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शरद पवार की ‘तीरन्दाजी’

राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष श्री शरद पवार को निःसन्देह वर्तमान राष्ट्रीय राजनीति का ‘द्रोणाचार्य’ कहा जा सकता है जिनकी राजनीतिक तीरन्दाजी का सम्मान सत्ता से लेकर विपक्ष में बैठे सभी दल एक समान रूप से करते हैं और स्वीकार करते हैं।

राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष श्री शरद पवार को निःसन्देह वर्तमान राष्ट्रीय राजनीति का ‘द्रोणाचार्य’ कहा जा सकता है जिनकी राजनीतिक तीरन्दाजी का सम्मान सत्ता से लेकर विपक्ष में बैठे सभी दल एक समान रूप से करते हैं और स्वीकार करते हैं। अपने पिछले साठ वर्षों के राजनीतिक जीवन में उन्होंने जन सेवा के क्षेत्र में ‘अपने–पराये’ का भेद किये बिना लोक कल्याण के क्षेत्र में स्वयं को पूर्ण रूपेण समर्पित किया है। बेशक उनकी पार्टी महाराष्ट्र या कुछ अन्य चुनिन्दा राज्यों तक ही सीमित हो मगर नेता के रूप मे शरद पवार का रुतबा राष्ट्रीय स्तर के ऐसे कद्दावर नेता का है जो जमीन पर काम करने वाले प्रदेश के नागरिक की राजनीतिक अपेक्षाओं को छूता है। राजनीति में शरद पवार का विमर्श कभी क्षेत्रवादी नहीं रहा और केन्द्र में रक्षा से कृषि मन्त्री व लोकसभा में विपक्ष का नेता रहते हुए उन्होंने हमेशा ही सकल देश के विकास में अपना योगदान दिया। अपनी पार्टी के सीमित प्रभाव के बावजूद उनकी राजनीति कभी संकीर्ण नहीं रही जिसकी वजह से उनकी छवि राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ऊंचे पायदान पर रखकर देखी गई। हालांकि श्री शरद पवार का राजनीतिक पालन-पोषण कांग्रेस पार्टी में ही हुआ मगर ऐसेे मौके कई बार आये जब उन्होंने मुख्य कांग्रेस पार्टी छोड़ कर दूसरे पाले में रहना पसन्द किया और महाराष्ट्र के कई बार मुख्यमन्त्री रहते हुए स्वयं को कुशल व कुशाग्र प्रशासक होने के साथ लोक कल्याण खासकर किसानों व ग्रामीण और सामान्य जन के मुद्दों को सुलझाने से कदम पीछे नहीं हटाया। 1999 में जब उन्होंने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर विदेशी मूल के मुद्दे पर अपनी अलग ‘राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी’ बनाई तो उसके पीछे असली मकसद भारत के प्रधानमन्त्री पद पर जन्मजात भारतीय नागरिक को ही इसके लिए योग्य मानना था जिसका खुलासा उन्होंने 2004 में कांग्रेस नीत मनमोहन सरकार में शामिल होते हुए कर दिया और श्रीमती सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष व यूपीए चेयरमैन के रूप में पूर्ण सम्मान दिया परन्तु श्री पवार की राजनीति को समझने का यह बहुत ही सरलीकरण है। वह बहुत ही पेचीदा व उलझे हुए समीकरणों को किस प्रकार खोलने का जज्बा व सलीका रखते हैं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण उनके द्वारा अपनी जीवन गाथा पर लिखी पुस्तक के दूसरे भाग के विमोचन के अवसर पर देखने को मिला जब उन्होंने अपने ही द्वारा बनाई गई पार्टी के अध्यक्ष पद से हटने की घोषणा अचानक कर डाली। भारत की राजनीति में दखल रखने वाला सामान्य व्यक्ति भी जानता है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस का मतलब केवल शरद पवार ही है और उनकी पार्टी में जितने भी अन्य नेता हैं सब उन्हीं की मेहनत की कमाई खा रहे हैं। यह बात अलग है कि वह अपनी पार्टी के सभी प्रमुख नेताओं को खुला हाथ देते हैं और उन पर अन्य दलों की भांति कस कर नियन्त्रण रखने के पक्ष में नहीं रहते। शरद पवार को हालांकि राजनीति