धुआं-धुआं होते महानगर - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

धुआं-धुआं होते महानगर

राजधानी दिल्ली में कचरे के पहाड़ों में आग लगने और धुआं-धुआं होते महानगर की खबर कोई नई नहीं है। साल दर साल हम ऐसे परिदृश्य देखते रहते हैं। कचरे के पहाड़ों में आग लगने से न केवल वातावरण प्रदूषित होता है बल्कि लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ होती है। दिल्ली के गाजीपुर में कुतुबमीनार जितने ऊंचे हो चुके कचरे के पहाड़ में आग लगने के बाद गुड़गांव के डम्पिंग यार्ड में आग लगने की खबरें भी आ रही हैं। देश के कई महानगरों में ऐसे ही कचरे के पहाड़ बन चुके हैं लेकिन कचरे के निपटान की कोई कारगर नीति ठोस रूप नहीं ले पाई है।
देश में साफ सफाई को लेकर सरकारें हर स्तर पर काम कर रही हैं लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है वैसे-वैसे ही कूड़ा भी बढ़ रहा है। शहरों में घरों और फैक्टरियों से निकलने वाला कूड़ा बड़ी समस्या बन रहा है। इस बीच कूड़े को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। इनके मुताबिक देश में कुल 1854 बड़े कूड़े के ढेर या लैंडफिल साइट हैं। इन जगहों पर महीनों पुराना कूड़ा जमा हुआ है। इसे लीगेसी लैंडफिल कहा जाता है। इनमें से 50 फीसदी से अधिक लीगेसी लैंडफिल साइट सिर्फ पांच राज्यों में ही है। मतलब इन पांच राज्यों में सर्वाधिक कूड़े का ढेर लगा है। इनके निस्तारण को लेकर कोई प्लान भी नहीं है। कुल 1854 लीगेसी लैंडफिल साइट से 591 लीगेसी लैंडफिल साइट 5 राज्यों में मौजूद हैं। कर्नाटक में 136 लीगेसी लैंडफिल साइट हैं, राजस्थान में 128 लीगेसी लैंडफिल साइट हैं वहीं आंध्र प्रदेश में 115 लीगेसी लैंडफिल साइट हैं, मध्य प्रदेश में 111 और तेलंगाना में 101 लीगेसी लैंडफिल साइट मौजूद हैं। महाराष्ट्र में भी कई लैंडफिल साइट हैं।
एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ था कि ऐसे कचरा डंप से भारी मात्रा में मीथेन गैस निकलती है। यह सूरज से आने वाली गर्मी को वायुमंडल में रोकती है। इससे आपके शहर का तापमान बढ़ता है। स्थानीय स्तर पर पारा ऊपर चढ़ जाता है। आग बुझने का चांस भी कम होता है। क्योंकि कचरे के पहाड़ पर ज्वलनशील पदार्थों की मात्रा काफी ज्यादा होती है इसलिए कितना भी प्रयास कर लें। मीथेन गैस और ज्वलनशील पदार्थ आग को बढ़ाते हैं।
गर्मी जैसे-जैसे बढ़ेगी अचानक से कंबश्चन यानी आग लगने की आशंका बढ़ती चली जाएगी। साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में छपी स्टडी के मुताबिक कचरे के पहाड़ के बीच की जो लेयर होती हैं उसमें फंसी जहरीली गैसें आग को रुकने या बुझने नहीं देती। ये गैसें पहाड़ के अंदर से बाहर की ओर निकलने का प्रयास करती हैं। अगर ऊपर की सतह पर आग लगी हो तो ये ईंधन का काम करती हैं।
अब सवाल यह है कि भारत में कचरे की समस्या से ​िनपटा कैसे जाए। वास्तव में ​जितना कचरा जमा हो रहा है, हमारे पास कचरे काे निपटाने के लिए संसाधन बहुत कम हैं। विदेशों में कचरे से बिजली पैदा की जाती है, गैस पैदा की जाती है और खाद बनाने का काम किया जाता है। कचरे से पैदा हुई बिजली को उद्योगों को दिया जाता है। खाद को कृषि उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है। बिजली, गैस और खाद की बिक्री से वहां की सरकारें काफी धन अर्जित करती हैं। इसके अलावा कचरे से प्लास्टिक और अन्य चीजों को अलग किया जाता है। फिर इनको रिसाइक्लिंग कर रोजमर्रा के इस्तेमाल के उत्पाद बनाए जाते हैं। यद्यपि भारत में कचरे से गैस बनाने के प्लांट शुरू किए गए थे लेकिन इनकी लागत बहुत ज्यादा बताई जाती है। कचरे का अगर सही ढंग से निपटारा किया जाए तो इससे काफी फायदा हो सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि देशभर में कचरे का उपयोग कर सालाना 65,000 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है। यह 2030 तक 1.65 लाख मेगावाट और 2050 तक 4.36 लाख मेगावाट तक पहुंच सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश में हर साल 6.5 करोड़ टन कचरा पैदा होता है और इसके 2030 तक बढ़कर 16.5 करोड़ टन तथा 2050 तक 43.6 करोड़ टन होने का अनुमान है। नगरपालिका क्षेत्र में लगभग 75-80 प्रतिशत कचरे को एकत्र किया जाता है और इसमें से केवल 22 से 28 प्रतिशत का प्रसंस्करण किया जाता है और दूसरे कार्यों में उपयोग में लाया जाता है।
भारत में कूड़ा डालने के लिये 3,159 स्थान हैं। ये देश के लगभग 20 प्रतिशत मीथेन उत्सर्जन के लिये जिम्मेदार हैं। दूसरी तरफ, यह पुनर्चक्रण, अपशिष्ट से ऊर्जा रूपांतरण और हरित नौकरियों के सृजन का अवसर भी प्रदान करता है। एक किलोवाट बिजली पैदा करने के लिये एक टन कचरा पर्याप्त है। हालांकि, वास्तविक उत्पादन कचरे की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद में विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न कचरे को अलग करने और मीथेन प्रबंधन के लिये कृत्रिम मेधा के उपयोग की जरूरत बताई। उन्होंने कहा, ‘‘बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिक गतिविधियों से हमारे यहां ठोस अपशिष्ट का उत्पादन अधिक है। लैंडफिल पर नगरपालिका और औद्योगिक कचरे का ढेर तेजी से बढ़ने की आशंका है।’’ पर्यावरण की सुरक्षा, महामारी की रोकथाम और महानगरों के लोगों को स्वच्छ हवा उपलब्ध कराने के लिए कचरा निपटान की योजनाओं को मूर्त रूप देना बहुत जरूरी है।

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