लिए प्रोत्साहित होंगी। कम्पनियां नई टैक्नोलोजी भारत में लाने में भी नहीं हिचकिचाएंगी, क्योंकि भारत में उनकी सब्सिडियरी पर भी उनकी निर्णायक हिस्सेदारी रहेेगी। कोई भी इसे तब तक अपनी टैक्नोलोजी नहीं देगा, जब तक हम उन्हें ग्लोबल मार्केट में बेचने के लिए उत्पादन करने की सुविधा नहीं देंगे। आयुध फैक्टरी बोर्ड के निगमीकरण का भी स्वागत किया जा रहा है। इस 200 साल पुराने संगठन के तहत देशभर में आयुध फैक्ट्रियां संचालित होती हैं। आयुध फैक्ट्रियों के निगमीकरण को लेकर मतभेद हो सकते हैं। मैं समझता हूं कि निगमीकरण और निजीकरण में कोई ज्यादा अंतर नहीं है लेकिन इसका दूसरा पहलु यह भी है कि निगमीकरण से फैक्ट्रियों की दक्षता बढ़ेगी और मेक इन इंडिया के तहत भारतीय रक्षा उत्पादन क्षेत्र की वास्तविक शक्ति उभर कर सामने आएगी। ये सुधार आने वाले समय में गेम चेंजर साबित होंगे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इसका स्वागत करते हुए कहा है कि यह आत्मनिर्भर भारत की नींव मजबूत करने का मार्ग प्रशस्त करेगा। आयात ​​बिल कम होगा, आयात की जाने वाली सामग्री का उत्पादन भारत में ही होगा।
रक्षा का विषय देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ा हुआ होता है। आयुध कारखाने हमारी सामरिक सम्पत्ति हैं। कुछ रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि आयुध फैक्ट्रियों के निगमीकरण की बजाय आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए। वित्त मंत्री ने 6 हवाई अड्डों का निजीकरण, नागरिक विमान के लिए और अधिक वायु क्षेत्र और कोयला क्षेत्र में सरकार का एकाधिकार खत्म कर निजी कम्पनियों को प्रवेश देने की घोषणाएं की हैं। किसी समय कोयला क्षेत्र प्राइवेट कम्पनियों के लिए खुला था, बाद में इसका राष्ट्रीयकरण किया गया था। केन्द्र शासित प्रदेशों में बिजली वितरण कम्पनियों (डिस्कॉम) के निजीकरण का ऐलान भी किया गया है। बिजली वितरण कम्पनियों के निजीकरण का प्रयोग दिल्ली में सफल रहा है। निजीकरण की भी अपनी सीमाएं होती हैं। आयुध फैक्ट्रियों का निगमीकरण बहुत ही समझदारी और सतर्कता से किया जाना चाहिए ताकि देश की सम्पत्ति किसी और के हाथ में न चली जाए। भारत की सेना हर प्रौद्योगिकी से लैस हो। मैं भारतीय सेना को नमन करता हुआ यह कहना चाहता हूं-
‘‘जहां शस्त्र बल नहीं, वहां शास्त्र पछताते और रोते हैं,
ऋषियों के तप में सिद्धि तभी मिलती है,
 जब पहरे में स्वयं धनुर्धर राम खड़े होते हैं।’’

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