लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

शरद पवार और विपक्षी एकता

राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता श्री शरद पवार ने सर्वाधिक चर्चित व विवादित अडानी के मुद्दे पर यह राय व्यक्त करके कि इस मामले की संसद की संयुक्त समिति से जांच कराने की कोई जरूरत नहीं है

राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता श्री शरद पवार ने सर्वाधिक चर्चित व विवादित अडानी के मुद्दे पर यह राय व्यक्त करके कि इस मामले की संसद की संयुक्त समिति से जांच कराने की कोई जरूरत नहीं है, पूरी विपक्षी पार्टियों के बीच अचम्भा पैदा कर दिया है जिसका विपक्षी एकता पर असर पड़े बिना नहीं रह सकता है। उनका यह मत कि किसी अज्ञात संस्था द्वारा श्री अडानी को निशाना बनाते हुए यह सारा विवाद पैदा किया है जिसकी वजह से संसद का पूरा बजट सत्र व्यर्थ चला गया क्योंकि राष्ट्रीय विकास में उद्योगपतियों की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता, कई प्रकार के सवाल भी उठाता है मगर इतना निश्चित है कि श्री शरद पवार ने संसदीय समिति की सार्थकता को सन्देहों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। श्री पवार भारत की वर्तमान राजनीति में सबसे वरिष्ठ सक्रिय राजनीतिज्ञ माने जाते हैं और उनका 56 वर्ष से अधिक का संसदीय इतिहास भी है। इस इतिहास में एेसे कई पड़ाव भी आये हैं जब उनकी राजनैतिक नैतिकता पर भी गंभीर सवाल उठाये गये हैं मगर उनकी निजी विश्वसनीयता कभी सवालों के घेरे में नहीं आयी। 
 हालांकि 1992 में मुम्बई में हुए साम्प्रयिक दंगों की जांच करने के लिए गठित श्री कृष्णा आयोग की रिपोर्ट में उनकी प्रशासनिक दक्षता पर सवाल खड़े हुए थे। मगर दूसरी तरफ उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ राजनैतिक प्रशासकों में भी माना जाता है। अडानी मुद्दा सबसे ज्यादा जोर-शोर से उठाने वाली कांग्रेस पार्टी ने श्री पवार के मत को ‘व्यक्तिगत मत’ कहकर पल्ला झाड़ने की जरूर कोशिश की है। मगर मामला इतना सरल नहीं है क्योंकि श्री पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और इस पार्टी के साथ कांग्रेस का महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव) के साथ गठबन्धन है जिसे ‘महाविकास अघाड़ी’ कहा जाता है। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में पवार ने सबसे बड़ा मुद्दा यही उठाया है कि देश के उद्योगपतियों की आंखें मींच कर आलोचना करना उचित नहीं है। इस सन्दर्भ में उन्होंने टाटा-बिड़ला उद्योग समूहों का उदाहरण देते हुए कहा कि पुराने राजनीतिज्ञ तत्कालीन सरकारों की आलोचना करते हुए इन उद्योग समूहों पर जम कर दोषारोपण किया करते थे अब बदले हुए समय में उनका स्थान अडानी- अम्बानी ने ले लिया है मगर क्या देश के पैट्रोलियम क्षेत्र में अम्बानी समूह के योगदान को नकारा जा सकता है। इसी प्रकार क्या बिजली उत्पादन के क्षेत्र में अडानी समूह के योगदान को कम करके आंका जा सकता है? इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि कहीं कोई गड़बड़ी हुई है तो उसकी जांच की जा सकती है और एेसा हो भी रहा है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने अडानी मामले की जांच एक विशेषज्ञ समिति से कराने के आदेश दे रखे हैं। तर्क रखा जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय की जांच समिति का कार्य प्रारूप केवल शेयर बाजार में अडानी समूह के शेयरों में आये उछाल व गिरावट तक सीमित है जबकि मामला अडानी समूह की पिछले कुछ वर्षों में हुई सम्पत्ति की तूफानी वृद्धि से जुड़ा हुआ है। 
इस मामले में भी अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है। मगर मूल सवाल यह है कि श्री पवार जैसा वरिष्ठतम राजनीतिज्ञ इस बारे में देश के लोगों को क्या सन्देश देना चाहता है? उनका स्पष्ट सन्देश यही समझा जा सकता है कि अडानी मामले को राजनैतिक कारणों से अनावश्यक  तूल दिया जा रहा है जिसका वह समर्थन नहीं करते। यदि श्री पवार का यह सन्देश है तो इसका प्रभाव विपक्ष एकता पर पड़े बिना न रहे, ऐसा किसी हालत में नहीं हो सकता। मगर इसके साथ उन्होंने यह भी कह दिया कि हम कांग्रेस से अलग नहीं हो सकते। इसका मन्तव्य यही लगता है कि महाराष्ट्र जैसे औद्योगीकृत व आधुनिक राज्य में उनकी पार्टी की कूव्वत इतनी नहीं है कि अपने बूते पर वह आगामी लोकसभा चुनावों में अपनी सीटें कायम रख सके या उन्हें बढ़ा सके क्योंकि मुकाबला मुख्य रूप से भाजपा से होना है। यहां यह तथ्य ध्यान में रखना होगा कि पूर्व में जब कांग्रेस व शिवसेना और उनकी पार्टी का गठबन्धन बना था और उसके हाथ में सत्ता आयी थी तो इस अटपटे ‘गठबन्धन’ के रचनाकार वही थे। मगर राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न 19 विपक्षी राजनैतिक दलों के बीच जो गठजोड़ बनता दिखाई दे रहा है उसे वह अखिल भारतीय स्वरूप नहीं देना चाहता और अपनी भूमिका महाराष्ट्र तक ही सीमित करना चाहते हैं और इसके विमर्श में अडानी के मुद्दे को निरर्थक व निष्फलदायी मानते हैं और इसे एक उद्योगपति के खिलाफ लक्षित समझते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

19 − thirteen =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।