यह सच है कि श्रीराम मंदिर को लेकर किसी भी हिंदू और भारतीय की आस्था के प्रति संदेह नहीं है। श्रीराम तो हमारे रोम-रोम हैं, हां मुद्दा उनकी जन्मस्थली जो कि अयोध्या में है में मंदिर बनाने को लेकर ज्यादा ही गर्म हुआ है। हमारे यहां बोलने-चालने की आजादी सबको इसलिए है क्योंकि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। खूब सियासतबाजी वो लोग कर रहे हैं जो इसे सियासत के आईने से देख रहे हैं। वर्तमान मोदी सरकार देख रही है कि अब सब कुछ अनुकूल स्थिति में है।
320 से ज्यादा सांसद चुनकर प्रचंड बहुमत पाने वाली भाजपा को व्यवस्था के दृष्टिकोण से कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट में केस चलता होने की वजह से कुछ मुश्किलें जरूर आयी तो हम समझते हैं कि दो दिन पहले मध्यस्थता करने वाले तीन नाम सामने आने से अब मंदिर निर्माण को लेकर मामला सही रास्ते पर चल निकला है। फिर भी मंदिर जब तक बन नहीं जाता तब तक हम इंतजार करेंगे लेकिन इतना जरूर है कि भाजपा और मोदी सरकार ने एक अच्छी पहल तो शुरू कर ही दी है। जो नए मध्यस्थ बने हैं उनमें पूर्व न्यायाधीश कलीफुल्ला,सीनियर एडवोकेट श्रीराम पांचू और श्रीश्री रविशंकर हैं। दो हस्तियां तो अदालत से जुड़ी हैं। खुद जज और जाने-माने अधिवक्ता रह चुके श्रीराम पाचू यकीनन तटस्थता के साथ मामले को आगे बढ़ायेंगे यह तय है।
श्रीश्री रवि शंकर को लेकर हम अभी से कोई टिप्पणी तो नहीं करना चाहते लेकिन यह सच है कि उनकी अपनी राजनीतिक इच्छाएं हैं। क्योंकि इससे पहले वह कश्मीर में शांति के लिए व्यक्तिगत तौर पर पहल कर चुके हैं जिसका कोई परिणाम नहीं निकल पाया और घाटी आज भी अशांत है। सोशल साईट्स पर चल रही लोगों की भावनाओं की शेयररिंग को लेकर मैं एक और बात कहना चाहता हूं कि इसी श्रीराम मंदिर को लेकर उन्होंने अपने आप से यहां भी खुद को प्रस्तुत किया तथा माहौल अच्छा बनने के बजाये बिगड़ने ही लगा। इन मध्यस्थ लोगों के बारे में इकबाल अंसारी ने कहा है कि अगर बात बनती है तो बेहतर है जबकि ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के जफर याब जिलानी ने कहा है कि अब हम अपनी बात मध्यस्थता करने वाली कमेटी के सामने रख सकेंगे। जबकि हाजी महबूब ने कहा है कि हर पक्ष को कोर्ट का फैसला मानना ही पडे़गा। खैर ऐसी प्रतिक्रियाएं आनी ही थी लेकिन खुशी इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट में अब तारीख पर तारीख के बजाये पहले से बहुत कुछ तय हो गया है। पैरामीटर सैट हो गए हैं जिसके अनुसार मध्यस्थता को लेकर सारी कार्यवाही अयोध्या में शुरू होगी और आठ हफ्ते के अंदर-अंदर सारी प्रक्रिया खत्म कर दी जायेगी और इसके चार हफ्ते के बाद सारी रिपोर्ट यही कमेटी सुप्रीम कोर्ट को देगी।
सुप्रीम कोर्ट बाद में फैसला करेगा और बड़ी बात यह है कि गोपनीयता बनायी रखी जायेगी। यह सब कुछ ऑन दा रिकार्ड हुआ है लेकिन हम यह मानते हैं कि करोड़ों हिंदू जन भावनाओं पर इस मामले को लेकर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। क्योंकि यह भगवान राम के प्रति आस्था का सवाल है और जब श्रीराम की आस्था की बात होती है तो मंदिर भी इसी आस्था का दूसरा रूप है। निरमोही अखाड़ा या श्रीराम जन्मभूमि न्यास से जुड़े लोग क्या कहते हैं और क्या नहीं इस मौके पर तो हम यही कहना चाहेंगे कि इन बड़े पक्षों के लोगों को अपनी भाषा की शैली पर शालीनता दिखानी होगी। ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहिए जिससे माहौल बिगड़े, आने वाला समय यकीनन एक उम्मीद की किरण लेकर आया है पहले बहुत कुछ हो चुका है राजनीति हो चुकी है अब तो समाधान का रास्ता जो कि निकलता नजर आ रहा है पर चलने का वक्त आ गया है। हम तो यही कहेंगे कि सुप्रीम कोर्ट ने इस अयोध्या के सर्वसम्मत फैसले के लिए जो तरीका खोजा है उसमें हमें भारत की गंगा-जमुना तहजीब नजर आती है। हमारा खुद का मानना यह है कि भारत और हिन्दुस्तान अकेले हिंदुओं का नहीं बल्कि यहां रहने वाले सभी मुसलमानों, सभी ईसाईयों और सभी सिखों का भी है क्योंकि ये सब के सब भारतीय हैं।
भारतीयता की पहचान और नागरिकता इसी हिंदुस्तानियत में छिपी है। तो ऐसे में कोई विवाद होना ही नहीं चाहिए था लेकिन धर्म संगठन चाहे वे अयोध्या के अखाड़े हों या अन्य मामले हर चीज का मार्यादा से पालन होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ेगा और सर्वसम्मत हल निकालेगा ऐसा विश्वास पूरे देश को है। कितने ही भाजपा नेताओं के खिलाफ केस चले और ये सब के सब 1992 में बाबरी मस्जिद गिरा दिये जाने के लिए जिम्मेवार माने गए थे।
श्रीराम की मूर्तियां और प्रमाण उनकी जन्मस्थली के वहां होने से जुड़ी हैं। इसके बारे में कोई दुष्प्रचार नहीं होना चाहिए। आपसी सहमति और सर्वसम्मति के अलावा एक दूसरे पर विश्वास करने का समय अब आ गया है, यकीनन मध्यस्थकार मस्जिद को लेकर भी कोई रास्ता निकालेंगे जिस पर किसी पक्ष ने आपत्ति नहीं की क्योंकि हर पक्ष को श्रीराम मंदिर चाहिए। मंदिर के लिए जब सब कुछ सैट हो जायेगा तो मस्जिद भी विवादित क्षेत्र से हटकर दूर बन जाए तो इसमें किसी को आपत्ति ही नहीं। अब बहुत जल्द श्रीराम मंदिर के निर्माण की उम्मीद की जानी चाहिए और सब कुछ सही दिशा में जा रहा है, लिहाजा पूरे देश को परिणाम के रूप में श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर होने वाले फैसले का इंतजार है।