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सीतारमण का ‘देश मूलक’ बजट

वित्तमन्त्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 39 लाख करोड़ रुपए से अधिक के खर्चे का जो बजट पेश किया है वह निश्चित रूप से फौरी हानि-लाभ की जगह दीर्घकालीन आर्थिक मजबूती की गरज से रखा गया बजट कहा जायेगा

वित्तमन्त्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 39 लाख करोड़ रुपए से अधिक के खर्चे का जो बजट पेश किया है वह निश्चित रूप से फौरी हानि-लाभ की जगह दीर्घकालीन आर्थिक मजबूती की गरज से रखा गया बजट कहा जायेगा क्योंकि इसमें भविष्य के भारत की आर्थिक शक्ति को विकसित करने का ध्येय रखा गया है परन्तु इसके बावजूद हमें वर्तमान की चुनौतियों का सामना करते हुए ही यह लक्ष्य प्राप्त करना होगा जिसके  लिए तात्कालिक तौर पर कुछ संशोधनात्मक कदम उठाने की आवश्यकता पड़ेगी। इस सन्दर्भ में हमें इस बात पर विचार करना होगा कि सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियां केवल 22 लाख करोड़ रुपए के लगभग ही होंगी अतः 39 लाख करोड़ रुपए का खर्च करने के लिए हमें 17 लाख करोड़ रुपए की धनराशि विविध स्रोतों से जुटानी होगी जिसमें आगामी वित्त वर्ष में विनिवेश व अन्य सार्वजनिक साधनों की बिक्री शामिल होगी। इसमें पांच-जी स्पैक्ट्रम की नीलामी प्रमुख भूमिका अदा कर सकती है।
दूसरे इस बजट की प्रमुख बात यह है कि यह सस्ती लोकप्रियता से दूर जमीन की हकीकत को देख कर बनाया गया है जिसकी वजह से समाज के किसी भी वर्ग को रेवडि़यां बांटने से बचा गया है। मगर सरकार ने कृषि क्षेत्र की महत्ता का संज्ञान लेते हुए किसानों की फसल की न्यूनतम खरीद मूल्य पर खरीदारी के लिए ढाई लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया है जिससे खेती-किसानी में लगी हुई जनता अपने उत्पादन पर वाजिब लाभ के प्रति आश्वस्त हो सके। साथ ही सरकार ने आधारभूत ढांचा गत विकास पर लगातार जोर देने की नीति जारी रखी है और देश में सड़कों व राजमार्गों के निर्माण की वृहद योजना बनाई है और आगामी दो वर्षों में चार सौ नई वन्देमातरम् रेलगाडि़यां चलाने का खाका रखा है। इससे सरकार की उस दृष्टि का पता चलता है जिससे वह भारत में विकास कार्यक्रमों को विस्तार देना चाहती है। वित्तीय समावेश के लिए ​निर्मला सीतारमन ने देश के डेढ़ लाख डाकघरों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने की जो योजना बजट में रखी है उसका सकल ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गुणात्मक असर पड़ेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बैंकिंग प्रणाली से जुड़ कर समग्र अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी का लाभ पहुंचेगा। इस सन्दर्भ में हमें चालू वर्ष के जनवरी महीने में वस्तु व सेवाकर (जीएसटी) में कुल जमा एक लाख 38 हजार 394 करोड़ की धनराशि की तरफ देखना चाहिए। इस धनराशि में ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े लघु व छोटे उद्योगों का अंशदान भी महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए। जिसे देखते हुए वित्तमन्त्री ने बजट में लघु व मध्यम क्षेत्र के उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए छह हजार करोड़ की व्यवस्था की है। हालांकि इस धनराशि को कम कहा जा सकता है क्योंकि कोरोना काल में सबसे बुरा हाल इसी क्षेत्र का रहा था। मगर सरकार ने स्टार्ट्स अप (नवोमेषी) उद्यमों को कर छूट में समयावृद्धि देकर देश में वाणिज्य व उद्योग वातावरण को अधिक सकारात्मक बनाने का प्रयास किया है। यह प्रयास बताता है कि सरकार कोरोना के झटके में जूझते वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को इसके असर से बाहर निकालने में मदद करना चाहती है। 
