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होशियार मतदाता और राजनेता!

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लोकसभा चुनावों के लिए मतदान के पहले चरण में केवल दस दिन का समय शेष रह जाने पर राजनैतिक दलों की बदहवासी जिस तरह सामने आ रही है उससे आसानी से कयास लगाया जा सकता है कि जमीन पर हालात कैसे हैं? दैनिक स्तर पर चुनावी एजेंडे को बदलने की कोशिशें बता रही हैं कि लोकतन्त्र का असली मालिक मतदाता बहुत होशियार हो गया है। यह हकीकत राजनैतिक दलों को अब परेशान करती सी दिखाई दे रही है कि जिसकी वजह से एजेंडे में बार-बार तब्दीली की जा रही है। जाहिर तौर पर राष्ट्रीय चुनाव कभी भी न तो म्युनिसिपलिटी और न ही हिन्दू-मुसलमान या जाति-बिरादरी या क्षेत्रीयता के आधार पर लड़े जा सकते हैं।

इनका आधार राष्ट्रीय विकास में प्रत्येक वर्ग और समुदाय की समतामूलक हिस्सेदारी ही हो सकता है जो प्रत्येक मतदाता का संवैधानिक अधिकार है मगर राजनैतिक दल सम्प्रदाय, जाति व क्षेत्र के आधार पर लोगों को गोलबन्द करके अपना वोट बैंक बनाने के चक्कर में रहते हैं जिससे उनकी चुनावी विजय आसान हो सके और लोग अपने मूल मुद्दों से भटक कर उनके जाल में फंस सकें लेकिन चुनावी मैदान में राजनैतिक दलों की बौखलाहट और बदहवासी बता रही है कि मतदाता सजग है और वह सियासतदाओं से पाई-पाई का हिसाब मांग रहा है और सियासतदां हैं कि उसे हवा में उड़ने के गुर सिखाने में सारा ज्ञान बघार रहे हैं मगर वे यह नहीं जानते कि हिन्दोस्तान का मतदाता उड़ती चिड़िया के पर गिनने में भी माहिर है, उसे न कोई राष्ट्रवाद सिखा सकता है और न समाजवाद क्योंकि एक भारतीय होने के नाते उसे पता है कि भारत के हित में कौन सा ‘वाद’ है।

इसका मैं एक ही उदाहरण देता हूं कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ उस ‘मोहम्मद अखलाख’ के गांव ‘बिसारा’ में एक चुनावी रैली सम्बोधित करके आये जहां गोमांस अपने घर के ‘फ्रिज’ में रखे होने के सन्देह में उसकी हत्या कर दी गई थी। इस रैली में श्रोताओं की भीड़ में पहली पंक्ति में ही वे 15 लोग ससम्मान विराजे हुए थे जिन पर अखलाख की हत्या के अपराध में मुकदमा चल रहा है। अखलाख का एक बेटा भारतीय वायुसेना की सेवा में है। दिल्ली के समीप ग्रेटर नोएडा के इलाके के इस गांव में मुख्यमन्त्री आदित्यनाथ ने फरमा दिया कि बिसारा की घटना को कौन नहीं जानता है। पिछली मुलायम सिंह सरकार हमारी भावनाओं के साथ खेला करती थी।

संवैधानिक पद पर बैठे हुए देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के कार्यकारी मुखिया का यह बयान सीधे अपराधियों की पैरवी करने के साथ ही मतदाताओं को सीधे-सीधे हिन्दू और मुसलमानों में बांट कर न केवल चुनाव आचार संहिता का मजाक उड़ाता है बल्कि गोरक्षा के नाम पर मनुष्यों की हत्या करने की भी परोक्ष वकालत करता है। अन्य दलों के नेताओं के साथ भी कई मंचों पर आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को देखा जा रहा है। अन्य दलों के नेता भी जातिवाद का जहर घोलने में कम नहीं हैं। इसका मतलब यह निकलता है कि न तो वह हिन्दुओं के हितचिन्तक हैं और न मुसलमानों के बल्कि वह केवल दो समुदायों को आमने-सामने लाकर वोटों की खेती करना चाहते हैं परन्तु उनके इस कथन को रैली में ही मौजूद अनपढ़ समझे जाने वाले किसानों ने जिस तरह लिया उससे सभी के कान खुल जाने चाहिएं।

किसानों ने कहा कि योगी जी को सबसे पहले किसानों के बकाया गन्ना भुगतान के बारे में बात करनी चाहिए जो दस हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का है। एक मुख्यमन्त्री के रूप में उनका यही काम है। हमारी भावनाएं हमारी हैं, योगी जी की नहीं। असल में संवैधानिक लोकतन्त्र में राजनीति का एक स्पष्ट सिद्धान्त है कि दुनिया के किसी भी कोने में जब राजनीतिज्ञ लोगों को धर्म या रंग अथवा जाति या बिरादरी में बांट कर ‘बराबरी’ के सिद्धान्त को ‘गैर बराबरी’ की तराजू में तोलने लगें तो इसका अर्थ समझ लेना चाहिए। महात्मा गांधी ने स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय ही इस तरफ आगाह कर दिया था और ‘यंग इंडिया’ व ‘हरिजन’ में लेख लिख कर समझाया था कि अराजकता और सरकार में क्या अन्तर होता है।

लोकतान्त्रिक सरकार में हिंसा तो दूर की बात हिंसा के प्रतीकों के सहारे भी यदि हम सामाजिक न्याय की बात करते हैं तो गांधी की नजर में वह अराजकता को बढ़ावा देने का ही प्रयास कहा जायेगा मगर योगी जी सहारनपुर में कह आये कि वहां का मुस्लिम कांग्रेसी प्रत्याशी तो पाकिस्तान के आतंकवादी अजहर मसूद का ‘दामाद’ है। भारत के देशभक्त मुसलमानों का इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है ? क्या योगी जी को इतिहास की जरा भी जानकारी नहीं है कि सहारनपुर से कुछ ही दूर ‘देवबन्द’ के दारुल उलूम के उलेमाओं ने ही 1947 में पाकिस्तान बनने का कड़ा विरोध किया था और ऐलान किया था कि हिन्दोस्तान उनके लिए किसी ‘देवभूमि’ से कम नहीं है। इसलिए चुनाव लड़े जायें तो जनता के एजेंडे पर क्योंकि इन पर जो भी पैसा खर्च होता है वह जनता का ही होता है।

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