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शरद पवार की ‘उलटबांसी’

माननीय शरद पवार यदि यह समझते हैं कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दे का राजनीतिकरण करके साफ बच कर निकल जायेंगे तो यह उनकी बहुत बड़ी गलत फहमी होगी।

माननीय शरद पवार यदि यह समझते हैं कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दे का राजनीतिकरण करके साफ बच कर निकल जायेंगे तो यह उनकी बहुत बड़ी गलत फहमी होगी। श्री पवार को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह देश के रक्षा मन्त्री रहे हैं  और वर्तमान में राज्यसभा सांसद भी हैं।  देश की सुरक्षा से जुड़े सभी संजीदा मसलों की उन्हें पूरी जानकारी है। अतः उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि चीन की नीयत  दौलत बेग ओल्डी  और गलवान घाटी को लेकर 2013 और  2017 से ही क्या रही है? 
श्री पवार ने बहुत चालाकी के साथ सेना के शौर्य पर सवाल खड़ा करते हुए कह दिया है कि चीनी घुसपैठ पर उनकी नजर थी। 1947 से लेकर आज तक सेना ने सीमाओं की सुरक्षा के मामले में कभी भी कोताही नहीं की है और यदि कोई कोताही हुई है तो वह सरकारों की तरफ से हुई है। सबसे बड़ी कोताही 1999 में स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में हुई थी जब वह इस देश के कार्यवाहक प्रधानमन्त्री थे क्योंकि इससे पहले उनकी सरकार एक वोट से संसद में गिर गई थी। 
तब भारी संख्या में पाकिस्तान ने अपने सैनिकों व आतंकवादियों की कारगिल में घुसपैठ करा दी थी। जबकि इससे पूर्व तत्कालीन रक्षा मन्त्री स्व. जार्ज फर्नाडीज कई बार कारगिल सेक्टर का ही दौरा करके आ चुके थे। तब सेना के वीर जवानों ने कारगिल से पाक घुसपैठियों को बाहर करने के लिए युद्ध लड़ा और अपने क्षेत्र को खाली कराया और भारी शहादत दी। यह सनद रहनी चाहिए कि 1999 में गुप्तचर असफलता (इंटेलीजेंस फेलियोर) की वजह से ऐसा हुआ था जिसकी बाद में जांच भी हुई थी, परन्तु लद्दाख की गलवान घाटी और ‘पेंगोंग सो’ झील मामले में बिल्कुल ऐसा नहीं है। 
चीनी सैनिकों ने सितम्बर 2017 में पेगोंग सो झील इलाके में बनी भारतीय सैनिक चौकी नम्बर आठ पर हमारे वीर सैनिकों के साथ झड़प की थी जिसमें हमारे दस जवान जख्मी हो गये थे। तभी से चीन की निगाह लद्दाख में खिंची नियन्त्रण रेखा पर है।  आज पेंगोंग सो इलाके में हालत यह है कि चीनी फौज चौकी नम्बर चार से लेकर चौकी नम्बर आठ तक के आठ किलोमीटर इलाके को व्यावहारिक रूप से कब्जाये हुए है और हमारे सैनिकों को गश्त  नहीं करने दे रहा है और चौकी नम्बर चार से पीछे ही रोक देना चाहता है। 
श्री पवार राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सस्ती राजनीति नहीं कर सकते और हमारी वीर सेनाओं का मनोबल नहीं गिरा सकते। जाहिर है कि चीनी सैनिक फिलहाल लद्दाख में खिंची नियन्त्रण रेखा के पार आकर भारतीय क्षेत्रों में सैनिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं और शरद पवार इसे सामान्य सैनिक शिष्टाचार की श्रेणी में रख रहे हैं? भारत की एक इंच जमीन पर भी अगर कोई विदेशी कब्जा करता है तो भारत की सेना उसे छुड़ाये बिना चैन से नहीं बैठ सकती।  शरद पवार को यह तो याद है कि 1962 में चीन ने भारत की अक्साई चिन की 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प ली थी मगर यह याद नहीं रहा कि 2003 में इसे ही वापस लेने का स्वर्ण अवसर भारत ने खो दिया था और तिब्बत पर चीन का अधिकार उसे प्लेट में रख कर दे दिया था! 
