दुनिया का सबसे दुर्गम और ऊंचा रणक्षेत्र सियाचिन अब सैनिकों के साथ पर्यटकों से भी गुलजार होगा। भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर को पर्यटकों के लिए खोल दिया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पूर्व लद्दाख में रणनीतिक लिहाज से एक अहम पुल कर्नल चेवांग रिचेन सेतु का उद्घाटन किया और सियाचिन बेस कैम्प पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। भारतीय सेना के इतिहास में रुचि रखने वालों को कर्नल चेवांग रिचेन का नाम याद होगा, जिन्हें दो बार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया है।
11 नवम्बर, 1931 को लद्दाख क्षेत्र के नुब्रा घाटी के सुमेर में जन्मे कर्नल चेवांग रिचेन को लेह और पार्टापुर सैक्टर में साहस के असाधारण कामों के लिए लद्दाख का शेर कहा जाता था। उनके नाम पर श्पोक नदी पर बना 430 मीटर लम्बा पुल हर मौसम में कनैक्टिविटी प्रदान करेगा, साथ ही सीमावर्ती क्षेत्रों में रणनीतिक लिहाज से अहम होगा जो सैन्य जरूरतों के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस पुल के निर्माण से लद्दाख में पर्यटन में बड़ी सम्भावनाएं दिखाई देने लगी हैं। बेहतर सम्पर्क, अच्छी सड़कें और बुनियादी ढांचे का विकास ज्यादा लोगों को इस तरफ आकर्षित करेगा।
अगर आज भारतीय सियाचिन का दीदार कर रहे हैं तो यह उन जवानों के साहस और शौर्य के कारण ही सम्भव हुआ है, जिन्होंने सीमाओं की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी है। सियाचिन के एक तरफ भारतीय सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा अक्साईचिन है। 1984 में पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जे की तैयारी में था लेकिन सही समय पर इसकी जानकारी होने के बाद भारतीय सेना ने आप्रेशन मेघदूत लांच किया। 13 अप्रैल, 1984 को सियाचिन ग्लेशियर पर भारत ने कब्जा जमा लिया। इससे पहले इस क्षेत्र में केवल पर्वतारोही आते थे। इसके बाद इस क्षेत्र में लोगों के आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम संधि हो गई। उस समय से इस क्षेत्र में फायरिंग और गोलाबारी होनी बंद हो गई।
1972 के शिमला समझौते में इस इलाके को बेजान और बंजर करार दिया गया। यानी यह इलाका इंसानों के रहने लायक नहीं माना गया। इस समझौते में यह नहीं बताया गया था कि सियाचिन में भारत और पाकिस्तान की सीमा क्या होगी। इसके बाद पाकिस्तान ने इस क्षेत्र पर फिर अधिकार जमाना शुरू कर दिया। सियाचिन ग्लेशियर के ऊपरी भाग पर भारत और निचले भाग पर पाकिस्तान का कब्जा है। भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के जितने सैनिक आपसी लड़ाई में नहीं मारे गए जितने यहां आक्सीजन की कमी और हिमस्खलन के कारण मारे गए। यहां ज्यादातर समय शून्य से 50 डिग्री नीचे तापमान रहता है।
अब तक दोनों देशों के 2500 से अधिक जवानों काे यहां जान गंवानी पड़ी है। इस युद्ध क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती को लेकर हमेशा विवाद रहा है। भारतीय सेना के दस जवान हिमस्खलन के कारण बर्फ में दब गए थे। इनमें से एक जवान हनुमंतप्पा को 6 दिन के बाद जीवित तो निकाल लिया था मगर कई अंगों के काम नहीं करने के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। इतनी शहादतों के बावजूद दोनों देशाें में कोई भी देश यहां से अपनी सेना को हटाने को तैयार नहीं। दरअसल भारत सियाचिन में ऊंचाई पर काबिज है और सामरिक ॣॣस्थिति के लिहाज से भारत की स्थिति मजबूत है।
सिया का मतलब होता है गुलाब और चिन का मतलब होता है पानी मगर इस गुलाब के कांटे काफी चुभने वाले हैं। यहां जीवन बहुत दूभर है। बेस कैम्प से भारत की चौकी तक पहुंचने में 20 दिन लग जाते हैं। आक्सीजन की कमी के चलते जवान बहुत धीरे-धीरे चलते हैं। हजारों फुट गहरी खाइयां, न पेड़-पौधे, न जानवर, न पक्षी। बर्फ इतनी कि अगर दिन में सूरज चमके और उसकी चमक बर्फ पर पड़ने के बाद आंखों पर पड़ जाए तो आंखों की रोशनी चली जाती है। जवानों के नहाने से लेकर दाढ़ी बनाने तक की मनाही है क्योंकि चमड़ी इतनी नाजुक हो जाती है कि एक बार कट जाए तो घाव न भरे। सियाचिन में भारतीय सेना की चुनौतियों को लेकर आम लोगों की जिज्ञासाएं बढ़ी हैं।
उन्हें सियाचिन बेस कैम्प और कुछ स्थानों पर अनुमति दिया जाना राष्ट्रीय एकीकरण के लिए अच्छा है। लद्दाख आने वाले पर्यटकों का अनुरोध रहा है कि उन्हें टाइगर हिल और उन स्थानों तक जाने की अनुमति दी जाए जहां भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध लड़ा था। भारतीय पर्यटक के तौर पर वहां जाएं तो उन शहीदों को नमन करें जिनके पराक्रम की कहानियां यह क्षेत्र सुनाता रहा है। पर्यटकों काे वहां स्वच्छता पर भी ध्यान देना होगा क्योंकि इस भूमि का कण-कण पावन है।