सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के दस लाख कर्मचारी हड़ताल पर रहे। गत 21 दिसम्बर को भी बैंकों की हड़ताल रही थी। एक सप्ताह में दूसरी बार बैंक हड़ताल से कामकाज तो प्रभावित हुआ ही साथ ही करोड़ों के लेनदेन पर भी इसका पड़ा। 9 बैंकों के संघ के कर्मचारियों ने विजया बैंक और देना बैंक का बैंक आफ बड़ोदा के साथ विलय के विरोध में देशभर में कई जगह प्रदर्शन भी किये। सरकार ने सितम्बर माह में ही इन बैंकों के आधिकारिक विलय की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। आखिर क्या कारण रहे कि बैंक कर्मचारियों को केन्द्र सरकार की नीतियों के चलते विरोध व्यक्त करने के लिये सड़कों पर उतरना पड़ा। बैंक कर्मचारी वेतन में संशोधन की मांग भी कर रहे हैं। अब तक इंडियन बैंक्स एसोसिएशन ने वेतन में आठ प्रतिशत वृिद्ध की पेशकश की थी, जिसे बैंक कर्मचारियों की यूनियन यूएफबीयू ने ठुकरा दिया है। कुछ वर्ष पहले बैंकों में नौकरी मिल जाना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। बैंक की नौकरी के साथ ही युवाओं की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ जाती थी। बैंक की नौकरी अच्छी शादी की गारंटी मानी जाती थी। आज स्थिति यह है कि युवा बैंक में नौकरी करना ही नहीं चाहते। इसका अर्थ यही है कि बैंकिंग क्षेत्र की साख काफी घट गई है।
सरकार का मानना है कि बैंकों के विलय से संचालन सहभागिता पैदा होगी और छोटे-छोटे बैंकों की जगह बड़े ताकतवर बैंक उभरेंगे लेकिन कई लोगों को लगता है कि विलय के बाद बड़े बीमार बैंक पैदा होंगे। कुछ आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि देना बैंक और विजया बैंक का एनपीए कवरेज बैंक ऑफ बड़ौदा से बहुत कम है और विलय के बाद एनपीए की पहचान में अनिश्चितता पैदा होगी। इस अनिश्चितता, ज्यादा प्रविजनिंग और संभावित बीएम कंसोलीडेशन से बैंक ऑफ बड़ौदा को तुरन्त झटका लगेगा। सरकार की योजना बैंकों का आपस में विलय करके वैश्विक स्तर के कुछ बैंक बनाने की है। सरकार कहती है कि विलय के बाद इन बैंकों की संचालन क्षमता सुधरेगी, लागत में कटौती आयेगी और नये बैंक मौजूदा कई प्रतिस्पर्धी बैंकों को मात दे सकेंगे। कई लोग इस विलय को सुधारात्मक कदम से ज्यादा विवशता मानते हैं। वित्त विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इस विलय के पीछे देना बैंक को प्रभावी तौर पर बेलआउट देना है जिसके कर्मचारियों और फंसे कर्जों के बोझ का असर नये बैंक पर पड़ेगा।
असली समस्या तो छिप जायेगी, इसका समाधान तो हो ही नहीं पायेगा। अगर किसी बीमार बैंक का विलय किसी बड़े स्वस्थ बैंक के साथ कर दिया तो इससे विलय के बाद बड़े स्वस्थ बैंक के लिये मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। देना बैंक की मौजूदा स्थिति विलय के बाद बने नये बैंक की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। बैंकों का एकीकरण और इसकी विलय प्रक्रिया सरकार के लिये बड़ी चुनौती है। यद्यपि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैंक कर्मचारियों को आश्वासन दिया है कि किसी की नौकरी नहीं जायेगी और न ही उनकी सेवा शर्तों से छेड़छाड़ की जायेगी। बैंक कर्मचारी संगठन फिर भी विलय का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि विलय के बाद बनने वाला बैंक ज्यादा कुशल और क्षमतावान होगा। एसोसिएशन का कहना है कि विलय से बैंक की शाखायें बंद होने, बैंक लोन बढ़ने और स्टाफ की संख्या में कटौती से बिजनेस घटने की आशंकाएं प्रबल हैं।
बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक और विजया बैंक का कुल फंसा हुआ कर्ज 80,000 करोड़ से भी अधिक है। इन बैंकों के विलय से इन फंसे हुए कर्जों की वसूली क्या हो जायेगी? अगर नहीं तो फिर विलय का क्या फायदा होने वाला है। एक के बाद एक सामने आये बैंक घोटालों और एनपीए की बढ़ती समस्या से बैंकिंग क्षेत्र की विश्वसनीयता काफी घटी है। कई मामलों में जांच शुरू होने के बाद बैंकों के ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ कर्मचारियों पर दबाव काफी बढ़ गया है। जांचकर्ता प्रत्येक बैंक कर्मचारी को संदेह की दृष्टि से देखने लगे हैं। जहां तक जनता का सवाल है, वह भी बैंक कर्मचारियों को संदेह की दृष्टि से देखने लगी है। सरकार ने भी अपनी सभी छोटी-बड़ी योजनायें बैंकों पर लाद दी हैं जिससे बैंक कर्मचारियों पर काम का दबाव बढ़ गया है जिससे उनका दम फूलने लगा है। बैंकों में नियुक्तियां अब कहां की जा रही हैं। यही कारण है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से लोग दूर हो रहे हैं और निजी बैंकों का आकर्षण बढ़ा है। लोगों ने खुद को एटीएम से जोड़ लिया है। सरकार के सामने कई चुनौतियां और बहुत से सवाल भी हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की साख कैसे बढ़े। सरकार को हर फैसला सोच-समझ कर ही लेना होगा।