2003 में यदि भारत चाहता तो चीन से तिब्बत पर अक्साई चिन वापस लेने की सौदेबाजी कर सकता था क्योंकि तिब्बत उसकी सबसे बड़ी दुखती रग थी मगर हम तो इसमें ही खुश हो गये कि चीन ने ‘सिक्किम’ को भारत का अंग स्वीकार कर लिया है जबकि सिक्किम तो 1973 में ही इन्दिरा गांधी ने भारतीय संघ में मिला लिया था। सवाल तो असल में यह है कि चीन की नीयत भांपने में कहां और किससे चूक हुई है?
 चीन ने तो 2017 में ही साफ कर दिया था कि उसका निशाना लद्दाख की नियन्त्रण रेखा बनने वाली है इससे पहले दौलत बेग ओल्डी के इलाके में 2013 में उसने ठीक वैसी ही हरकत की थी जैसी वह अब कर रहा है। यहां की देपसंग मैदानी घाटी में चीनी सेनाएं 18 कि.मी. अन्दर तक आ गई हैं और यहां बने हमारे दुनिया के सबसे ऊंचे सैनिक हेलीपैड को निशाने पर रखे हुए है। शरद पवार एक शब्द चीनी नीयत के बारे में भी बोल देते तो बड़ी कृपा होती और यह भी बता देते कि 2014 से 19 तक भारत के रक्षा मन्त्री कितनी बार बदले गये? चीन से भारत 1962 में ही धोखा खा चुका है। 
2017 में डोकलाम में उसने यही काम पुनः करने की कोशिश की थी जिसे हमारी वीर सेनाओं ने नाकाम कर दिया था मगर शरद पवार कह रहे हैं कि नियन्त्रण रेखा पर गश्त लगाते दो देशों के सैनिक आमने-सामने आते रहते हैं और गलतफहमी की वजह से दूसरे की जमीन पर ऐसा होता रहता है तो फिर 15 जून को हमारे 20 वीर सैनिकों का कत्ल चीन की जालिम गुंडा सेना ने क्यों किया? क्यों चीन ने फिर से उसी जगह कब्जा कर लिया है जहां उसने कर्नल बी. सन्तोष का खून बहाया था? क्यों चीन पेंगोंग-सो झील इलाके की हमारी चौकी नम्बर आठ के क्षेत्र में हेली पैड बना रहा है? क्या यह सामान्य गतिविधियां हैं। 
श्री पवार स्वयं को राजनीति का धुरंधर अगर इसलिए मानते हैं कि वह बार-बार कांग्रेस पार्टी से बाहर आकर फिर से उसके साथ मिल जाते हैं तो अपना समय व्यर्थ गंवा रहे हैं क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा ऐसा मुद्दा नहीं है जिस पर वह जबान पलट कर सन्तुलन कायम कर दें।
 भारत की आम जनता इस मुद्दे पर इस कदर भावुक है कि वह बढ़ती महंगाई और लाॅकडाऊन के कष्टों को भी दरकिनार कर रही है।  इससे सभी राजनीतिक दलों को सबक लेना चाहिए और व्यर्थ के वे मुद्दे नहीं उठाने चाहिएं जिनसे भारत की जनता की निगाहों में इनकी छवि स्कूली बच्चों की तरह कलम और पेन पर लड़ने वालों की बनती हो बल्कि वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा के उन महत्वपूर्ण मुद्दों तक सीमित रहना चाहिए जिनका सरोकार सीधे आम आदमी से है। 
आम आदमी जब इस संकट के समय में पूरी परिपक्वता दिखा रहा है तो राजनीतिक दलों को उससे ही कुछ सीखना चाहिए! शरद पवार कह रहे हैं कि नियन्त्रण रेखा पर दो देशों के सैनिक गश्त लगाते हुए गलतफहमी में भिड़ तक जाते हैं। वाह री राजनीति तू कौन सा घर छोड़ेगी? 

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