मालदीव के तीखे तेवर

मालदीव के तीखे तेवर
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भारत और मालदीव के संबंध काफी अच्छे रहे हैं। मालदीव उन देशों में शामिल है जिसके साथ संबंधों का इतिहास काफी पुराना है। भारत ने हमेशा मालदीव की मदद ही की है। 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भारतीय सेना को भेजकर उस समय के राष्ट्रपति मोमून अब्दुल गयूम की सरकार को बचाया था। भारतीय सेना के जवानों ने विद्रोह पर तुरन्त काबू पा लिया था। मालदीव के पास इतनी सेना नहीं थी कि वह मामूली विद्रोह को काबू में ला सके। 2018 में जब पानी का संकट गहराया तो भारत ने ही मालदीव को जल पहुंचाया था। जरूरत की घड़ी में मालदीव की सहायता करने के लिए कोई अन्य देश नहीं बल्कि भारत ही खड़ा रहा है। मालदीव भारत से 70 समुद्री मील की दूरी पर​ ​निकटतम पड़ोसी है। शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों क्षेत्रों में भारतीय शिक्षक और डॉक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। व्यापार हो या पर्यटन भारत उसका सबसे बड़ा भागीदार बना हुआ है। भारत उसे चावल, गेहूं का आटा, चीनी, आलू, प्याज, सब्जियां और यहां तक कि नदी की रेत और निर्माण सामग्री जैसी अधिकांश आवश्यक वस्तुएं प्रदान करता है लेकिन अब मालदीव से अच्छी खबर नहीं आ रही है। मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू ने शपथ ग्रहण करते ही भारत विरोधी राग छेड़ दिया है।
राष्ट्रपति मोइज्जू ने भारत से कहा है कि वह अपनी सेना के जवानों को वापिस बुला लें। आधिकारिक तौर पर भारत से ऐसा अनुरोध तब किया गया जब भारत के केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू मालदीव में राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए राजधानी माले पहुंचे हुए थे। राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू चीन समर्थक माने जाते हैं। उनके बयानों से यह साफ है कि वह चीन की सत्ता के बहुत करीब हैं। चीन भारत को घेरने के लिए एक के बाद एक कई देशों पर अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा है ताकि भारत को उलझा कर रखा जा सके। मालदीव में भारत के केवल 70 सैनिक मौजूद हैं और वहां भारत का कोई सैनिक अड्डा नहीं है। चीन के इशारे पर मालदीव को अब सैनिकों की मौजूदगी भी अखर रही है। हिन्द महासागर का यह द्वीपीय देश वैसे तो बहुत छोटा है लेकिन उसकी रणनीतिक और सामरिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है, वह भारत के लक्षद्वीप से केवल 700 किलोमीटर की दूरी पर है। यह दूरी कम है, क्योंकि सामुद्रिक रास्ते में दूरी और कम हो जाती है। हिंद महासागर के महत्वपूर्ण देश होने के नाते, भारत के इतना करीब होने के नाते और हिंद महासागर में रणनीतिक उपस्थिति की वजह से ही मालदीव इतना अहम है। चीन बार-बार कहता है कि हिंद महासागर नाम होने से वह हिंदुस्तान का महासागर नहीं हो जाता, हालांकि सच तो यह भी है कि विश्व का 90 फीसदी व्यापार अब भी हिंद महासागर से ही होकर होता है। उसमें भारत के द्वीपों का अलग महत्व है और उसी वजह से मालदीव की भूमिका भी बढ़ जाती है, वहां भारतीय सैनिकों की मौजूदगी से फ्री-ट्रेड को सुनिश्चित किया जाता है। भारतीय नौसेना जहां कहीं है वह हिंद महासागर में मुक्त व्यापार को सुनिश्चित करती है, चाहे वह मालदीव में हो या फिर जो छोटे-छोटे द्वीपीय देश हैं, वहां पर भी फ्री ट्रेड को बचाए रखने के साथ ही मेरीटाइम पाइरेसी यानी समुद्री डकैतियों को भी रोकता है। भारत की उपस्थिति यह तय करती है कि पूरे विश्व का व्यापार और माल की आवाजाही स्वतंत्र तौर पर चलती रहे।
चीन काफी समय से इस जगह पर अपनी धमक और बढ़त बनाना चाहता है, जिस रणनीति को हम स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स के नाम से जानते हैं, उसी के तहत मालदीव, श्रीलंका, म्यांमार और कई छोटे-मोटे द्वीपों में भी खासा निवेश कर चुका है। पाकिस्तान में भी उसने खासी रकम निवेश के नाम पर खर्च की है, जिसमें ग्वादर पोर्ट भी शामिल है, भारत नहीं चाहता है कि चीन के कोई भी मंसूबे पूरे हो सकें, इसलिए भारत भी द डायमंड नेकलेस नामक रणनीति बना रहा है, कार्यान्वित कर रहा है। हमारे रणनीतिक, व्यापारिक हित वहां हैं, हमने मालदीव में अच्छा खासा निवेश किया है। इसलिए उसकी सुरक्षा के लिए बस दो हैलिकॉप्टर, एक डॉर्नियर एयरक्राफ्ट दिया है। हम कोई साम्राज्यवादी देश नहीं है, हम बस अपने हितों की सुरक्षा कर रहे हैं।
यद्यपि राष्ट्रपति मोहज्जू ने यह भी कहा है कि भारतीय सैनिकों की वापसी के बाद किसी दूसरे देश की सेना के जवानों को बुलाया नहीं जाएगा। उनका इरादा क्षेत्रीय संतुलन को बिगाड़ना नहीं है। मालदीव के चुनाव में विदेशी सैनिकों की वापसी राष्ट्रपति मोइज्जू के वादों में प्रमुख रहा है। मालदीव बहुत छोटा सा देश है। अगर वह क्षेत्रीय संतुलन को बिगाड़ता है तो यह उसके लिए ही नुक्सानदेह होगा। उम्मीद की जाती है कि मोइज्जू व्यावहारिक वास्तविकताओं को देखते हुए भारत के विरोध में ज्यादा सख्त कदम नहीं उठाएंगे क्योंकि उन्हें भारत के साथ संबंधों को कमजोर करने से सम्भावित परिणामों का एहसास हो सकता है। जो लोग इतिहास से सीखने में असफल होते हैं वे इसे दोहराने के ​िलए अभिशप्त होते हैं। चीन ने भी मालदीव को ऋण जाल में फंसाया हुआ है। पूर्व राष्ट्रपति यामीन अभी भी नजरबंद है।
ऐसा लगता है कि अब्दुल गयूम के शासन की विरासत को उन तत्वों द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है जो अपने संकीर्ण लाभ के लिए चीन के साथ गठबंधन कर रहे हैं। देखना यह है कि राष्ट्रपति मोइज्जू भारत और चीन में कितना संतुलन बनाकर चलते हैं। मालदीव के इन तेवरों को देखकर भारत को भी अपनी नीति में बदलाव करना होगा।

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