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धुआं-धुआं होते शहर

दिल्ली फिर जहरीली गैसों का चैम्बर बन चुकी है। लोगों का दम घुट रहा है। अभी कुछ दिन और दिल्ली वालों को भयानक स्थितियों का सामना करना पड़ेगा।

दिल्ली फिर जहरीली गैसों का चैम्बर बन चुकी है। लोगों का दम घुट रहा है। अभी कुछ दिन और दिल्ली वालों को भयानक स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। दिल्ली में दीपावली की रात पटाखे चलाने के लिए दो घंटे का समय निर्धारित किया गया था। यद्यपि पटाखों से वायु प्रदूषण का स्तर इस बार कम रहा लेकिन वास्तविकता है कि जितना प्रदूषण हुआ वह भी पहले जितना खतरनाक है। क्योंकि दिल्ली पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश में किसानों द्वारा पराली जलाने से धुएं का आक्रमण हो गया। 
दिल्ली में 15 फीसदी से लेकर 60 फीसदी तक प्रदूषण के लिए पराली का जलाया जाना ही जिम्मेदार है। प्रदूषण की समस्या केवल राजधानी में ही नहीं है, देश के अन्य महानगर और शहर भी धुएं की चपेट में हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और शीर्ष अदालतें कई बार पराली जलाए जाने पर रोक के निर्देश दे चुकी हैं लेकिन पराली जलाने पर रोक नहीं लगी है। दरअसल पराली जलाने और पटाखे जलाने पर रोक कानून द्वारा न तो सम्भव है और न ही व्यावहारिक। किसान आखिर करें तो क्या करें। क्या पराली जलाने पर हर ​किसान को दंडित किया जा सकता है। 
राज्य सरकारों और किसानों को कोई रास्ता नहीं मिल रहा। पंजाब में इस वर्ष 23 से 27 अक्तूबर के बीच पराली जलाए जाने के 12 हजार से अधिक मामले दर्ज ​किए गए जो पिछले वर्ष इसी दौरान पराली जलाए जाने की घटनाओं से 2,427 ज्यादा है। वहीं हरियाणा में भी इस वर्ष पराली जलाए जाने के हजारों मामले सामने आए हैं। आंकड़ों के ​मुताबिक हरियाणा में करनाल में सबसे ज्यादा पराली जलाने की घटनाएं सामने आई हैं। 20 अक्तूबर तक 834 मामले सामने आ चुके हैं। पुलिस कहती है कि अब इन मामलों में एफआईआर दर्ज करने के ​लिए खेतों के मालिकों के नाम ढूंढे जा रहे हैं। इसमें राजस्व विभाग भी पुलिस को मदद दे रहा है। दूसरी तरफ किसानों की अपनी विवशताएं हैं। 
उनका कहना है कि माचिस एक रुपए की आती है जबकि हैप्पी सीडर्स एक लाख 5 हजार रुपए लेते हैं। अगर मजदूरों को लगाकर पराली की सफाई कराई जाए तो डेढ़ किले पर लागत दस हजार से ऊपर बैठती है और इस काम में कई दिन लग जाते हैं। अगर मशीन किराए पर लेते हैं तो डीजल का खर्च काफी बढ़ जाता है। धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच बहुत कम समय मिलता है। गेहूं की बुवाई के लिए किसानों को जल्द से जल्द खेत खाली करना होता है। किसान मशीनों का इंतजार नहीं कर सकते। पंजाब और हरियाणा की सरकारें केन्द्र सरकार की ओर से मिले राहत पैकेज को खर्च कर चुकी हैं। पंजाब के कृषक समूह और कस्टम हायरिंग सेंटर्स को 43 हजार मशीनें बांटी भी जा चुकी हैं। 
हरियाणा में भी पराली प्रबंधन के लिए मशीनें बांटी जा रही हैं लेकिन यह मशीनें हर परिस्थि​ति में प्रभावी नहीं हैं। यह मशीनें सब्जी पैदावार करने वाले खेतों में प्रभावी नहीं हैं, वहीं सीडर्स को काम करने के लिए तय नमी की जरूरत हाेती है। अगर उससे कम या ज्यादा नमी होगी तो बची हुई पराली को मशीनों से काटना असम्भव है। फसल की कटाई कम्बाइनों से की जाती है जो ​कि फसल को ऊपर से काटती है और पराली खेतों में खड़ी रहती है। पराली को खत्म करने का सबसे सस्ता उपाय उसे आग लगाना ही है। किसानों पर एफआईआर दर्ज करने से कुछ नहीं होने वाला जब तक सरकारें पराली जलाए जाने का विकल्प प्रस्तुत नहीं करतीं। 
सरकारों द्वारा विकल्प पेश करने में विफल रहने पर ही दिल्ली की हवाएं जहरीली हुई हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजैंसी द्वारा जारी की गई सैटेलाइट तस्वीरों से साफ है कि दिल्ली और आसपास के शहरों में पराली जलाई जा रही है। कभी गाजियाबाद देश का प्रदूषित शहर बन रहा है तो कभी हरियाणा का करनाल, हिसार या फिर गुरुग्राम और नोएडा। रोजाना आ रहे आंकड़े आतंकित करने लगे हैं। पर्यावरणविद कहते हैं कि पराली को ट्रैक्टर में छोटी मशीन द्वारा काटकर खेत में ही बिखेरा जा सकता है। इससे आगामी फसल को प्राकृतिक खाद मिल जाएगी और प्राकृतिक जीवाणु और लाभकारी कीट जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए पराली के अवशेषों में ही पल जाएंगे। पराली को काटकर खेतों में भी दबाया जा सकता है। 
मगर ऐसी मशीनें लेना आम किसान के लिए मुश्किल है। सरकारों को सस्ता विकल्प पेश करना होगा अन्यथा जुर्माना लगाकर ​किसानों का भला नहीं किया जा सकता। केन्द्र सरकार साल में कुल 6 हजार की रकम किसानों को देती है ले​किन अगर भारी-भरकम जुुर्माना ही वसूल लिया गया तो फिर किसानों की आय बढ़ेगी कैसे? अगर यही सिलसिला चलता रहा तो दिल्ली हर वर्ष धुआं-धुआं होती रहेगी।

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पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।