पिछले दिनों मुझे सीता नवमी के उत्सव में भाग लेने का अवसर प्रदान हुआ, अजय भाई जी संस्थापक राष्ट्र मन्दिर के निर्माता हैं और हमारे साथ चौपाल के कार्य में भी जुड़े हुए हैं। बहुत बार आग्रह कर चुके थे परन्तु कुछ न कुछ वजह बन जाती थी। मैं कभी भी उनकी कथा या उनके किसी भी कार्यक्रम पह नहीं सकी परन्तु इस बार जब मुझे अजय भैय्या ने सीता नवमी के बारे में विस्तृत से बताया और उसको मनाने की महत्वता बताई तो रह नहीं सकी चाहे थोड़ा देर से पहुंची उसका भी मुझे खेद है।
यह कार्यक्रम जिसका आयोजन संजीव शर्मा जी ने किया था, सचमुच अविस्मरणीय था। वहां जाकर जो नजारा देखा जो वातावरण था जो भक्ति का सरूर था चारों तरफ फूलों की कलियों की खुशबू थी, सबसे बड़ी बात थी मंच पर सीता नवमी का वर्णन जो अजय भैय्या कर रहे थे और उनके साथ हमारे दो एम.पी. (जो उस समय सीता भक्त के रूप में मंच पर थे) क्या इन तीनों का आपस में भक्ति रस का तालमेल था, क्या मधुर आवाज थी, तीनों ने जो भाव प्रस्तुत किए उससे वहां उपस्थित एक-एक व्यक्ति भक्ति के सागर में गोते लगा रहा था। मैं या जो भी वहां बैठा था दिल से बैठा था। अजय भाई, मनोज तिवारी, हंसराज हंस ने ऐसा समां बाधा था जिसकाे शब्दों में बयान करना मुश्किल है और मुझे इन तीनों काे सुनकर यह समझ लग रही थी कि अगर दुनिया में, समाज में किसी अच्छाई-बुराई के लिए लोगों को जगाना है तो ऐसी हस्तियां इकट्ठे होकर भावपूर्ण गाकर, व्याख्यान करके यह खूब काम कर सकते हैं जिनका राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक समाज में एक सम्मानजनक पहचान है।
सीता नवमी के बारे में जैसे व्याख्यान किया गया वाक्य ही सीता मां को तो हम सदियों से पूजते आए हैं परन्तु यह सब सुनकर इस दिवस की महिमा, महत्व और भी समझ आई।
मां सीता के आदर्श और संस्कारों के बारे में हम सब जानते हैं कि उन जैसी पत्नी, उन जैसी मां और उन जैसी बेटी का उदाहरण पूरी दुनिया में नहीं है। नारी के सभी रूप में मां जानकी ने जो आदर्श स्थापित किए उस पर चलने की जरूरत है, उनका जीवन चरित्र पर आधारित था। यह कहावत मशहूर है, हर पुरुष की बड़ी सफलता के पीछे महिला का हाथ रहता है। यह सदियों से चली आ रही है। मुझे तो लगता है यह सीता मां से ही शुरू हुई क्योंकि राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने वाली सीता मां थी जिसने एक पत्नी के रूप में विवाह उपरान्त कुछ ही दिन महलों में बिताए फिर दुःख की घड़ी आने पर अपने पति श्रीराम के साथ ही वन जाने का फैसला किया। बेटी के रूप में उन्होंने माता-पिता की भावनाओं को समझा फिर राजा दशरथ के यहां जो सुशासन था और घर-परिवार में कैसे रहा जाता है, कैसे संस्कार निभाए जाते हैं। रिश्ते निभाने की बुनियाद उन्होंने रखी जो अपने आप में एक उदाहरण है। अग्नि परीक्षा के बाद उन्होंने जब महर्षि बाल्मीकि आश्रम में पुत्रों लव-कुश को जन्म दिया तो उन्हें बहुत बड़े संस्कार दिए। आज ऐसे संस्कारों की हर एक को जरूरत है। रामायण की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है। आदर्श पिता, आदर्श भाई, आदर्श माता और आदर्श राजा तथा आदर्श शासन की चर्चा होती है परन्तु हमारा मानना है कि माता जानकी ने जो आदर्श स्थापित किए, जो संस्कार निभाए वो ही हमारी भारतीय संस्कृति की जननी यह कह लो परिभाषा है।
अजय भैय्या का यह सपना था कि सीता मां के जन्मदिवस को एक पर्व के रूप में मनाया जाना चाहिए और यह 10 मई को उन्होंने पूरा किया क्योंकि उनके अनुसार सीता नवमी को भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान की विशेष भूमिका है ‘यत्र नारियस्तु पूज्यते रमंते तत्र देवता’ जहां नारी का सम्मान होता है वहां पर देवता भी वास करते हैं। बेटी, मां, बहन हैं उनसे सृष्टि है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ यह सबकी जिम्मेदारी है उनके अनुसार और हम सब भी मानते हैं। भारतीय संस्कृति में माता सीता जी का एक नारी के रूप में अति पूजनीय स्थान है। स्वयं शक्ति स्वरूपा होते हुए उन्होंने अपने चरित्र से पुत्री, पत्नी, महारानी माता के रूप में नारी का आदर्श रूप प्रस्तुत स्थापित किया। पिता राजा जनक को विकास दिया, पति श्री राम के चरित्र को प्रकाश दिया, नकारात्मक शक्ति दुष्ट रावण का विनाश किया तथा लव-कुश को साहस दिया।
वाक्य ही जिस प्रकार भगवान श्री राम पुरुषों में पुरुषोत्तम हैं उसी प्रकार माता सीता नारियों में सर्वोत्तम हैं। श्री सीता माता मर्यादित भारतीय नारी की पराकाष्ठा का एक आदर्श स्वरूप है। अजय भैय्या के अनुसार सीता नवमी को हर साल श्री शक्ति सम्मान समारोह के रूप में मनाना चाहिए। वहां उपस्थित महान हस्तियां विश्व हिन्दू से आलोक जी, स्वामी चिदानंद जी, मां भगवती देवी जो (परमार्थ निकेतन ऋषिकेश) और प्रवेश वर्मा, एमपी हंसराज हंस, एमपी मनोज तिवारी, डा. हर्षवर्धन, दैनिक सवेरा के शीतल विज और भी सामाजिक और राजनीतिक हस्तियां जो वहां मौजूद थी वे इस बात से सहमत होंगे और जो सब मेरे आर्टिकल को पढ़ रहे वो भी सहमत होंगे।
वाह अजय भैय्या जी आपने तो सीता माता की भक्ति को रोम-रोम में बसा दिया और लोगों के दिलों में बसा दिया। मैं आपसे यही उम्मीद करती हूं कि आप भारतीय संस्कृति, संस्कारों को अपनी इसी मधुर वाणी और अपने तरीके से आगे आने वाली पीढि़यों में जागृत करेंगे और अगर आपका साथ मनोज तिवारी और हंसराज हंस भी दें तो क्या बात है। जय हो।