में कुछ लोग महाराष्ट्र के महारथी रहे राजनीतिज्ञ और केन्द्र में गृह व रक्षामन्त्री आदि रहे स्व. यशवन्त राव बलवन्त राव चव्हाण का शिष्य जरूर मानते हैं मगर राजनीति में उनके प्रेरणा स्रोत पं. जवाहर लाल नेहरू ही रहे हैं। श्री पवार कई बार अनौपचारिक बातचीत में इसका जिक्र करने से भी नहीं चूकते हैं। यही वजह है कि उनकी पार्टी के भीतर जो व्यवस्था है उसमें हर नेता को अपनी महत्वाकांक्षाओं को पंख लगाने की इजाजत भी होती है। यही वजह है कि उनके अध्यक्ष पद छोड़ने की घोषणा से ही पार्टी में कोहराम मच गया है और हर नेता उनसे अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की प्रार्थना कर रहा है। राजनीतिक पंडित इसकी वजह उनके भतीजे अजीत दादा पवार की राजनीतिक कलाबाजी की अटकलों को मान रहे हैं और कह रहे हैं कि अजीत दादा महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ भाजपा पार्टी के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस के कुछ विधायकों को तोड़कर ले जाने की अन्दरखाने चालें चल रहे हैं। इसका कारण यह माना जा रहा है कि एक वर्ष पहले महाराष्ट्र की ‘कांग्रेस-राष्ट्रवादी–शिवसेना’ महाविकास अघाड़ी गठबन्धन में से शिवसेना के 45 विधायकों को तोड़कर उद्धव ठाकरे की जो सरकार गिराकर शिवसेना के विद्रोही नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में नई भाजपा-शिंदे सरकार बनाई गई थी उसके भी गिरने के दिन अब जल्दी ही आ रहे हैं। कारण यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ​शिवसेना के बागी 16 विधायकों की सदस्यता रद्द कर सकता है। इन विधायकों में मुख्यमन्त्री शिंदे का नाम भी शामिल है। इस खामियाजे को पूरा करने के लिए भाजपा पहले से ही अजीत दादा पवार के साथ प्रेम की पींगे बढ़ा रही है। अतः शरद पवार ने एेसा दांव मार दिया है कि अजीत दादा पवार पूरी पार्टी में पूरी तरह अकेले पड़ गये हैं। हमें यह ध्यान रखना होगा कि जब पिछले दिनों अजीत दादा पवार के बारे में अफवाहें गर्म थीं तो श्री शरद पवार ने साफ कह दिया था कि जिसे पार्टी छोड़ कर जाना है जाये, वह उसका अपना फैसला होगा। अतः हमें घटना के पीछे के कारणों को पढ़ना होगा और फिर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना होगा। शरद पवार की नजरें 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर लगी हुई हैं और वह भलीभांति समझते हैं कि यदि राज्य में कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस व शिवसेना का गठबन्धन बना रहता है तो कुल 48 लोकसभा सीटों पर सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा से उनका जमकर मुकाबला होगा और इसी रास्ते से राष्ट्रीय राजनीति में महाराष्ट्र स्थापित होगा। राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की एकता में भी शरद पवार की अहम भूमिका रहेगी अतः तब तक उनकी पार्टी का हर नजर से मजबूत रहना बहुत जरूरी है। इसलिए उन्होंने ऐसा सुर्रा छोड़ दिया है जिसकी चाल को सभी पार्टी नेता अपने को सुरक्षित रखने की तरतीबें भिड़ाते रहें और यह सुरक्षा उन्हें केवल शरद पवार के साये में ही मिल सकती है। अतः हो सकता है कि श्री पवार अध्यक्ष पद छोड़ने के फैसले को वापस ले लें। इसके लिए उन्होंने वैसे भी दो-तीन दिन का समय मांगा है और साथ ही यह भी कह दिया है कि वह राजनीति से संन्यास नहीं ले रहे हैं और राज्यसभा का अपना बचा हुआ तीन साल का कार्यकाल पूरे दम-खम के साथ पूरा करेंगे।

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