लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

सीतारमन का शानदार फैसला

वित्त मन्त्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने राज्यों को जीएसटी (वस्तु व सेवा शुल्क ) मुआवजे का भुगतान करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा ऋण लेने का फैसला करके पिछले कई महीने से चले आ रहे विवाद को विराम दे दिया है।

वित्त मन्त्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने राज्यों को जीएसटी (वस्तु व सेवा शुल्क ) मुआवजे का भुगतान करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा ऋण लेने का फैसला करके पिछले कई महीने से चले आ रहे विवाद को विराम दे दिया है। वित्त मन्त्रालय के इस फैसले से राज्यों के बीच में भी पैदा हुए विवाद का अंत हो गया है और सभी ने इसका स्वागत किया है। इतना ही नहीं उनके इस फैसले का स्वागत विपक्षी पार्टी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व वित्त मन्त्री श्री पी. चिदम्बरम ने भी किया है। जो ​िक मौजूदा केन्द्र सरकार की आर्थिक ​नीतियों के कटु आलोचक माने जाते हैं। इससे यह साबित होता है कि लोकतन्त्र में इतनी शक्ति होती है कि वह मतभेदों को भुला कर सर्वानुमति पैदा कर सकता है। वास्तव में लोकतन्त्र की यह खूबी भी होती है क्योंकि इसमें फैसले दल-हित में न लेकर जनहित में लिये जाते हैं। जीएसटी शुल्क उगाही में  कमी आने पर इसकी भरपाई करने के वादे से केन्द्र बंधा हुआ था। अतः उसने अपना वादा पूरा किया है। पहले यह प्रस्ताव रखा गया था कि शुल्क उगाही में कमी आने पर केन्द्र द्वारा राज्यों का यथोचित हिस्सा न दे पाने की स्थिति में राज्य स्वयं ही रिजर्व बैंक से अपने-अपने हिस्से का ऋण लेकर इसकी भरपाई करें।
 केन्द्र के इस प्रस्ताव का गैर भाजपा शासित राज्यों ने विरोध किया जबकि भाजपा शासित राज्य इसके लिए राजी हो गये थे। नाराज राज्यों की संख्या दस थी। इनका कहना था कि जीएसटी परिषद की संरचना के समय किये गये अपने वादे पर केन्द्र सरकार स्थिर रहे और राज्यों को उनके वाजिब मुआवजे का भुगतान करे। यह मांग पूरी तरह जायज थी जो राज्य सरकारें कर रही थीं मगर अर्थव्यवस्था के सुस्त पड़ने पर केन्द्र की सकल जीएसटी उगाही स्वयं कम हो गई थी जिसकी वजह से केन्द्र इस जिम्मेदारी को राज्यों पर ही टालना चाहता था। जीएसटी परिषद की विगत सोमवार को हुई बैठक में इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं हो सका था और बैठक अनिश्चितता के माहौल में ही समाप्त हो गई थी। महत्वपूर्ण यह है कि इस परिषद की स्थापना अर्थात  जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों के पास अपने वित्तीय स्रोत नाम मात्र के रह गये हैं। उनके पास केवल पैट्रोल व मदिरा जैसी वस्तुएं ही हैं जिन पर वे अपनी सुविधानुसार कर लगा सकती हैं। शेष सभी वस्तुएं जीएसटी के घेरे में चली गई हैं।  यह जीएसटी केन्द्र वसूल करके राज्यों को उनका हिस्सा देता है। जीएसटी लागू करते समय अर्थव्यवस्था की विकास दर का जो पैमाना तय किया गया था उसके नीचे गिर जाने की वजह से और उत्पादक 
राज्यों के राजस्व में कमी आने की क्षतिपूर्ति केन्द्र सरकार को ही आगामी 2022-23 वित्त वर्ष तक करनी है।
 कोरोना के दुष्प्रभाव से यह कमी कुल 2.3 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की हो सकती है जिसकी क्षतिपूर्ति अन्ततः केन्द्र को ही करनी होगी। चालू वर्ष में ही यह कमी 65 हजार करोड़ रुपए के लगभग की है। अतः राज्यों के सामने संकट पैदा हो गया था कि वे इस कमी की भरपाई कैसे करें। यह मुद्दा जीएसटी परिषद में उठने पर केन्द्र की तरफ से प्रस्ताव दिया गया कि राज्य चाहें तो रिजर्व बैंक से कर्जा ले लें जिसे लेने में केन्द्र उनकी मदद करेगा। इस पर राज्य आपस में ही बंट गये। परिषद का एक नियम यह भी है कि इसमे हर फैसला सर्वसम्मति से लिया जायेगा। यह ध्यान में रखते हुए ही इसमें दो-तिहाई मत राज्यों के व एक तिहाई मत केन्द्र सरकार के तय किये गये, परन्तु मुआवजे के मुद्दे पर राज्यों के आपस में ही बंट जाने पर स्थिति काबू से बाहर जाती दिखी। 
नौबत यहां तक आ गई थी कि केरल के वित्त मन्त्री ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की योजना तैयार कर ली थी। जबकि जीएसटी प्रणाली लागू करने का मुख्य आधार ही केन्द्र व राज्यों के बीच हर हालत में पूर्ण सहमति होना थी। अतः वित्त मन्त्री सीतारमन ने एेसे संजीदा हालात में स्वयं कर्ज लेकर राज्यों को भुगतान करने का फैसला करके अनावश्यक रंजिश पैदा होने का खतरा टाल दिया है लेकिन तर्क दिया जा सकता है कि इसका आम जनता से क्या लेना-देना है? इसका आम जनता से बहुत गहरा लेना-देना है क्योंकि राज्यों को अब अपनी सभी विकास गतिविधियों और खर्चों के लिए जीएसटी के अपने हिस्से पर ही निर्भर करना पड़ता है। दो-तीन महीने पहले एेसी खबरें आ रही थीं कि कर्नाटक सरकार के पास अपने कर्मचारियों की तनख्वाहें देने तक के पैसे नहीं हैं। एेसी हालत में कुछ अन्य राज्य भी पहुंच गये थे।
 कोरोना ने सभी राज्यों की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी है। अतः वे केन्द्र से अपने हिस्से की धनराशि की मांग कर रहे थे। केन्द्र द्वारा उनको उल्टे यह कहना कि वे इसकी भरपाई स्वयं ही रिजर्व बैंक से कर्ज लेकर कर लें, अटपटा लग रहा था क्योंकि केन्द्र उनकी भरपाई के लिए शुरू से ही वचनबद्ध था।  अतः प्राकृतिक न्याय की भावना से काम करते हुए वित्त मन्त्री ने सही निर्णय लिया। इसके साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि वित्त मन्त्री रिजर्व बैंक से एक लाख दस हजार करोड़ रुपए का ऋण जिस ब्याज दर पर लेंगी वही ब्याज दर राज्यों पर लगेगी और यह राज्यों के लिए पूंजी प्राप्तियों के रूप में दर्ज किया जायेगा जिसका असर केन्द्र के वित्तीय घाटे पर नहीं पड़ेगा। यह अत्यन्त बुद्धिमत्तापूर्ण फैसला है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 × two =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।