सीपीआई (एम) महासचिव सीताराम येचुरी की मृत्यु ने भारतीय राजनीति में एक बहुत बड़ा शून्य छोड़ दिया है। वे एक प्रतिबद्ध मार्क्सवादी थे। अपने दिवंगत गुरु हरकिशन सिंह सुरजीत के शिष्य के रूप में येचुरी ने व्यावहारिकता को विचारधारा के साथ जोड़ने की कला शानदार ढंग से सीखी। सुरजीत-येचुरी की जोड़ी गठबंधन की राजनीति के शुरुआती वर्षों में सर्वव्यापी व्यक्तित्व थी, जिसने भाजपा के खिलाफ संयुक्त मोर्चा गठबंधन और बाद में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को एक साथ लाने में मदद की। भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखना उनका ध्येय था और इसके लिये कट्टर मार्क्सवादी विचारधारा को परे रख कर कांग्रेस से हाथ भी मिलाना पड़ा तो वह इसमें भी हिचकिचाए नहीं। यह दिलचस्प है कि येचुरी सोनिया और राहुल गांधी दोनों के कितने करीब हो गए। उनके पास उनके निजी मोबाइल नंबर थे और वे उनसे सीधे संपर्क में रहते थे, चर्चा करते थे, विश्लेषण करते थे और सलाह देते थे।
वरिष्ठ पत्रकारों के लिए, वे पहले एक मित्र थे और फिर सीपीआई (एम) नेता। उनमें से अधिकांश उन्हें जेएनयू में छात्र नेता के रूप में उनके दिनों से जानते थे। उनकी सुलभता, उनकी सहज मुस्कान, उनकी मधुर वाणी और उदारण देने की उनकी तत्परता ने उन्हें सबसे लोकप्रिय राजनेताओं में से एक बना दिया। चिकित्सा अनुसंधान के लिए अपना शरीर दान करके, येचुरी ने ज्योति बसु और बुद्धदेव भट्टाचार्य जैसे दिवंगत माकपा दिग्गजों की परंपरा को आगे बढ़ाया है। अलविदा कॉमरेड। आपकी कमी देश को खलेगी।
क्या इंजीनियर राशिद की रिहाई में हुई 'सौदेबाजी'
हालांकि कश्मीर के बारामूला निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सांसद और उग्रवादी नेता इंजीनियर राशिद भाजपा के साथ किसी 'सौदे' की बात से सख्ती से इनकार कर रहे हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक हलकों में राज्य में चल रहे विधानसभा चुनाव प्रचार की अवधि के लिए उन्हें जेल से रिहा करने के फैसले से हर कोई हैरान है। उन्हें अंतरिम जमानत देने के कदम के लिए केंद्र की मंजूरी की जरूरत होती। इंजीनियर राशिद एक संवेदनशील कैदी हैं जो 2019 से आतंकी फंडिंग के आरोप में दिल्ली की तिहाड़ जेल में हैं। यह मामला एनआईए के पास है और एनआईए केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है।
यह दिलचस्प है कि जब उन्होंने लोकसभा चुनाव में बारामूला सीट से चुनाव लड़ा था, तो उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया था। उनके अभियान का नेतृत्व उनके बेटे ने किया और इसने कश्मीरी युवाओं में अप्रत्याशित उत्साह पैदा किया, जिसके कारण नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला और भाजपा द्वारा समर्थित सज्जाद लोन की आश्चर्यजनक हार हुई। अब इंजीनियर राशिद खुद अपनी अवामी इत्तेहाद पार्टी की ओर से अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं और भीड़ जुटा रहे हैं। एआईपी एनसी के वोटों में सेंध लगा सकती है और एनसी-कांग्रेस गठबंधन को जीतने का मौका नहीं दे सकती। अगर एआईपी अच्छा प्रदर्शन करती है और सीटें जीतती है, तो ऐसा लगता है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा में बहुमत नहीं होगा। इससे चुनाव के बाद ऑपरेशन कमल के लिए रास्ता खुलने की संभावनाएं बन जाएंगी, जिससे भाजपा को भारत के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य पर शासन करने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने में मदद मिलेगी।
फारूख पर फिर ईडी के फंदे की फांस
चुनावी राज्य जम्मू-कश्मीर में ईडी ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और एनसी के संरक्षक फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के नये आरोप दर्ज करने वाला कदम उठाया है। पिछले महीने ही, जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले को खारिज कर दिया था। अब, जब चुनाव प्रचार जोरों पर है, ईडी की नींद खुल गई है और उसने एक नया मामला दर्ज किया है। हालांकि फारूक अब्दुल्ला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन वे जम्मू-कश्मीर में एक कद्दावर व्यक्ति हैं और उनका काफी सम्मान किया जाता है। चुनाव के समय ईडी के आने से विपक्षी दलों में संदेह पैदा हो गया है। उन्हें डर है कि सरकारी एजेंसी चुनाव के दौरान उन्हें निशाना बनाने की अपनी पुरानी चाल चल रही है।
क्या महायुति से बाहर आएंगे अजित पवार ?
एनसीपी (सपा) के प्रमुख शरद पवार ने अपने भतीजे अिजत पवार को राजनीतिक दांव-पेच दिखाने शुरू कर दिये हैं। लोकसभा चुनाव में अपने खराब प्रदर्शन के बाद, जिसमें उनकी एनसीपी महाराष्ट्र में एक भी सीट नहीं जीत पाई, अिजत पवार ने लगातार ऐसे बयान दिये हैं जिससे ऐसा लगता है जैसे वे घर वापसी चाहते हैं। उन्होंने कई बार ऐसी बातें कही हैं जो यह संकेत देती हैं कि वे अपने चाचा से उनकी सत्ता को चुनौती देने और भाजपा के साथ गठबंधन करने के लिए पार्टी को तोड़ने के लिए माफी चाहते हैं। उनकी ताजा टिप्पणी गढ़चिरौली की एक रैली में आई।
उन्होंने कहा कि समाज परिवारों में दरार पसंद नहीं करता। इससे महायुति के लोगों में हलचल मच गई है कि यह शरद पवार को सुलह का संकेत है। शरद पवार ने अभी तक अपना हाथ नहीं दिखाया है। अगर वह नरम पड़ते हैं और अजीत पवार को वापस लेते हैं, तो इससे महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों की स्थिति बदल सकती है। कई लोगों का मानना है कि यह उद्धव ठाकरे के लिए भी एक संकेत होगा कि वे उन शिवसैनिकों को भी वापस लें, जिन्होंने एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर दो साल पहले एमवीए सरकार गिरा दी थी।
– आर. आर. जैरथ