भारत की अर्थव्यवस्था को बदलते मुद्रा विनियमन के दौर में नियमित करने की गरज से सरकार ने डिजिटल मुद्रा के चलन की तरफ भी खासा ध्यान दिया है और रिजर्व बैंक को डिजिटल रुपया जारी करने की इजाजत दी है और साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय गैर मान्य क्रिप्टो करेंसी के व्यापार पर भी पैनी निगाह रखते हुए इसके लाभान्तरण पर तीस प्रतिशत कर लगाने का फैसला किया है। इससे इस मुद्रा के प्रसार पर रोक लगेगी। बजट में सहकारी समितियों के लाभ पर कर में कटौती का ऐलान किया गया है। इसका लाभ ग्रामीण सहकारी समितियों को पहुंचेगा। बाजार मूलक अर्थव्यवस्था में बजट केवल सरकारी आर्थिक नीतियों का आइना होता है क्योंकि इस व्यवस्था में सरकार की भूमिका वाणिज्य से हट कर व्यापारिक गतिविधियों को सरल से सरल बनाने की हो जाती है परन्तु कर निर्धारण के अधिकार सरकार के हाथ में ही रहते हैं। इस दृष्टि से वित्तमन्त्री ने अपने बजट में किसी बड़े फेरबदल की घोषणा नहीं की है अर्थात व्यक्तिगत आयकर निर्धारण के घेरों को नहीं बदला गया है जिससे समाज के मध्य वर्ग के लोगों के बीच निराशा का भाव भी जन्म सकता है परन्तु जमीनी आर्थिक यतार्थ को देखते हुए सरकार को कुल 39 लाख करोड़ खर्च करने के लिए 17 लाख करोड़ रुपए की धनराशि की जरूरत पड़ेगी जिसे वह अपने आय स्रोत घटा कर पूरा नहीं कर सकती। संभवतः इसी वजह से निर्मला सीतारमन ने निजी आयकर ढांचे के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की है। 
दूसरी तरफ जीएसटी के खाते में हर महीने जिस तरह धनराशि बढ़ रही है वह आर्थिक मजबूती की परिचायक है। इस जीएसटी में भी देश के हर गरीब व अमीर आदमी की भागीदारी होती है। हकीकत यह है कि सरकार जो 39 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगी उसमें से सिर्फ सात लाख करोड़ रुपए के लगभग ही पूंजीगत खाते से खर्च होगा जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार पर गैर योजना मद में खर्च करने का कितना बड़ा भार है। इसकी एक वजह कोरोना का कहर ही रहा है जिसमें आर्थिक वृद्धि दर एक बार नकारात्मक तक हो गई थी। इसके बावजूद यह भारत के लोगों की दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिमाम है कि आज वृद्धि दर नौ प्रतिशत से ऊंची आंकी जा रही है। जाहिर है निर्मला सीतारमण ने यह बीड़ा भारत के लोगों की हर मुसीबत से पार पाने की हिम्मत के बूते पर ही उठाया है। मगर हमें एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस संघर्ष के समय में भारत के बैंकों की भूमिका सर्वोच्च रही है अतः इस क्षेत्र को अधिकाधिक मजबूत बनाने की सख्त जरूरत है। बजट में बैंकिंग उद्योग के लिए जो प्रावधान किये गये हैं उन पर पुनः विचार किये जाने की जरूरत है। कुल मिला कर यह बजट देश मूलक है जिसमें रक्षा उत्पादन क्षेत्र का भी स्वदेशीकरण करने का मन्त्र दिया गया है। जाहिर है कि अर्थव्यवस्था में ऐसी मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता है जिसे देश के गरीबों की आमदनी में वृ​द्धि और महंगाई से परेशान लोगों को राहत मिले।

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