भगवान या श्रीराम एक आस्था हैं, एक विश्वास हैं, हमारा अध्यात्म हैं और ब्रह्मांड के चप्पे-चप्पे पर हैं, इस अवधारणा से इन्कार किया ही नहीं जा सकता लेकिन जब अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद खड़ा हो जाए तो फिर कई पहलू सामने आते हैं। यह मामला पहली नजर में जो दिखाई देता है वह केवल हिन्दुओं या मुसलमानों की आस्था का नहीं है बल्कि सुप्रीम कोर्ट की उस मुहर का भी है जो उसने दो दिन पहले इस फैसले पर लगाई जिसमें ये कहा कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। बस बात खत्म हो जाती है और यहीं से एक नई बात शुरू हो जाती है, जो हिन्दुस्तान के हिन्दुओं में और श्रीराम में यकीन रखने वालों के लिए उनकी उम्मीदों को रोशन कर देती है। अब जो सबसे बड़ा सवाल है कि अयोध्या में श्रीराम का मंदिर कब बनेगा तो उसका जवाब भी उस समय मिल जाएगा जब 29 अक्तूबर से इस मुख्य मामले पर सुनवाई भी शुरू हो जाएगी। सबसे बड़ी बात यह है कि हिन्दू-मुस्लिम पक्षों को छोड़कर अगर राजनीति की बात की जाए तो हम कहेंगे कि यह स्वाभाविक है, क्योंकि कांग्रेस या अन्य विपक्षी पार्टियां इस मामले में हर चीज को अपने नफे-नुकसान से तौल रही हैं। वहीं भाजपा राम मंदिर को अपना 2019 का एजेंडा मान रही है।
अंदर ही अंदर भाजपा इसके लिए काम कर ही रही थी परंतु हमारा यह मानना है कि जिस अयोध्या में, जहां श्रीराम ने जन्म लिया वहां अब मंदिर निर्माण क्यों नहीं होना चाहिए। इतिहास गवाह है कि कभी यहां पर मंदिर था लेकिन 1526 में मुगल बादशाह बाबर ने यहां बना बनाया मंदिर हटा दिया और एक नया ढांचा खड़ा करवा दिया जिसे मस्जिद कहना शुरू कर दिया। बस यहीं से विवाद शुरू हो गया और फिर हमने देखा कि किस तरह बाबरी मस्जिद का 6 दिसंबर, 1992 को विध्वंस हुआ। तब से लेकर आज तक सब कुछ सुप्रीम कोर्ट से होकर गुजर रहा है और दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि मस्जिद में नमाज पढ़ने को लेकर जो हमने कहा वह मामला अब सात सदस्यीय बड़ी बेंच को अभी नहीं भेजा जाएगा। अगर इस मामले पर आगे बढ़ा जाए तो बाबरी विध्वंस के साथ-साथ अापराधिक और दीवानी मुकदमे भी चले और टाइटल मामला सुप्रीम कोर्ट में अभी भी चल रहा है। जरा याद करो 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह फैसला जब अयोध्या में सारे क्षेत्र को तीन गुंबदों में बांट दिया गया था। बीच का हिस्सा जहां श्रीराम का जन्म हुआ और जहां रामलला की मूर्ति थी, वह हिस्सा हिन्दुओं को दिया गया।
निर्मोही अखाड़े को सीता रसोई और राम चबूतरे वाला हिस्सा दिया गया, जबकि तीसरी हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया और इसी फैसले को लेकर मुसलमानों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे डाली। मामला उस समय थोड़ा और गर्मी में आया जब 9 मई, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी परंतु दो दिन पहले के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने मस्जिद और नमाज को लेकर जो व्यवस्था दी है उससे अयोध्या विवाद में जो रोड़े अटके हुए थे उनके हटने की उम्मीद बढ़ गई है। आने वाले दिनों में राम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर सुनवाई के साथ ही फैसला आना तय है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कोई चैलेंज नहीं कर सकता। श्रीराम मंदिर निर्माण अब तेजी से हो सके इसके लिए जितना काम विश्व हिन्दू परिषद और आरएसएस ने किया है, उसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम है। विश्व हिन्दू परिषद ने तो संतों के बड़े-बड़े सम्मेलन आयोजित करवाकर सरकार को बराबर एहसास कराया कि मंदिर निर्माण के एजेंडे से नहीं हटना चाहिए। वहीं आरएसएस ने तमाम तकनीकी पहलुओं को ध्यान में रखकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के सम्मान को मद्देनजर रखते हुए सरकार को आगे बढ़ने की सलाह दी। मामला हिन्दुओं की आस्था का है जिसे हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं। यह सच है कि हर बड़े फैसले की प्रतिक्रिया होती है लेकिन अब हिन्दुओं को लगता है कि उनका और इम्तिहान न लिया जाए वरना उसकी कीमत किसी को भी चुकानी पड़ सकती है।
बाबरी मस्जिद विध्वंस होने के बाद बहुत कुछ घटित हुआ था और ऐसा काला इतिहास अब वर्तमान की शांति व्यवस्था के बीच नहीं गुजरना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सारे मामले में संवेदनशीलता, लोगों की भावनाओं और आस्था का पूरा ध्यान रखा है। इसके बावजूद हम यही कहेंगे कि समाज को भी अपनी भावनाओं पर काबू रखना होगा। समाज में हिन्दू और मुसलमान सभी लोग हैं। हमारा तो शुरू से ही यही मानना है कि मुसलमान लोग अपना मजहब, अपनी परंपराओं के मुताबिक चलाएं और हिन्दू अपनी आस्था, अपनी परंपराओं के अनुसार चलाएं। कोई पूजा करे और कोई नमाज अदा करे यह सबका अपना-अपना ढंग है। सब इंसान एक हैं। खुदा और भगवान एक हैं। ऐसे में अब सब निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं और फैसले का इंतजार है। मुस्लिम पक्षकार पहले ही कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला लेगा हमें मंजूर है। यही बात निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को माननी होगी लेकिन आम देशवासियों और हिन्दुओं की भावना यही है कि बस अब बहुत जल्द श्रीराम मंदिर अयोध्या में बन ही जाना चाहिए।