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सोशल मीडिया और हम लोग

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सूचना क्रांति के आधुनिक दौर में सोशल मीडिया की भूमिका भले ही बहुत बड़ी हो गई हो लेकिन उस पर भी सवाल लगातार उठते रहे हैं। आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक प्रगति में सूचना क्रांति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन सूचना क्रांति की ही उपज सोशल मीडिया पर उठने वाले सवाल भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। समाज की प्रगति में सोशल मीडिया की भूमिका क्या है? क्या सोशल मीडिया हमारे समाज में ध्रुवीकरण उत्पन्न कर रहा है? इसमें कोई संदेह नहीं कि सोशल मीडिया के व्यापक उपयोग के कारण हम खुद को हठधर्मी बनाते जा रहे हैं। फेक न्यूज आज एक व्यवसाय का रूप धारण कर चुका है और लोगों की ताल में ताल मिलाकर चल रहा है। फेक न्यूज के उदय ने मुख्यधारा के मीडिया को भी शक के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया। आज फेक न्यूज पारंपरिक मीडिया आउटलेट में भी जगह बनाने में सफल हो गया है, जिसके झांसे में अक्सर प्रसिद्ध लोग भी आ रहे हैं। राजनीतिज्ञों के झूठे पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। एक बार तो हर कोई इन्हें पढ़ कर सोचने को विवश हो रहा है कि क्या उन्होंने ऐसा पत्र लिखा होगा या नहीं। बाद में पुष्टि करने पर पता चलता है कि वायरल हो रहा पत्र फेक है।

1950 के दशक में सामाजिक मनोवैज्ञानिक सोलोमन असच द्वारा मनोवैज्ञानिक प्रयोगों की एक पूरी शृंखला की गई थी। ये प्रयोग यह निर्धारित करने के लिये किये गये थे कि बहुमत की राय के आगे किसी व्यक्ति की राय किस प्रकार प्रभावित होती है। सोशल मीडिया के प्रभाव के कारण लोगों के सोचने का दायरा संकुचित होता जा रहा है जो न केवल व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन ला रहा है बल्कि हर रोज व्यक्तिगत वार्ताओं में भी इसका जबरदस्त प्रभाव पड़ रहा है। यह आज के दौर में गंभीर चिंता का विषय है। मैं सोशल मीडिया के उपयोग के खिलाफ नहीं हूं लेकिन किसी भी चीज का अत्यधिक उपयोग नुक्सानदेह हो सकता है। सोशल मीडिया का कितना इस्तेमाल किया जाये यह उपयोगकर्ता पर निर्भर करता है। इस वर्ष यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में ज्यादातर टॉपर्स में एक बात समान है, जिसे फॉलो कर सभी ने अच्छा स्थान हासिल किया है। सभी टॉपर्स ने सोशल मीडिया से दूरी बनाकर रखी ताकि पढ़ाई के दौरान किसी भी तरह से ध्यान इधर-उधर न भटके। ऐसे में यूपीएससी के इन टॉपर्स ने सोशल मीडिया से दूरी बनाना ही बेहतर समझा।

उनमें से कई ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट को भी डिलीट कर दिया था। यूपीएससी के टापर कनिष्क कटारिया ने पढ़ाई के दौरान सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना समय की बर्बादी माना और उसने फेसबुक और ट्विटर अकाउंट डिलीट कर दिया। उसने केवल इंस्टाग्राम पर कभी-कभी उन लोगों को चेक किया जो उसके बहुत करीबी हैं। इसी तरह राजस्थान के श्रेयांश कुमत, सृष्टि जयंत देशमुख और बिलासपुर से वरनीत नेगी ने भी अपने सोशल अकाउंट डिलीट कर दिये। कर्नाटक के हुबली जिला के राहुल ने भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना बंद कर दिया था। जयपुर के अक्षत जैन ने व्हाट्सएप का इस्तेमाल केवल इसलिये किया क्योंकि वहां स्टडी ग्रुप बने हुये थे।

साथ ही फेसबुक का इस्तेमाल दिन में केवल 5 मिनट के लिये किया वह भी रिफ्रेशमेंट के लिये। इससे साबित होता है कि पढ़ाई में एकाग्रता के लिये सोशल मीडिया से दूरी बनाये रखना जरूरी है। दरअसल हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जिससे हम सूचना के न केवल उपभोक्ता हैं बल्कि उत्पादक भी हैं। यही अंतर्द्वंद हमें इसके नियंत्रण से दूर कर देता है। औसतन प्रतिदिन 1.49 बिलियन लोग फेसबुक पर लॉग इन करते हैं। औसतन हर सैकेंड ट्विटर पर लगभग 6 हजार ट्वीट किये जाते हैं और इंस्टाग्राम की शुरूआत के बाद से इस पर अब तक 40 बिलियन से अधिक तस्वीर पोस्ट की जा चुकी है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान पूर्वाग्रह या मानव त्रुटियों के चलते गलत खबरों और जानबूझ कर गढ़ी गई फेक न्यूज के चलते भ्रामक स्थिति उत्पन्न हो गई। फेक अकाउंट की प्रवृत्ति बढ़ गई।

यही प्रवृत्ति आगे चलकर सीधे राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने या आन लाइन प्लेटफार्म पर किसी को परेशान करने में इस्तेमाल की जाने लगी है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल ऐसे व्यक्ति के लिये समर्थन हासिल करने में किया गया जिसने राजस्थान में एक मुस्लिम व्यक्ति को जिंदा जला दिया था। वहीं सोशल मीडिया का इस्तेमाल उस व्यक्ति के माता-पिता हेतु धन जुटाने के लिये भी किया गया था जिसकी जम्मू-कश्मीर के कठुआ में सामूहिक बलात्कार के बाद नृशंस हत्या कर दी गई थी। सोशल मीडिया का उपयोग उतना ही करना ठीक है जिससे आपका व्यवहार और विचार प्रभावित नहीं हो। शिक्षा के दौरान तो बच्चों ने सोशल मीडिया से दूरी बनाकर सफलता हासिल कर ली है। देशवासियों को अब अपने वोट का सही इस्तेमाल करना है। उन्हें सोशल मीडिया से प्रभावित न होकर अपने वोट का इस्तेमाल अपने विवेक से करना होगा ताकि देश को बेहतर सरकार मिल सके।

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