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सीता भी यहां बदनाम हुईं...

कई बार मैं सोचती हूं कि जिस भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र देश कहा और माना जाता है तो उस देश में वो लोग जो इस लोकतंत्र रखवालों की श्रेणी में आते हैं वो अपनी सीमाओं का उल्लंघन क्यों कर लेते हैं? यह सवाल अक्सर मेरे​ दिलो-दिमाग को कौंधता रहता है कि ज्यादा अधिकार और ज्यादा सुविधाएं मिलने से नागरिक संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघ क्यों करने लगता है? हमारा देश सबसे बड़ा लोकतंत्र इसलिए है कि यहां हर किसी को बोलने की अर्थात अभिव्यक्ति की स्वंत्रता है। इसका मतलब यह तो नहीं कि हम किसी के बारे में कुछ भी कहकर अपने लोकतंत्र का मजाक उड़ाएं या फिर उसे कलंकित करें। हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है जिसमें सभी धर्मों को बराबर का दर्जा देकर सबका सम्मान करने की बात कही गई है लेकिन अभी पिछले हफ्ते दुनिया में सबसे ज्यादा तीखे तेज-तर्रार तेवरों के लिए मशहूर ममता बनर्जी की पार्टी ​तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद कल्याण बनर्जी ने हमारी देवी मां सीता जी के बारे में टिप्पणी करते हुए सब कुछ कलंकित कर डाला। जिस मर्यादा पुरुषोत्तम राम-सीता ने हमें आदर्श जीवन की मर्यादा सिखाई और हमें मर्यादित रहने के ​लिए गोस्वामी तुलसी दास जी ने रामायण की रचना की, उनके बारे में ममता बनर्जी के इस खासमखास सांसद को इतनी भी लाज नहीं आई कि वह क्या बकवास कर रहे हैं। उन्होंने आज के राजनीतिक हालात का फायदा उठाने की कोशिश में माता जानकी के बारे में कुछ इस तरह कहा कि ‘‘यह तो अच्छा हुआ कि राम की पत्नी सीता को रावण ने अगुवा किया, अगर कहीं उसके चेलों ने अपहरण किया होता तो सीता की क्या हालत होती।’’

उनके इस विवादित बयान के बाद बवाल मच गया। उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा दी गई परन्तु मेरा मानना है ​कि आखिरकार ऐसे व्यक्ति के खिलाफ तुरन्त सजा क्यों नहीं तय की जाती। अगर ऐसा व्यक्ति सांसद है तो उसे जीवन में विशेष रूप से लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हुए और भी ज्यादा मर्यादित होना चाहिए। अगर वह अमर्या​दित होता तो उसके लिए सजा और भी ज्यादा तथा और भी सख्त होनी चाहिए। क्योंकि जीवन में मर्यादा विशेष रूप से लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना एक सांसद का सबसे बड़ा धर्म होना चाहिए।

हम सब देख रहे हैं यह कलियुग है, रिश्ते-नाते सब बेकार हो रहे हैं, मर्यादाएं भंग हो रही हैं, रिश्तों की अहमियत समाप्त हो रही है। बेटी पैदा होते ही असुरक्षित है। छोटी बच्चियों से बलात्कार, बूढ़ी औरतों से रेप, क्या नहीं हो रहा परन्तु कोई भगवान की जिसमें सबको आस्था हो सब आदर्श मान कर पूजा करते हैं, उसे बदनाम करना, उसके खिलाफ टिप्पणी कर अभद्र भाषा प्रयोग करना और वह भी वह व्यक्ति जो लोगों द्वारा चुना गया हो। लोगों के हितों को क्या देखेगा। मुझे तो लगता है वो तो अपने घर की बहू-बेटियों को भी बदनाम कर सकता है, जो सीता मां को बदनाम कर सकता है। ऐसे व्यक्ति पर एक्शन या सोशल बायकाट बनता है और उसे अपने पद से इस्तीफा तो जरूर देना चाहिए।

 माता सीता पवित्र थीं यह रामायण पढ़ने वाले जानते हैं लेकिन लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर लोकसभा से जीतकर आने वाले कल्याण बनर्जी जैसे नेता इतनी बड़ी बात माता जानकी के बारे में कह गए, ऐसे व्यक्ति को तो सार्वजनिक रूप से अगर त्याग देने की ममता बनर्जी की पार्टी पहल करती है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। आज की तारीख में हमें यह तो ध्यान रखना चाहिए कि हम भगवान के बारे में क्या कह रहे हैं। 

मुझे इतना कहना है कि माता सीता आदर्श जीवन, आदर्श पत्नी, आदर्श बहन, आदर्श बेटी और आदर्शों पर आधारित मां रही हैं और इन्हीं आदर्शों को आगे बढ़ाते हुए भाई और पिता के आदर्शों की परिभाषा भी तय की है। वह एक देवी हैं, हम सबकी मां हैं। भारत में नारी दुर्गा और भवानी भी हैं। जब यह संहार करने पर आती हैं तो हश्र भैरों, महिषासुुर की तरह होता है। ऐसे कठोर वाणी वाले नेता को जिसने माता जानकी का अपमान किया है पर एक्शन के लिए मेरा समाज और सरकार से अनुरोध है कि वह पहल करें और जितनी जल्दी हो सके न्याय भी करें ताकि भारत में एक अलग नजीर स्थापित हो सके।