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श्रीराम मंदिर-राष्ट्र मंदिर

मन में राम, रोम-रोम में राम, कण-कण में राम भगवान श्रीराम के पावन नाम के स्मरण मात्र से प्राणों में सुधा का संचार होता है। इस नाम की महिमा कौन नहीं जानता। भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के प्रतीक श्रीराम करोड़ों भारतीयों के रोम-रोम में बसे हुए हैं।

मन में राम, रोम-रोम में राम, कण-कण में राम
भगवान श्रीराम के पावन नाम के स्मरण मात्र से प्राणों में सुधा का संचार होता है। इस नाम की महिमा कौन नहीं जानता। भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के प्रतीक श्रीराम करोड़ों भारतीयों के रोम-रोम में बसे हुए हैं। रामचरित मानस में राम राजा होते हुए भी स्वयं को साधारण व्यक्ति के रूप में दर्शाते हैं। पुरुषार्थ ही उनका कर्म है। इस कर्म में एक ओर आतंकवादी ताकतों का वध करना उद्देश्य है तो दूसरी तरफ शबरी के बेर खाकर मानव मात्र की समानता को प्रतिष्ठित करना भी उनका लक्ष्य है। श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन त्याग, तपस्या, कर्त्तव्य और मर्यादित आचरण का उत्कृष्ट उदाहरण है। यही कारण है कि विज्ञान और विकास के दौर में भी श्रीराम जनमानस के देवता हैं। जनमानस की व्यापक आस्थाओं के इतिहास को देखें तो मर्या​दा पुरुषोत्तम श्रीराम कण-कण में विद्यमान हैं। श्रीराम शक्ति के ही नहीं विरक्ति के भी प्रतीक हैं। तभी तो मैथिलीशरण गुप्त का साकेत सचमुच इस बात की घोषणा करता हैः
‘‘राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है
कोई कवि हो जाए सहज संभाव्य है।’’
भारत के लोग अयोध्यापुरी में श्रीराम के जन्म स्थान पर भव्य मंदिर निर्माण के इच्छुक थे। उनकी इच्छा अब जाकर पूरी हो रही है। इस बात की पीड़ा जरूर रही कि अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए अपने ही देश में लम्बी लड़ाइयां लड़नी पड़ीं। वर्षों तक मामला अदालतों में चला, रक्त भी बहा और लोगों के घर भी जले लेकिन देश की सर्वोच्च न्याय पालिका ने करोड़ों हिन्दुओं की पीड़ा का हरण कर ​लिया। अब श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर की नींव खुदाई का कार्य प्रारम्भ हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब मंदिर के ​लिए भूमि पूजन किया था तो देशवासियों का मस्तक गर्व से ऊंचा हो गया था। अश्विनी जी जब भी अयोध्या मसले पर सम्पादकीय लिखने बैठते तो एक इच्छा जरूर व्यक्त करते कि मंदिर बन जाए ताे समूचा भारत श्रीराममय हो जाएगा। तब हम सभी श्रीराम लला के दर्शन करके पुण्य कमाएंगे लेकिन सियासत की विद्रूपता पर प्रहार करने से वे कभी चूक नहीं करते थे। वे यही आह्वान करते रहे-
‘‘मंदिर-मस्जिद के झगड़ों ने बांट दिया इंसान को
धरती बांटी, सागर बांटे, मत बांटो भगवान को।’’
अब यह संतोष की बात है कि तीन वर्ष में मंदिर निर्माण पूरा हो जाएगा। आस्थाओं की जीत हुई। यह भी खुशी की बात है कि अयोध्या के निकट मस्जिद का निर्माण भी शुरू हो चुका है। मुस्लिम भाइयों ने भी न्यायालय के फैसले को स्वीकार किया। कोई स्वर नहीं उठे।
यद्यपि श्रीराम मंदिर करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र होगा लेकिन यह भारत के लिए राष्ट्र मंदिर के समान होगा। जहां से पूरी दुनिया को साम्प्रदायिक सद्भाव और समता मूलक समाज का संदेश जाएगा। यह मंदिर पूरे देश में राष्ट्रीय एकता और भावनात्मक एकता को मजबूत करेगा। श्रीराम सबके हैं। श्रीराम सिख गुरुओं की वाणी में हैं, श्रीराम रहीम के हैं, इसलिए यह मंदिर रुहानियत का संदेश देगा। यह रुहानियत हमें संत-फकीरों और पीर पैगम्बरों ने सिखाई है। हम लोग यानी हमारी पीढ़ी बड़ी भाग्यशाली है जो राम मंदिर बनने की साक्षी बनेगी।
भारत मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का देश है। जहां शासन को लेकर राम राज के आदर्श दुनिया भर में स्थापित हों, वहां अब हम सब के भगवान श्रीराम का मंदिर अयोध्या में ​निर्माण तक पहुंच गया है। जिस राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी कोराेना काल के दौरान खुद जाकर श्रीराम लला के समक्ष नतमस्तक हुए और उन्होंने अनेक चौपाइयों का वर्णन करते हुए श्रीराम का विधि​वत तरीके से सिमरण किया।
हम सब जानते हैं मंदिर तो क्या दुनिया की कोई इमारत धन के बिना बन नहीं सकती और हमारे मंदिरों के देश भारत में श्रीराम का मंदिर जिस क्षेत्र, संस्कृति के तहत बनने जा रहा है, वह समर्पण निधि है अर्थात् लोग श्रीराम के लिए  अपनी भावना और आस्था से सहयोग दें। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के इस फैसले का मैं तहे दिल से स्वागत करती हूं  कि श्रीराम मंदिर के निर्माण में सरकारी पैसा नहीं लगेगा। इतना ही नहीं धन्ना सेठों का धन भी इसमें नहीं लगेगा। जितना भी खर्च होगा वह समर्पण निधि का लगेगा यानि लोग चाहे वो गरीब, अमीर किसी भी जाति, धर्म के हों जिनकी मन से आस्था, ​विश्वास हो, उनकी समर्पण निधि से ही बनेगा। हम कल्पना कर सकते हैं कि यह मंदिर कैसा होगा जहां लोगों का विश्वास, आस्था, समर्पण तन-मन-धन से होगा, उसकी पवित्रता और मान्यता ही कुछ और होगी। एक स्वर्ग जैसी अनुभूति होगी। कोई भी व्यक्ति चाहे वह 10 रुपए या 10,000 या 100000 या एक लाख से ज्यादा समर्पण निधि में सहयोग करेगा सबकी एक जैसी भावना होगी कि यह मंदिर हमारा है यानि राष्ट्र का मंदिर है।

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