शेख हसीना और यूनुस सरकार

बंगलादेश की वर्तमान मोहम्मद यूनुस की अन्तरिम सरकार जिस प्रकार से इस देश की पूर्व प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजेद का भारत से प्रत्यर्पण कराने की कोशिश कर रही है
शेख हसीना और यूनुस सरकार
Published on

बंगलादेश की वर्तमान मोहम्मद यूनुस की अन्तरिम सरकार जिस प्रकार से इस देश की पूर्व प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजेद का भारत से प्रत्यर्पण कराने की कोशिश कर रही है उसे किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि शेख हसीना इस देश के ताजा आम चुनावों में जनता द्वारा चुनी गई प्रधानमन्त्री थीं और उनकी अवामी लीग को चुनावों में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ था। यदि इन चुनावों का इस देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने बहिष्कार किया तो इसमें शेख हसीना का कोई दोष नहीं था, क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए यह पार्टी स्वतन्त्र थी।

शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी 1971 में इस देश को पाकिस्तान के खूनी जबड़े से मुक्त कराने वाली पार्टी है और उनके पिता स्व. शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में इस देश के लोगों ने सशस्त्र संघर्ष करके अपने देश को मुक्त व स्वतन्त्र कराया था, जहां तक मोहम्मद यूनुस का सवाल है तो उनके शेख हसीना के शासन से गंभीर मतभेद रहे हैं और श्री यूनुस को पश्चिमी यूरोपीय देशों का एजेंट समझा जाता रहा है। उन्हें अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है, मगर शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते रहे हैं और वह जेल में भी रहे हैं।

बंगलादेश अपने जन्म काल से ही भारत का परम मित्र देश रहा है और दोनों के सम्बन्ध दो मौसेरे भाइयों जैसे रहे हैं परन्तु इस देश में बीच–बीच में इस्लामी कट्टरपंथी भी पनपते रहे हैं और उनका रुख उसी पाकिस्तान के हक में रहा है जिसने इस देश की बंगाली जनता को 1947 से 1971 तक गुलामों की तरह रखा था और उनके प्रजातान्त्रिक अधिकारों व सांस्कृतिक अधिकारों का पूरी तरह दमन किया था। बंगलादेशियों के लिए अपनी बांग्ला संस्कृति व परंपराएं सर्वोच्च रही हैं जिसके चलते इन्होने 1971 में मजहब के आधार पर बंटे भारत व पाकिस्तान के मुहम्मद अली जिन्ना के सिद्धान्त को कब्र में गाड़ दिया था। अतः मजबूत व सुरक्षित और लोकतान्त्रिक बंगलादेश भारत के सर्वथा हित में रहा है और जब-जब भी इस देश में लोकतन्त्र का गला घोटा गया है तब–तब ही यहां भारत विरोधी शक्तियों को पाकिस्तान ने पनाह देने की कोशिश की है।

मोहम्मद यूनुस की सरकार कोई चुनी हुई सरकार नहीं है फिर भी भारत की यह विदेश नीति रही है कि वह किसी अन्य देश के घरेलू मामलों में दखलंदाजी नहीं करता है और मानता है कि किस देश में किस प्रकार का शासन या सरकार रहेगी यह उसके लोगों का विशेषाधिकार होता है। इसी वजह से भारत ने मोहम्मद यूनुस की अन्तरिम सरकार के साथ भी दौत्य सम्बन्ध चालू रखे और आपसी सम्बन्धों में खटास पैदा नहीं होने दी। अब यह श्री यूनुस को देखना है कि वह किस प्रकार अपने देश की एक चुनी हुई नेता शेख हसीना को मानव संहार की खतावार बता रहे हैं, जबकि उनके शासन के खिलाफ बंगलादेश में छात्रों का जनान्दोलन भड़का था और उसमें हिंसा हुई थी। विगत 5 अगस्त को शेख हसीना अपना देश छोड़कर भारत आ गई थीं और भारत सरकार ने उन्हें शरण दी थी।

शेख हसीना के लिए भारत शुरू से ही दूसरा घर रहा है, क्योंकि उच्च स्तर की पढ़ाई–लिखाई भी इस देश में ही हुई है। 1975 में 15 अगस्त के दिन जब उनके पिता व बंगलादेश शासन के सर्वेसर्वा शेख मुजीबुर्रहमान के खिलाफ सैनिक विद्रोह हुआ था और उनके पूरे परिवार की हत्या कर दी गई थी तो उसके बाद शेख हसीना भारत में ही रही थीं। तब उनके स्थानीय अभिभावक भारत रत्न स्व. राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी बने थे, मगर हमें अब बदले विश्व परिदृश्य पर भी सोचना होगा। अमेरिका विश्व की एक महाशक्ति है और इसके चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी के नेता श्री डोनाल्ड ट्रम्प नये राष्ट्रपति चुने गये हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में ट्रम्प की नीति भारत के हितों की परोक्ष रूप से सरंक्षक की रही है। अतः मोहम्मद यूनुस का शेख हसीना को मानव संहार का मुजरिम बताना अकारण नहीं कहा जा सकता, इसलिए इस देश के कानून मन्त्री का यह कहना कि बंगलादेश इंटरपोल से शेख हसीना के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस जारी करने के लिए कहेगा जिससे उनका प्रत्यर्पण ढाका को हो सके।

मगर ऐसा करके श्री यूनुस बहुत बड़ा खतरा मोल लेंगे और भारत के साथ अपने सम्बन्धों का जोखिम उठाने की कोशिश करेंगे। मोहम्मद यूनुस ने गत रविवार को बंगलादेश में शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग की तरफ से विरोध सभाएं आयोजित तक करने की इजाजत नहीं दी। इससे लगता है कि वह अपने देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के वापस पटरी पर आने के हक में नहीं हैं, मगर भारत का सिर्फ इतना ही लेना-देना है कि बंगलादेश में वहां के लोगों की इच्छानुसार काम-काज चले। लोगों को अपने लोकतान्त्रिक अधिकार इस्तेमाल करने की स्वतन्त्रता यूनुस सरकार को देनी चाहिए, क्योंकि उनकी सरकार चुनी हुई सरकार नहीं है बल्कि सैनिक प्रशासन द्वारा सत्ता पर बैठाई गई अन्तरिम सरकार है। यूनुस सरकार का कहना है कि विगत जुलाई महीने में बंगलादेश में चले छात्र आन्दोलन के दौरान 753 लोगों की मृत्यु हुई औऱ हजारों लोग घायल हुए।

इसे लेकर सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल के समक्ष साठ से अधिक मुकदमें दर्ज किये हुए हैं और सभी में शेख हसीना को मुल्जिम बनाया हुआ है। देखने वाली बात यह है कि अपने देश की शासक रहते हुए शेख हसीना को अपने देश में हिंसक आन्दोलनों पर नियन्त्रण रखने का अधिकार था या नहीं और उन्हें शान्ति बनाये रखने के लिए जरूरी कदम उठाने का हक था या नहीं। कुल मिलाकर बंगलादेश के अगले कदम पर पूरे दक्षिण एशिया की नजर रहेगी, क्योंकि 1971 में इस देश के निर्माण के साथ पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति बदल गई थी।

आदित्य नारायण चोपड़ा

Adityachopra@punjabkesari.com

Related Stories

No stories found.
logo
Punjab Kesari
www.punjabkesari.com