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स्पेस वार : भारत की तैयारी

भविष्य में अगर युद्ध होगा तो वह जमीन पर नहीं होगा। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगला युद्ध अंतरिक्ष में लड़ा जाएगा। युद्ध की आशंकाओं को देखते हुए सभी देश अंतरिक्ष में अपनी शक्ति को बढ़ाने में लगे हुए हैं।

भविष्य में अगर युद्ध होगा तो वह जमीन पर नहीं होगा। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगला युद्ध अंतरिक्ष में लड़ा जाएगा। युद्ध की आशंकाओं को देखते हुए सभी देश अंतरिक्ष में अपनी शक्ति को बढ़ाने में लगे हुए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही स्पेस फोर्स बनाने का ऐलान कर रखा है। अमेरिका ऐसा करके अंतरिक्ष में प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है। यह स्पेस फोर्स अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन की नई एजैंसी होगी। यह स्पेस फोर्स अमेरिकी सेना की 11वीं कमांड होगी। कुछ समय पहले तक सिर्फ रूस के पास स्पेस फोर्स थी जो 1992-97 और 2001-2011 तक सक्रिय रही। इसके बाद चीन और अमेरिका ने भी खुद को स्पेस वार के लिए तैयार किया। अब भारत ने भी अंतरिक्ष महाशक्ति होने का ऐलान कर दिया है। 
चीन ने दुनिया को नए तरीके से चौंकाया था जब उसने अंतरिक्ष में मौजूद अपने पुराने उपग्रह को अपनी ही मिसाइल दाग कर नष्ट कर दिया था। यद्यपि चीन ने यह कहा था कि इसके पीछे उसकी कोई सैन्य महत्वाकांक्षा नहीं है, यह सिर्फ एक तकनीकी परीक्षण है मगर यह मानव इतिहास की सच्चाई है कि इन्सान अपनी सबसे बड़ी शक्ति को हमेशा युद्ध के समय ही इस्तेमाल करता है। तभी यह साफ हो गया था कि चीन स्पेस वार की तैयारी कर रहा है। चीन के परीक्षण ने न केवल पूरी दुनिया के देशों बल्कि भारत को इस बात के लिए मजबूर किया कि वह भी अंतरिक्ष में अपनी सैन्य वजूदगी के बारे में सोचे। 
चीन द्वारा परीक्षण के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के तत्कालीन अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने यह दावा कर दिया था कि चीन ने जो कुछ किया है, भारत वह उससे भी बेहतर तरीके से कर सकता है। यानी भारत के पास अंतरिक्ष में मौजूद किसी भी सैटेलाइट को जमीन से नष्ट करने की क्षमता है। हालांकि भारतीय वैज्ञानिकों को इस तकनीक के प्रदर्शन की राजनीतिक अनुमति नहीं दी गई थी। मुझे याद है कि मनमोहन सिंह शासनकाल के दौरान तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने तीनों सेनाओं के कमांडरों की बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा था कि ‘‘हम अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग में विश्वास रखते हैं और अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण के विरुद्ध हम प्रतिबद्ध हैं लेकिन हाल ही में कुछ पड़ोसियों की  चुनौ​तियाें को देखते हुए हमारी यह विवशता है कि हम आत्मरक्षार्थ तैयारी करें।
असल में तीनों सेनाओं के लिए एक स्पेस सैल के गठन पर विचार किया गया था लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में ऐसा नहीं किया जा सका। 2019 के चुनाव से पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 मार्च को राष्ट्र के नाम सम्बोधन की सूचना दी तो पूरे देश को उत्सुकता थी कि वह क्या घोषणा करने वाले हैं। सभी की नजरें टीवी चैनलों पर लग गई थीं। उसी दिन प्रधानमंत्री ने देशवासियों को जानकारी दी थी कि भारत अंतरिक्ष में अपना परचम फहराने वाला चौथा देश बन चुका है। मिशन शक्ति के तहत भारत की सैटेलाइट ने 300 किलोमीटर ऊपर लो अर्थ आर्बिट में केवल तीन मिनटों में सैटेलाइट को मारने में सफलता हासिल कर ली है। 
अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसरो और मिसाइलों के क्षेत्र में डीआरडीओ ने शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों पर कैबिनेट कमेटी की बैठक में अंतरिक्ष में सुरक्षा के लिए अपनी अलग एजैंसी रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान एजैंसी (डीएसआरओ) के गठन को मंजूरी दे दी है। एजैंसी को स्पेस में युद्ध के लिए तकनीकों और प्रौद्योगिकियों को विकसित करने का काम सौंपा गया है। अब भारतीय सेनाएं आकाश, धरती और जल के बाद अंतरिक्ष में भी दुश्मन को मात दे सकेंगी। इस एजैंसी में जो भी वैज्ञानिक होंगे, वे तीनों सेनाओं के साथ समन्वय स्थापित कर काम करेंगे। 
एजैंसी में तीनों सेनाओं के सदस्य भी शामिल होंगे। यह एजैैंसी इसलिए भी जरूरी है कि अगर युद्ध के समय कोई भारतीय उपग्रहों को निशाना बनाता है तो उससे संचार व्यवस्थाएं खत्म हो सकती हैं। एंटी सैटेलाइट मिसाइल का निशाना किसी भी देश के सामरिक उद्देश्यों के उपग्रहों को खत्म करना होता है। हालांकि आज तक किसी भी युद्ध में इसका उपयोग नहीं किया गया। भारत में एंटी सैटेलाइट मिसाइल का विकास डीआरडीओ ने किया है। ए-सैट मिसाइल सिस्टम अग्नि मिसाइल और एडवांस्ड एयर डिफैंस सिस्टम का मिश्रण है। 
अंतरिक्ष में सैन्य टकराव की फिलहाल कोई आशंका नहीं है लेकिन भारत के पास अपनी स्पेस एजैंसी होगी तो एक संतुलन बना रहेगा और कोई भी पड़ोसी दबंगई नहीं दिखा पाएगा। भारतीय सेना का मनोबल बढ़ेगा। नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम बहुत बड़ा है। उम्मीद है कि रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान एजैंसी स्पेस में रक्षा का रोडमैप तैयार करेगी और सेना की रणनीतिक और सैन्य जरूरतों को पूरा करेगी। दुश्मनों के जासूसी उपग्रहों पर तो नजर रखेगी ही बल्कि अंतरिक्ष में भारत की सैन्य मौजूदगी और पुख्ता होगी।

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