हाल ही के महीनों में सोने-चांदी की कीमतों में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। दस ग्राम सोने की कीमत 54 हजार को छू रही है, चांदी भी पहले से अधिक चमकी हुई है। 1947 में जब देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था उस समय से लेकर सोने-चांदी की कीमतों में हजारों रुपए की वृद्धि हो चुकी है।
15 अगस्त 1947 को सोने की कीमत 88.62 रुपए प्रति दस ग्राम थी, जबकि 15 अगस्त 2020 में सोने की कीमत 52,900 रु. प्रति दस ग्राम हो गई। यानि इस पीली धातु की कीमतों में 600 गुणा से अधिक वृद्धि हुई। पूरी दुनिया में सोना सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है।
जब भी दुनिया में उथल-पुथल होती है तो लोग सोने में निवेश करने के लिए दौड़ पड़ते हैं। पूरी दुनिया में केन्द्रीय बैंक सोने के भंडार रखते हैं। यहां तक कि करैंसी छापने का आधार भी सोना ही बनाया जाता है। वर्तमान में कोरोना वायरस की वजह से सभी सैक्टर में मंदी चल रही है। ऐसे में निवेशक सोना खरीदने में लगे हुए हैं और सोने की कीमतें सातवें आसमान पर पहुंच गई है। 1964 के बाद से ही सोने-चांदी की कीमतों में लगातार बढ़ौतरी होती गई। यह सही है कि सोने में निवेश करने वाले केवल अपने लाभ को देख रहे हैं क्योंकि सोने की कीमतों में और बढ़ौतरी की उम्मीद है।
जिन्होंने सोना गिरवी रखकर ऋण लिया है, उन्हें भी जमकर फायदा हो रहा है क्योंकि जब उन्होंने सोना गिरवी रखा था तब उसकी कीमत 35 से 40 हजार के बीच थी लेकिन अब कीमतें बढ़ने से उनका ब्याज तो बराबर हो जाएगा और रिटर्न भी अच्छा मिलेगा। सोने के प्रति भारतीयों का जुनून जग जाहिर है।
भारत आज भी सोने का बड़ा आयातक है। देश का आयात बिल बढ़ने से कई वर्षों से व्यापारिक असंतुलन कायम है। विदेश से कुछ भी आयात होता है हमें उसकी अदायगी डालर में करनी पड़ती है। भारतीयों ने अपने घरों में लगभग 30 हजार टन सोना जमा कर रखा है, जिस पर कोई ब्याज नहीं मिलता। फिर भी लोग अपने सोने को तिजोरियों से बाहर निकालने को तैयार नहीं हैं।
प्राचीन मंदिरों और शक्ति पीठों के खजानों में करोड़ों के सोने के आभूषण पड़े हैं। कोई भगवान कितना अमीर हो सकता है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। कुछ वर्ष पहले केरल के पद्मनाभ मंदिर के गुप्त तहखाने में बंद खजाना खोला गया था तो लोगों की आंखें चुंधिया गई थीं। खजाने की कीमत 20 बिलियन डालर यानी, 1,24750 करोड़ से अधिक आंकी गई थी। कोरोना के कहर से मिल रही आर्थिक चुनौतियों के बीच वििभन्न देशों में लाए गए राहत पैकेज से सोने-चांदी के निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी क्योंकि राहत पैकेज से महंगाई बढ़ने की आशंका बनी रहती है।
केन्द्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरें घटाने के चलते भी सोने के प्रति निवेशकों का रुझान बढ़ा। वैश्विक राजनीति में भी तनाव पैदा होने और अनिश्चितता के माहौल में सुरक्षित धातु के प्रति दिलचस्पी बढ़ जाती है। अमेरिका और चीन में तनाव तथा भारत-चीन टकराव से बुलियन को सपोर्ट मिल रहा है। शेयर बाजार में अनिश्चितता का माहौल है जिसके चलते लोगों ने सर्राफा बाजार का रुख किया।
दुनिया भर में स्वर्ण लॉबी बहुत शक्तिशाली है, वह चाहेगी िक सोने की कीमतें कम न हों। जिस तरह शक्तिशाली तेल लॉबी डालर के भाव ऊंचा रखने का प्रयास करती रहती है उसी तरह स्वर्ण लॉबी काम करती है। चांदी क्योंकि एक औद्योगिक धातु है और दुनियाभर में लॉकडाउन खुलने के बाद इसकी औद्योगिक मांग बढ़ने की संभावना है। सवाल यह है कि लोगों द्वारा सोने-चांदी में निवेश करना देश के लिए अच्छा है या नुक्सानदेह। यह सही है कि निवेशक तभी पैसा लगाता है जब उसे मुनाफे की उम्मीद हो। अगर वह बहुमूल्य धातु में निवेश करता है तो यह मान लेना चाहिए कि देश में उत्पादन गतिविधियों पर से उसका विश्वास उठ चुका है। बाजार की गतिविधियां भी उदास हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती उत्पादनशील मदों में धन के निवेश पर आधारित है। आज सभी क्षेत्रों को पूंजी की जरूरत है। बाजार को भी धन की जरूरत है। मंदी के माहौल में लोग आवश्यक वस्तुओं की ही खरीददारी कर रहे हैं ताकि उनका बस दिनभर का गुजारा हो जाए। अगर बाजार और उद्योग जगत में पैसा नहीं आएगा तो फिर देश की अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी पर कैसे आएगी।
सोने-चांदी में निवेश ‘डैड इन्वेस्टमैंट’ माना जाता है। घरों की तिजोरियों में पड़ा सोना अलाभकारी ही है। सरकार को भी विभिन्न पारियोजनाओं में निवेश के लिए धन की जरूरत है। हाल ही में राज्यों के वित्त मंत्रियों के एक समूह में पुराने सोने और आभूषणों की बिक्री पर तीन प्रतिशत माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाने के प्रस्ताव पर सहमति बन गई है। यह दर लागू होने से पुराना सोना बेचना महंगा हो सकता है।
अगर आप एक लाख का सोना बेचते हैं तो तीन हजार रुपए जीएसटी के काट लिए जाएंगे। अगर सोने के दाम भविष्य में घटते हैं तो यह अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत होंगे। इसका अर्थ यही होगा कि भारत की अर्थव्यवस्था में विश्वभर के निवेशकों का विश्वास बढ़ा है।
इस समय बाजार में सोने-चांदी की ट्रेडिंग हो रही है लेकिन ग्राहक नदारद है। लॉकडाउन में ढील के बावजूद ग्राहक ज्वैलर्स की दुकान तक आ ही नहीं रहे हैं। इसको देखते हुए रत्न आभूषण संगठन ने सरकार से 900 करोड़ की सहायता मांगी है। अभी माहौल सामान्य नहीं हुआ है।
सरकार को चाहिए कि ऐसी योजना लाए ताकि घरों में पड़ा सोना बाहर निकले, लोगों को इसके बदले धन मिले और वह धन बाजार में आये तभी बाजार गुलजार होंगे, बाजार गुलजार होंगे तो मांग बढ़ने से कंपनियों को ज्यादा उत्पादन करना होगा। आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी। फिलहाल तो हमें सोने-चांदी में निवेश के साईड इफैक्ट देखने को मिल रहे हैं।
-आदित्य नारायण चोपड़ा